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जानिए, कौन हैं गिरधारी राम गौंझू, जिन्हें मरणोपरांत भारत सरकार ने दिया पद्मश्री

Padmashree award Girdhari Ram gonjhu झारखंड रत्न डॉ. गिरधारी राम गौंझू का झारखंडी साहित्य से प्रेम अविस्मरणीय था साहित्य प्रेमियों के बीच आज भी वो अपने किताबों के माध्यम से जीवित हैं और नई पीढ़ी उनसे प्रेरणा लेती है।

By Madhukar KumarEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 09:27 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 09:27 PM (IST)
जानिए, कौन हैं गिरधारी राम गौंझू, जिन्हें मरणोपरांत भारत सरकार ने दिया पद्मश्री
Padmashree award Girdhari Ram gonjhu झारखंडी साहित्य के प्रति उनका लगाव उन्हें हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रखेगा

रांची, डिजिटल डेस्क। नागपुरी साहित्य संसार के सितारे डा. गिरधारी राम गौंझू को भारत सरकार ने मरणोपरांत पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। सांस लेने में दिक्कत के कारण रिम्स में उनकी मौत हो गई थी। वह किडनी की समस्या से जूझ रहे थे। उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे व एक बेटी है। गिरिधारी राम गौंझू को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान दिया गया है।

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अपने आप में इनसाइक्लोपीडिया थे डॉ. गौंझू

14 दिसंबर साल 2011 को रांची विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत हो चुके गिरधारी राम गौंझू की कई किताबें भी प्रकाशित हुई है। वो हमेशा से सामाजिक और सांस्कृतिक काम भी करते थे। उन्हें जानने वाले कहते हैं कि गिरधारी राम गौंझू अपने आप में पूरी की पूरी इनसिक्लोपीडिया थे। झारखंडी वाद्य यंत्र, नागपुरिया संस्कृति, नृत्य, गीतों पर किताब लिखकर उन्होंने झारखंड की अविस्मरणीय विरासत को हमेशा संजोने का काम किया है।

झारखंड रत्न पुरस्कार से सम्मानित थे डॉ. गौंझू

साल 1949 में खूंटी के बेलवादाग में जन्मे गिरिधारी राम गौंझू ने 1975 में परमवीर अलबर्ट एक्का मेमोरियल कॉलेज चैनपुर गुमला से पढ़ाने का काम शुरु किया था। इसके बाद वो गोस्सनर कॉलेज, रांची कॉलेज रांची विवि जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में अध्यापन का काम किया। डॉ. गौंझू ने अपनी किताबों के माध्यम से नागपुरी साहित्य को ना सिर्फ संजोया है, बल्कि समृद्द भी किया है। साथ ही 1988 में फीदर पीटर नवरंगी व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषय पर शोध किया था, बाद में उन्हें झारखंड रत्न सहित कई सम्मान से सम्मानित भी किया गया।

झारखंडी साहित्य से था लगाव

डॉ. गौंझू को जानने वाले कहते हैं कि उन्हें उन्हें झारखंड की भाषा, संस्कृति और साहित्य से बहुत लगाव था। यही वजह थी कि उन्होंने अपने किताब के माध्यम से नागपुरी साहित्य का पूरी दुनिया के सामने मान बढ़ाया। वो हमेशा झारखंडी साहित्य के विकास के लिए तत्पर रहते थे। यही वजह थी कि उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति उनसे प्रभावित होता था। कहते हैं कि जो भी व्यक्ति उनके पास जाता वो कभी भी उसे निराश कर के नहीं भेजते थे।

साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं डॉ. गौंझू

डॉ. गौंझू की साहित्य के प्रति लगाव कितना गहरा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं, कि वो 72 वर्ष की उम्र म भी साहित्य साधना में रमे रहते थे। अपने अंतिम समय में भी उन्होंने कभी साहित्य को नहीं छोड़ा, यही वजह है कि वो आज भी पुस्तकों के जरिए साहित्य प्रेमियों के दिल में जीवित हैं।


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