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सदर अस्पताल के जन औषधि की हालत खस्ता, इमरजेंसी दावइयां तक उपलब्ध नहीं

रिम्स की तरह ही है सदर अस्पताल का भी जन औषधि केंद्र की स्थिति सही नहीं है। मरीजों को महंगे दर पर बाहर से दवा की खरीद करनी पड़ रही है। स्वास्थ्य विभाग भी जन औषधि केंद्र को चालू करने को लेकर उदासीन बना हुआ है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Jun 2019 05:30 AM (IST)Updated: Mon, 10 Jun 2019 06:46 AM (IST)
सदर अस्पताल के जन औषधि की हालत खस्ता, इमरजेंसी दावइयां तक उपलब्ध नहीं
सदर अस्पताल के जन औषधि की हालत खस्ता, इमरजेंसी दावइयां तक उपलब्ध नहीं

-रिम्स की तरह ही है सदर अस्पताल का भी जन औषधि केंद्र, वहां लटकता है ताला और यहां दुकान तो खुला रहता है लेकिन मरीजों को भेजते है निजी दुकानें जागरण संवाददाता, रांची : सिर्फ रिम्स ही नहीं बल्कि सदर अस्पताल में भी इलाजरत मरीजों को दवाएं उपलब्ध नहीं कराई जाती। यहां भर्ती मरीजों को भी दवाएं बाहर से ही खरीदकर लानी पड़ती है। सदर अस्पताल के जन औषधि केंद्र की हालत भी रिम्स जैसी ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि रिम्स के जन औषधि केंद्र में अधिकांश समय ताला लटका ही मिलता है और यहां औषधि केंद्र खुला तो रहता है लेकिन जरूरी दवाओं की उपलब्धता नहीं होने के कारण कोई यहां जाता ही नहीं है। सदर अस्पताल के नए भवन निर्माण के समय यहां के मरीजों को अत्याधुनिक सुविधाएं देने की बात कही गई थी, लेकिन यहां अत्याधुनिक सुविधाएं तो दूर की बात मरीजों को दवाइयां तक नहीं मिलती। इसे लेकर दैनिक जागरण द्वारा चल रहे अभियान के चौथे दिन जागरण की टीम दवाओं की स्थिति का जायजा लेने सदर अस्पताल पहुंची। जहां पता चला कि अस्पताल परिसर स्थित दवाईखाने में सालों से जीवन रक्षक दवाइयों की सप्लाई नहीं हुई है। जिससे मरीजों को ये दवाई नहीं मिल पाती है। अलग-अलग विभागों को छोड़ दे और सिर्फ ओपीडी को देखें तो यहा रोजाना करीब 250 से 300 मरीज आते हैं। ऐसे में यहा दवाइयों की माग अधिक होती है। कुछ नर्सो ने बताया कि कई बार मरीज दवाई नहीं मिलने की शिकायत लेकर आते हैं। लेकिन दवाई नहीं होने के कारण उन्हें बाहर से लेने की सलाह दी जाती है। इस बीच कई मरीजों से बातचीत भी की गई। क्या है जीवन रक्षक दवाइया

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जीवन रक्षक दवाइया ऐसी दवाइयों को कहा जाता है जो मेडिकल इमरजेंसी में इस्तेमाल की जाती हैं। इससे न सिर्फ आपातकाल में रोगी को बचाया जा सकता है, बल्कि आने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निदान में भी सहायता मिलती है। व‌र्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार, ये दवाइया कैंसर, एचआइवी जैसी बीमारियों में काम आती है। इन लाइफ सेविंग ड्रग्स की संख्या कम से कम 74 है। मामूली कैल्शियम की दवाई तक उपलब्ध नहीं

अस्पताल में बुंडू, काके, नगड़ी, अनगड़ा समेत दूरस्थ क्षेत्रों से गर्भवती महिलाएं आती है। लेकिन दवाइयों की कमी के कारण महिलाओं को कैल्शियम तक की दवाई नहीं मिलती। कई महिलाओं से बात करने पर पता चला कि कुछ दवाइया तो मिल जाती हैं। लेकिन जब भी इलाज के लिए आते तो दवाइयां बाहर से लेने को कहा जाता है। ---------

एमआर का लगा रहता है जमावड़ा

अस्पताल व डॉक्टरों के इर्द गिर्द दिन भर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (एमआर) का जमावड़ा लगा रहता है। अधिकांश समय ओपीडी से लेकर एमआर वार्डो तक डॉक्टर के साथ होते हैं। अस्पताल के ही कर्मचारी ने बताया कि कई बार यहां डॉक्टर मरीजों को देखने के बाद एमआर द्वारा बताई गई दवाएं ही लिखते हैं। मरीज ओपीडी से जैसे ही बाहर निकलता है वैसे ही एमआर मरीज के पीछे लगकर दुकानों के नाम तक बता देते हैं और दवाएं सस्ती बताकर उसी दुकानों से लेने का दबाव बनाते है। ---------

सदर ओपीडी :: केस 1

दोपहर करीब 1 बजे रातू से अपने बच्चे का इलाज कराने आए उमेश राम ने बताया कि बच्चें को एक सप्ताह से बुखार है। जब डॉक्टर से दिखाने पहुंचा तो देखने के बाद उन्होंने एक-दो जांच और 4 दवाइयां लिखी। परिजन जब पर्ची लेकर अस्पताल के ही जन औषधि केंद्र गया तो पता चला कि पर्ची में लिखे एक भी दवा वहां उपलब्ध नहीं है। परिजन ने बताया कि जन औषधि केंद्र के अधिकारी ने ही बाहर निजी दुकान से दवा खरीदने को कहा। महिला वार्ड :: केस 2

सदर अस्पताल के महिला वार्ड में भर्ती मरीज के परिजन सुमित ने बताया कि पत्‍ि‌न को डिलीवरी के लिए तीन दिन पहले यहां भर्ती कराया। तीन दिनों में दवाई के नाम पर 24 हजार रुपये खर्च हो चुके हैं। डॉक्टरों ने कई दवाएं लिखे। लेकिन एक भी दवा अस्पताल में नहीं मिला। नतीजन सारी जरूरी दवाएं बाहर से ही लेना पड़ा। ---------

सूची के हिसाब से आती है दवाइया

सदर अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. विजय बहादुर प्रसाद ने बताया कि अस्पताल में दवाइयों की कमी तो है लेकिन लगातार कोशिश किया जा रहा है कि अस्पताल में मरीजों को बेहतर चिकित्सा के साथ सभी तरह के जेनरिक दवाएं मिल जाए। इसके लिए सरकार को राशि आवंटन के लिए आवेदन भी दिया जा चुका है।


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