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झारखंड के गांधी पद्मश्री अशोक भगत को डाॅक्टर आफ लैटर्स की मानद उपाधि

Padamshree Ashok Bhagat. पद्मश्री अशोक भगत को यह उपाधि एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम की ओर से विश्‍वविद्यालय के दीक्षा समारोह में दी जाएगी।

By Alok ShahiEdited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 10:38 AM (IST)Updated: Tue, 19 Feb 2019 10:38 AM (IST)
झारखंड के गांधी पद्मश्री अशोक भगत को डाॅक्टर आफ लैटर्स की मानद उपाधि
झारखंड के गांधी पद्मश्री अशोक भगत को डाॅक्टर आफ लैटर्स की मानद उपाधि

रांची, जासं। झारखंड के गांधी के रूप में ख्‍यातिलब्‍ध और विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत को एसजीटी विश्वविद्यालय गुरुग्राम ने डाॅक्टर आफ लैटर्स की मानद उपाधि से सम्मानित करने की घोषणा की है। यह उपाधि उन्‍हें 20 फरवरी को विश्‍वविद्यालय के दीक्षा समारोह में दी जाएगी। अशोक भगत को यह उपाधि सामाजिक क्षेत्र में उनके द्वारा किए जा रहे सराहनीय कार्यों के लिए दी जा रही है। बताया गया है कि गरीबों और वंचितों के लिए उनकी ओर से चलाए जा रहे कई संगठनात्‍मक कार्यों ने लोगों का जीवनस्‍तर उठाने में भरसक मदद की है।

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झारखंड के गांधी अशोक भगत को जानें
पद्मश्री अशोक भगत प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और विकास भारती बिशुनपुर के संस्थापक सचिव हैं, जो 1983 में एक गैर सरकारी संगठन है, जो झारखंड की ग्रामीण आबादी के उत्थान के लिए काम कर रहा है। 1951 में जन्मे, बिशुनपुर, जिला, गुमला, झारखंड में पूर्ण समर्पण के साथ काम करते हैं, उन्होंने राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री और कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। उन्हें झारखंड राज्य के लिए स्वच्छ भारत अभियान अभियान के नेता के रूप में नामित किया गया है। उन्होंने आदिवासी और दलित लोगों के बीच परिवर्तन लाने में अनुकरणीय और आश्चर्यजनक कार्य किया है। वे लोगों के पास जाओ, उनके साथ रहो, उनसे सीखो और करो, उनकी जरूरतों और मांग के अनुसार काम करो पर विश्वास करते हैं और इसी सिद्धांत पर काम करते हैं।

अशोक भगत, राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) और यूपी में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हो गए। उन्होंने 1972 में उत्तर प्रदेश में एक युवा कार्यकर्ता के रूप में अपना सार्वजनिक करियर शुरू किया। उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए इलाहाबाद, लखनऊ, गोरखपुर और वाराणसी में युवा आंदोलनों की शुरुआत की।

उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के आदिवासियों के विकास के लिए एकीकृत मॉडल तैयार किया जो स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा, कृषि, आय सृजन, वन संसाधनों का संरक्षण, ग्रामीण प्रौद्योगिकी और सामाजिक विवेक, एक ऐसा मॉडल है जो आर्थिक रूप से व्यवहार्य, स्थानीय रूप से स्वीकार्य और पारिस्थितिकी के अनुकूल है। टिकाऊ और प्रतिकृति। मॉडल का आधार "लोगों की पहल और भागीदारी के साथ कुल विकास के माध्यम से कुल परिवर्तन" है।

उनके मॉडल का प्रभाव: इनके प्रयास से झारखंड के लगभग एक लाख परिवारों की आय के स्तर को बढ़ाने में मदद मिली है। 1,00,000 से अधिक परिवारों के रोजगार के लिए स्‍वनियोजन में वृद्धि हुई है। 30000 से अधिक युवाओं को स्वरोजगार दिया गया है। इन्‍होंने सामुदायिक स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत किया। उनके प्रयासों के कारण, सभी बच्चे स्कूलों में जा रहे हैं और हिंसा की घटनाओं को वामपंथी उग्रवादी समूहों द्वारा कम कर दिया गया है।

उन्होंने नारा दिया : ना लोकसभा ना विधानसभा, सबसे उंची ग्राम सभा। इसकी गूंज अब भी हर गांव में सुनी जा सकती है। 2016 में अशोक भगत को हरियाणा सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था। स्थानीय प्रशासन में अपने अनुभवों को साझा करने के लिए एक मुख्य संसाधन व्यक्ति के रूप में और हरियाणा राज्य के निर्वाचित सदस्यों के लिए योजना और प्रशिक्षण का मार्गदर्शन किया।

सामाजिक क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान और निस्वार्थ काम के लिए उन्हें भारत के विभिन्न राज्यों द्वारा कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। भारत सरकार ने उन्हें 2015 में समाज सेवा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए चौथा सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया।


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