झारखंड: एक फीसद लोगों को भी नहीं मिला 100 दिनों का रोजगार, मनरेगा का बुरा हाल
Mgnarega. झारखंड में 30.17 लाख सक्रिय जॉबकार्डधारियों में से 11895 लोगों को ही 100 दिनों का काम मिल सका। राज्य में 5.24 लाख में से 1.91 लाख योजनाएं ही अबतक धरातल पर उतर सकीं।
रांची, राज्य ब्यूरो। सरकार भले ही मनरेगा की 87.56 फीसद राशि खर्चकर मनरेगा की विभिन्न योजनाओं के तहत 416.22 लाख मानव दिवस सृजन का दावा करे, परंतु यह योजना झारखंड में अपने मूल उद्देश्यों पर यह खरा नहीं उतर रहा। ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत निहित है। इससे इतर वित्तीय वर्ष के इस 10 महीनों में आधा फीसद जॉबकार्डधारियों को 100 दिनों का रोजगार नहीं मिल सका है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय की 23 जनवरी 2019 की रिपोर्ट इसकी गवाही देती है। रिपोर्ट पर गौर करें तो झारखंड में जॉबकार्डधारियों की कुल संख्या 44.99 लाख है। इनमें से महज 23.51 लाख ही सक्रिय है। कहने को राज्य में मनरेगा से जुड़े कामगारों की संख्या 81.12 लाख है, जिनमें से 30.17 लाख ही सक्रिय हैं। इनमें से महज 11895 (.394 फीसद) लोगों को ही 100 दिनों का रोजगार मयस्सर हो सका है। 100 दिनों के रोजगार का यह ग्राफ पिछले वर्षों में लगातार गिरा है। 2014-15 से लेकर 2017-18 तक की बात करें तो इन वित्तीय वर्षों में क्रमश : 82416, 174276, 37149 तथा 57524 लोगों को 100 दिनों का रोजगार मिला।
रांची में सर्वाधिक 1146 लोगों को मिला रोजगार, पाकुड़ सबसे पीछे : 100 दिनों के रोजगार की बात करें तो रांची में सर्वाधिक 1146 लोगों को 100 दिनों का रोजगार मिला। इसके बाद क्रमिक रूप से देवघर में 957, दुमका में 872, चतरा में 854, जबकि सिमडेगा में 803 लोगों को 100 दिनों का काम मनरेगा के तहत मिला। पाकुड़ इस मामले में सबसे फिसड्डी रहा है, जहां महज 126 लोगों को काम मिला। इसके बाद क्रमश: पूर्वी सिंहभूम में 135, धनबाद में 185, लातेहार में 187 तथा सरायकेला-खरसावां में 193 लोगों को 100 दिनों का काम मिला।
कम मजदूरी और हड़ताल से भी गिरा ग्राफ : शहरी क्षेत्रों में जहां एक दिन की मजदूरी 300 से 400 और ग्रामीण क्षेत्रों में 250 से 300 रुपये मिल रही है, वहीं मनरेगा के तहत महज 167.99 रुपये दिए जा रहे हैं। कम मजदूरी, वह भी समय पर नहीं मिलने के कारण ग्रामीणों की दिलचस्पी मनरेगा के प्रति घटती जा रही है। यूं कहें कि शहर से काफी दूर बसे गांवों के लोग ही इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। इधर, मनरेगाकर्मियों की दो महीने की हड़ताल का भी असर मनरेगा की योजनाओं पर पड़ा है।