बड़ी देर भयो नंदलाला... ग्वाल-बाल सब पूछ रहे कहां है बंशीवाला... पढ़ें चौबे जी की कही-अनकही
सीएमओ के मुखिया अभी तक सामने नहीं आए हैं। इस पद के लिए नाम तो कई सामने आए लेकिन समय के साथ मुहर नहीं लगी और नाम बदलते रहे। अब नए नाम सामने आ रहे हैं लेकिन फिर वही अटकलें।
रांची, जागरण स्पेशल। झारखंड में नई सरकार बने करीब दो माह हो गए। एक महीने तक न मंत्रालय बंटा, न कैबिनेट विस्तार हुआ और न नए मंत्री बने। खैर, बार-बार के दिल्ली दर्शन के बाद काफी हीलाहवाली से झामुमो-कांग्रेस और राजद महागठबंधन सरकार की चूलें कसीं गईं और मुख्यमंत्री व उनके सहयोगी मंत्रियों ने फैसले लेने शुरू कर दिए। इस बीच नया मसला मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव को लेकर फंसा है। मुख्यमंत्री सचिवालय में लोगों से प्रधान सचिव को लेकर तड़ातड़ सवाल पूछे जा रहे हैं, लेकिन साहब के मिजाज के हिसाब से अब तक कोई नाम फाइनल नहीं हो सका। सरकार के अंदर-बाहर की उठापटक के बीच यहां पढ़ें राज्य ब्यूरो के विशेष संवाददाता आशीष झा के साथ कही-अनकही...
बड़ी देर भयो नंदलाला...
बड़ी देर भयो नंदलाला... करोड़ों की संख्या में लोग इस भजन को नित्य सुबह सुनते हैं लेकिन इसका राजनीति से भी कुछ लेना-देना हो सकता है, अब जाकर समझ में आ रहा है। आजकल मुख्यमंत्री सचिवालय में यह भजन सुना जा सकता है तो सत्ता के गलियारों में भी। कारण यह है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुए लगभग दो महीने बीत गए और इतने दिनों में तमाम कार्यालयों ने काम करना शुरू भी कर दिया है लेकिन सीएमओ के मुखिया अभी तक सामने नहीं आए हैं। इस पद के लिए नाम तो कई सामने आए लेकिन समय के साथ मुहर नहीं लगी और नाम बदलते रहे। अब नए नाम सामने आ रहे हैं लेकिन फिर वही अटकलें। इस भजन के बीच की एक पंक्ति है - बाल-बाल इक-इक से पूछे कहां है बंशीवाला रे ...। मुख्यमंत्री सचिवालय में लोगों से प्रधान सचिव को लेकर सभी ऐसे ही पूछ रहे हैं।
देर से ही सही, आई समझ
जामताड़ा के लाल कुछ लोगों के बहकावे पर अखबारों में जमकर छपने लगे थे। पार्टी का साथ छोडऩे से लेकर हाथ छोडऩे तक की बात कर रहे थे। जिद ऐसी कि किसी की सुने भी नहीं। कारण भी कोई खास नहीं लेकिन इस बार उन्हें समझा दिया गया है। कोई नहीं जानता कि वे दिल्ली गए तो किस रास्ते से और लौटे तो किन मोहल्लों से। लेकिन आते ही उन्होंने सबको बता दिया कि माफी मांगकर ही लौटे हैं। हां, स्पष्ट बोलने से परहेज करते रहे हैं। बस संकेतों को समझिए। जिनके बारे में कहते थे कि उनके आने से सत्यानाश हो जाएगा उन्हें अब पवित्र मानने लगे हैं। कह रहे हैं कि गंगा नहाने के बाद किसी पर सवाल कहां उठता है। दिल्ली बुलाने का फॉर्मूला तो काम कर गया भाई और अब कुछ लोगों के नाम हैं जिन्हें जल्द दिल्ली बुलाना जरूरी है।
बदल रही सरकार लेकिन धीमी रफ्तार
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का तबादला लगातार हो रहा है लेकिन धीरे-धीरे। इस धीमी रफ्तार से आम लोगों पर कोई असर नहीं पड़ रहा, खास लोग जरूर चिंतित हैं। कुछ आइएएस अधिकारी ही सबसे अधिक परेशान हैं। निर्णय नहीं कर पा रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल है, कल क्या होगा और कल कौन होगा। खैर, आइएएस तो धैर्य धरे हुए हैं लेकिन कुछ लोग अधिक ही अधीर हो रहे हैं सो अपने स्तर से सूची जारी कर दे रहे हैं। अभी हाल में ही आइएएस अधिकारियों की एक सूची तैयार होकर जारी की गई। तमाम समूहों पर। लेकिन मामला फर्जी निकला। इसके पूर्व भी भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों की फर्जी तबादला सूची तैयार कर जारी कर दी गई थी। समझदार लोग तो समझ जाते हैं लेकिन कुछ लोग झांसे में आ ही जाते हैं। अब सरकार ऐसे अफवाहों को रोके भी कैसे।
चप्पे-चप्पे से वाकिफ चौबे
नगर विकास विभाग का प्रभार अजय कुमार सिंह से लेकर विनय कुमार चौबे को दे दिया गया है और ऐसा मौका कम ही आता है जब प्रभार लेने और प्रभार देनेवाले अधिकारी के बीच समन्यव बना रह जाए। अन्यथा एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा ही खुला रहता है। चौबे को यह प्रभार मिलना कई मायनों में उचित कदम लगता है। खासकर उनके अनुभव को देखकर। चौबे राजधानी रांची के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं और सर्वाधिक विकास इसी क्षेत्र का होना है। इसके अलावा आवास बोर्ड के एमडी के तौर पर भी काम किया है और नगर निगम के नगर आयुक्त भी रह चुके हैं। राजधानी रांची के साथ-साथ नगर विकास विभाग की गतिविधियों से उनका पुराना वास्ता रहा है और अब नए विभाग में उनके लिए समझने-बूझने टाइप की समस्या नहीं है। उनसे उम्मीदें भी बहुत हैं और अब देखना है कि वे कितना खरा उतरते हैं।