75 साल के हुए दिशोम गुरु शिबू सोरेन, CM रघुवर ने फोन कर दी बधाई, हेमंत ने खिलाया केक-मिलने उमड़े समर्थक
Shibu Soren. झारखंड में दिशोम गुरु के नाम से ख्यातिलब्ध पूर्व मुख्यमंत्री और दुमका से सांसद झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन के 75वें जन्मदिन पर समर्थकों ने बधाई दी।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और दिशोम गुरु के नाम से प्रसिद्ध शिबू सोरेन के 75वें जन्मदिन पर शुक्रवार को मुख्यमंत्री रघुवर दास ने फोन कर बधाई दी। इस दौरान उनके आवास पर अपने चहेते नेता को बधाई देने के लिए समर्थकों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। समर्थकों ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री गुरुजी की लंबी उम्र की कामना करते हुए नारे भी लगाए। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ट्वीट कर शिबू सोरेन के बेहतर स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना की। जन्मदिन के मौके पर शिबू सोरेन ने अपने आवास पर केक काटा, जिसे नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन नेअपने पिता शिबू सोरेन को खिलाया। शिबू सोरेन के बारे में कहा जाता है कि वे हर बात बेबाकी से बगैर लागलपेट के करते हैं। उम्र की थकान उनके चेहरे पर नहीं झलकती। उनकी मौजूदगी समर्थकों में उत्साह भरती है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन का चमत्कार समर्थकों के सिर चढ़कर बोलता है।
झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन 11 जनवरी को 75 साल के हो गए। वे झारखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। वे वर्तमान में दुमका के सांसद हैं। चालू लोकसभा में वे झामुमो के टिकट पर संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए हैं। शिबू सोरेन ने अलग झारखंड आंदोलन को मुकाम पर पहुंचाया, वे झारखंड स्वायत्तशासी परिषद के भी अध्यक्ष रहे। दिशोम गुरु को तीन बार झारखंड का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल है। वे तीन बार केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। वर्ष 1992 में प्रधानमंत्री नरसिंह्मा राव की सरकार बचाने के लिए उन पर रिश्वत लेकर वोट देने का आरोप भी लग चुका है।
जानिए दिशोम गुरु को : दिशोम गुरु के नाम से मशहूर और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन ने झारखंड को पृथक राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को बताने के लिए यह काफी है कि वे झारखंड की दुमका लोकसभा सीट से छठी बार सांसद चुने गये हैं। शिबू सोरेन का जन्म एकीकृत बिहार के हजारीबाग जिले के नेमरा गांव में हुआ था।
स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद उनका विवाह हो गया। उन्होंने पिता को खेती के काम में मदद करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत 1970 में की। उनके पिता महाजनों के खिलाफ संघर्षरत थे। इसी क्रम में उनकी हत्या कर दी गई। बाद में शिबू सोरेन ने महाजनों के खिलाफ लंबा संघर्ष चलाया। टुंडी में आश्रम बनाकर उन्होंने आदिवासी समाज में व्याप्त कुरीतियों, शराबखोरी को समाप्त करने के लिए आंदोलन चलाया।
शिबू सोरेन ने पहली बार 1977 में लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा। 1980 में वे लोक सभा चुनाव जीते। इसके बाद क्रमश: 1986, 1989, 1991, 1996 में भी चुनाव जीते। 10 अप्रैल 2002 से 2 जून 2002 तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। 2004 में वे दुमका से लोकसभा के लिये चुने गये। 2005 में झारखंड विधानसभा चुनावों के पश्चात वे विवादस्पद तरीक़े से झारखंड के मुख्यमंत्री बने, परंतु बहुमत साबित न कर सकने के कारण कुछ दिन पश्चात ही उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। वे मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए तमाड़ से विधानसभा का चुनाव हार गये थे। उन्हें पूर्व मंत्री गोपाल कृष्ण पातर ऊर्फ राजा पीटर ने हराया था।