'सूर' की सरिता में श्रोताओं ने लगाई डुबकी
रविवार को आड्रे हाउस में विख्यात कलाकार शेखन सेन ने सूरदास के पदों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। राज्य के राजनेताओं सहित शहर के कई गणमान्य लोग कार्यक्रम में उपस्थित थे।
रांची : सूर सूर तुलसी ससी, उडगन केशवदास, अब के कवि खाद्धोत सम, जहं-तहं करत प्रकाश..यह कोर्स में पढ़ा था। रविवार को इसे जीवंत होते देखा। पद्मश्री शेखर सेन ने आर्यभट्ट सभागार में सूर के 105 साल के पूरे जीवन को 90 मिनट में सुधि दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। अष्टछाप के इस सर्वश्रेष्ठ कवि के जीवन गीत से पता चला, सूर रचित कान्हा के बाल लीलाओं के वर्णन से प्रेरित होकर तुलसी ने पद रचा, ठुमक ठुमक चलत राम चंद्र, बाजे पैजनियां..। रांची में सूर की यह 71 वीं प्रस्तुति थी। पद्मश्री शेखर सेन ने बताया, सूर के पास नेत्र नहीं, दृष्टि थी। इस दृष्टि से ही अपने कान्हा को देखते थे।
36 सांगीतिक प्रस्तुति
शेखर सेन की यह एकल प्रस्तुति थी। गीत भी खुद गा रहे थे और संवाद भी। अलग-अलग भाव व्यक्त कर रहे थे। दर्शक मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे। । पूरा सभागार 640 साल पहले के काल खंड में चला गया था। 105 साल के कालखंड को 36 सांगीतिक प्रस्तुतियों में साकार किया गया था।
अखियां हरि दर्शन को प्यासी
अखियां हरि दर्शन की प्यासी, देखियो चाहत कमल नैन को, निसदिन रहेत उदासी..प्रस्तुति का पहला पद था और अंतिम अष्टाक्षरी पद। बचपन में उपेक्षा, मां का लाड़-प्यार और फिर घर से वृंदावन की ओर प्रस्थान..। गुरु बल्लाभाचार्य से दीक्षा-मिलना। हरी का दर्शन कहां मिलेगा? ब्रज में। सूर रस से भरी ब्रजभूमि की ओर चल पड़ते हैं और फिर उनकी आपबीता श्याम बीता में बदल जाता है। अपने कान्हा को यह उपालंभ..ये संसार अंधा बुलावै है मोको। श्याम जब सखा हुए तो पद निकला..मैं नहीं माखन खायो..सूर की डोरी दो तारा से एक तारा हो जाती है। सुर की गंगा में गोता लगाने लगते हैं सूर। यह अब दास किसी और का नहीं, सुर का हो गया था।
गंगा-जमुना में रक्त की धार
कहानी यहीं खत्म नहीं होती। सूर के जीवन के साथ देश का जीवन भी आता-जाता है। सिंकदर लोदी, इब्राहिम लोदी..का रक्तपात। मंदिरों को ढहाया जाना। इस क्रूर समय में भी सूफी रहमान का साथ..रहमान कव्वाली गाते थे..सूर ने गुजारिश कर दी। रहमान ने खुसरो को याद किया..छाप तिलक सब छीनी रे तोसे नैना मिलाय के..।
सगुण की धारा
सूर से मीरा भी वृंदावन धाम में मिलती हैं और तुलसी भी। तुलसी तब युवा थे और सूर उम्र के आखिरी पड़ाव पर। दोनों का मिलना अद्भुत था। तुलसी निवेदन करते हैं, आपके पद सुन-सुनकर तो राम की बाल लीलाओं का वर्णन किया। सूर की आंखें सजल हो उठती हैं। सूर एक पद सुनाने को कहते हैं, तुलसी ठुमक चलत राम चंद्र..सुनाकर भाव विह्वल कर देते थे।
दीप जलाकर किया उद्घाटन
इस कार्यक्रम का उद्घाटन विधान सभा अध्यक्ष दिनेश उरांव, खाद्य मंत्री सरयू राय, पर्यटन मंत्री अमर बाउरी, खादी बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ, पुलिस प्रवक्ता आरके मल्लिक, विकास आयुक्त डीके पांडेय, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सुनील बर्णवाल, कला-संस्कृति विभाग के सचिव डॉ मनीष रंजन व निदेशक एके सिंह ने दीप जलाकर उद्घाटन किया। स्वागत संबोधन मनीष रंजन ने दिया।
कार्यक्रम में कल्याण सचिव हिमानी पांडेय, विभाग के सहायक निदेशक विजय पासवान, डॉ एसडी सिंह, प्रणय दत्त, नाटककार अजय मलकानी, रांची दूरदर्शन के पूर्व निदेशक पीके झा आदि उपस्थित थे।