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हाई कोर्ट के जजों की सेवा में आजीवन दो स्टाफ देने की तैयारी, राज्यपाल रहते द्रौपदी मुर्मु ने जताई थी आपत्ति

तत्कालीन राज्यपाल (अब राष्ट्रपति) द्रौपदी मुर्मु ने को-टर्मिनस कर्मियों की नियुक्ति को लेकर तैयार प्रस्ताव के आधार पर सवाल उठाए थे। यह प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 229 के आधार पर तैयार किया गया था जिसके माध्यम से हाई कोर्ट में कर्मियों की नियुक्ति से लेकर उनकी पेंशन तक का प्रविधान किया जाता है। अनुच्छेद 229 के तहत कोई भी नियम सिर्फ केंद्र सरकार तैयार कर सकती है।

By Ashish JhaEdited By: Mohammad SameerPublished: Sun, 27 Aug 2023 05:30 AM (IST)Updated: Sun, 27 Aug 2023 05:30 AM (IST)
जजों की सेवा में आजीवन दो स्टाफ देने की तैयारी, राज्यपाल रहते मुर्मु ने जताई थी आपत्ति (file photo)

आशीष झा, रांची:  राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड में राज्यपाल रहते हुए राज्य कैबिनेट के कई निर्णयों को लेकर संशोधन करने का मंतव्य रखा था। इस कारण से कई बार सरकार को प्रस्ताव बदलने पड़े थे। ऐसा ही एक मामला था हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को आजीवन दो कर्मी (को-टर्मिनस स्टाफ) देने का प्रस्ताव।

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इसमें न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद सरकार द्वारा दो कर्मचारी उपलब्ध कराए जाने का प्रस्ताव था। अब एक बार फिर कैबिनेट से यह प्रस्ताव पारित कर दोबारा राजभवन भेजा गया है। प्रस्ताव के तहत न्यायाधीशों को उपलब्ध कराए जाने वाले दोनों कर्मचारियों का चयन अपने लिए स्वयं संबंधित जज ही करेंगे।

ये कर्मी जज की सेवानिवृत्ति की अवधि ले लेकर आजीवन जज की सेवा में तैनात रहेंगे और जज का निधन हो जाने की स्थिति में उनकी पत्नी की सेवा में आजीवन रहेंगे। इन कर्मियों का वेतन राज्य सरकार देगी।

वर्तमान में न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति लाभ के अलावा हर माह लगभग आठ हजार रुपये निजी स्टाफ रखने के लिए दिए जाते हैं, लेकिन अब दो कर्मियों की सेवा दी जाएगी। इस तरह के प्रविधान दक्षिण भारत के एक-दो राज्यों में पहले से लागू हैं।

मुर्मु ने नियमों पर जताई थी आपत्ति

तत्कालीन राज्यपाल (अब राष्ट्रपति) द्रौपदी मुर्मु ने को-टर्मिनस कर्मियों की नियुक्ति को लेकर तैयार प्रस्ताव के आधार पर सवाल उठाए थे। यह प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 229 के आधार पर तैयार किया गया था, जिसके माध्यम से हाई कोर्ट में कर्मियों की नियुक्ति से लेकर उनकी पेंशन तक का प्रविधान किया जाता है।

अनुच्छेद 229 के तहत कोई भी नियम सिर्फ केंद्र सरकार तैयार कर सकती है और कानून के लिए इसे केंद्रीय संसद से पास कराना होगा। ऐसे में इसके तहत नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार का नहीं हो सकता है। मतलब यह कि जब नियुक्त राज्य सरकार कर ही नहीं सकती तो फिर भुगतान के लिए क्या प्रबंध होगा।

यहां यह बात भी अहम है कि हाई कोर्ट के जजों को सेवानिव़ृत्ति के बाद देय तमाम सुविधाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने कई गाइडलाइन जारी की है, जिसमें जजों को निजी स्टाफ मुहैया कराने जैसे प्रविधानों पर भी विचार करने की बात कही गई है। कुछ राज्यों में स्टेनोग्राफर अथवा तृतीयवर्गीय कर्मी मुहैया कराने का भी प्रविधान है।

जहां-जहां जाएंगे जज, वहां-वहां जाएंगे दोनों कर्मी

कैबिनेट से पास प्रस्ताव के अनुसार हाई कोर्ट के जजों को आवंटित को-टर्मिनस स्टाफ उनके साथ आजीवन जुड़े रहेंगे। जज के सेवाकाल में ही ये कर्मी नियुक्त होंगे और जज की सेवानिवृत्ति के बाद भी उनके साथ ही रहेंगे। सेवा काल में अगर जज का तबादला दूसरे राज्य में होता है तो दोनों कर्मी भी उनके साथ जाएंगे।

अगर कर्मी किसी ऐसे राज्य में जज के साथ जाते हैं जहां इन कर्मियों के लिए भुगतान को लेकर कोई कानून नहीं है तो झारखंड सरकार ही उनका भुगतान करती रहेगी। दोनों कर्मियों के लिए शुरुआती वेतन करीब 20-20 हजार रुपये होंगे।

कैबिनेट से 11 अगस्त को पारित हुआ प्रस्ताव

सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को आजीवन दो चतुर्थवर्गीय कर्मियों की सेवा उपलब्ध कराने के लिए तैयार प्रस्ताव को कैबिनेट से 11 अगस्त को स्वीकृति प्रदान की गई है। इसके बाद इससे संबंधित संचिका अनुमति के लिए राज्यपाल के पास भेजी गई है। हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को यह सुविधा उनके द्वारा आजीवन दी गई सेवा के एवज में देने का प्रस्ताव है।


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