झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में सदन में बवाल, नहीं उठा जनता का एक भी सवाल
झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान हुए हंगामे से सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा और विपक्ष अपने ही बुने जाल में फंस कर रह गया।
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र के कुल जमा परिणाम क्या रहे? जवाब, खूब हंगामा हुआ। प्रश्न काल नहीं चला। शून्य काल और ध्यानाकर्षण सूचनाओं पर चर्चा तक नहीं हुई और जनता से जुड़े तमाम अहम सवाल धरे रह गए। सरकार के नजरिए से देखें तो सत्र अनुकूल रहा। बिना किसी हील-हुज्जत के 2596 करोड़ रुपये का अनुपूरक बजट सहित 21 विधेयक पारित हो गए। मंत्रियों को विधायकों के सवालों का जवाब देने की जहमत तक नहीं उठानी पड़ी। सीधे शब्दों में समझें तो मानसून सत्र के दौरान हुए हंगामे से सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा और विपक्ष अपने ही बुने जाल में फंस कर रह गया। झारखंड विधानसभा में यह पहला मौका नहीं है, जब सत्र इस गति को प्राप्त हुआ हो।
पिछले दो वर्षों में आठ सत्रों का तकरीबन यही हाल रहा है। मानसून सत्र के दौरान विपक्ष ने भूमि अधिग्रहण संशोधित कानून को वापस लेने की मांग के अलावा स्वामी अग्निवेश की पिटाई, युवा कांग्रेस पर हुए लाठीचार्ज, विधायकों की खरीद-फरोख्त और स्कूलों के मर्जर से जुड़े मामले उठाए और इन्हें हंगामे की हद तक पहुंचाने में भी कामयाबी पाई। लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला। सत्र यदि सुचारू रूप से चलता तो इन मुद्दों पर सरकार को घेरने के साथ-साथ प्रश्न काल के दौरान सरकारी अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया जा सकता था। विधायक अपने क्षेत्र की जनता की समस्याओं को प्रश्न काल के माध्यम से नहीं उठा पाए। ऐसा नहीं कि विधायकों की मंशा प्रश्न उठाने की थी ही नहीं। उन्होंने सवाल दिए भी थे, लेकिन पार्टी के एजेंडों के कारण उनकी मंशा मुकाम तक नहीं पहुंची।
378 सवाल प्राप्त हुए, एक पर भी चर्चा नहीं
मानसून सत्र के दौरान सदन को सदस्यों के कुल 378 सवाल प्राप्त हुए। इनमें 90 अल्पसूचित, 207 तारांकित और 81 अतारांकित प्रश्न आए, जिनमें 289 प्रश्नों के लिखित जवाब विभिन्न विभागों से प्राप्त भी हुए। लेकिन एक भी प्रश्न पर सदन में चर्चा तक नहीं हुई। चर्चा न होने से यह स्पष्ट ही नहीं हो सका कि जो जवाब सरकारी विभागों ने दिए वे कितने संतोषजनक थे।
भूमि अधिग्रहण पर विपक्ष के विरोध कितना सही
भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून पर विपक्ष का विरोध बेमानी ही कहा जाएगा। विधेयक पास हो चुका है, उस पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग गई है और अब यह कानून बन गया है। ऐसे में विपक्ष के विरोध के चलते कोई बहुमत की सरकार अपने ही लाए विधेयक को क्यों वापस लेगी? सत्ताधारी दल के मुख्य सचेतक राधाकृष्ण किशोर भी इसी बात को कहते हैं। वे कहते हैं कि यदि विपक्ष को इसमें बदलाव करना है तो उन्हें नया विधेयक लाना होगा। कार्य संचालन नियमावली के तहत विपक्ष गैर सरकारी विधेयक ला सकता है।
भारत के लोकतंत्र की हो रही अग्निपरीक्षा: नामधारी
झारखंड विधानसभा के पहले स्पीकर इंदर सिंह नामधारी कहते हैं कि आज भारत के लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा हो रही है। पूरे देश में झारखंड जैसी ही स्थिति है। पहले लोकतांत्रिक तरीके से समस्या के समाधान निकाले जाते थे। अब सत्ता पक्ष में बैठे लोग कहते हैं कि हमें जो करना है करेंगे। विपक्ष में बैठे लोग कहते हैं कि जब नहीं सुनेंगे तो हम सदन नहीं चलने देंगे। इस स्थिति के लिए दोनों दोषी हैं और अगर नहीं है तो किसी का दोष नहीं है।