झारखंड से ही बजा था गुलामी के खिलाफ आजादी का पहला बिगुल
दीपाटोली स्थित वार मेमोरियल में आज भी आजादी की लाड़ई में झारखंड के योगदान के सबूत रखे हुए हैं। जिन्हें हर आम आदमी भी देख सकता है।
रांची। जंगलों और पहाड़ों से घिरे झारखंड की जमीन का जर्रा-जर्रा आजादी के लिए लड़ने वाले रणबांकुरों की कहानियों से भरा पड़ा है। इस इलाके ने कभी किसी की गुलामी कबूल नहीं की। संताल, भील, कोल व अन्य आदिवासियों ने तीर-भालों और पारंपरिक हथियारों से ऐसा संग्राम छेड़ा कि बंदूकें भी पानी मांगने लगीं। आजादी के महासंग्राम में जब देश के विभिन्न हिस्सों में अंग्रेजों के ताकत के खिलाफ सर उठाने में हिचकिचा रहे थे उससे काफी पहले ही यहां के जांबाज अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। यह संग्राम इस इलाके में 1857 के सिपाही विद्रोह के भी लगभग 100 साल पहले शुरू हो गया था।
या यूं कहें कि 1765 में जब विधिवत रूप से ब्रिटिश हुकूमत ने छोटानागपुर क्षेत्र का अधिग्रहण किया उसके पहले से ही यहां गुलामी के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी। इसके बाद चुआड़ विद्रोह, पहाड़िया विद्रोह, कोल विद्रोह, तिलका मांझी का विद्रोह, सिदो-कान्हो और चांद भैरव का संघर्ष, तमाड़ विद्रोह, बिरसा मुंडा, मानकी मुंडा, चेरो विद्रोह, भोगता विद्रोह आदि के बारे में सहेजी गई जानकारियां यहां चित्रों के साथ म्यूजियम में रखी गई हैं।
दीपाटोली स्थित वार मेमोरियल के संग्रहालय में सहेजी गई हैं वीरों की यादें
राजधानी रांची के दीपाटोली स्थित वार मेमोरियल के संग्रहालय में 1722 के पहाड़िया विद्रोह से लेकर करगिल बिरसा मुंडा तक के आजादी के विभिन्न नायकों की कहानियां सहेजी गई हैं। यहां आकर झारखंड के इतिहास से परिचित हो सकते हैं। गुलामी और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों के हथियार भी देख सकते हैं। यहां घुसते ही आप अपनी माटी पर गर्व किए बिना नहीं रह सकेंगे। लगभग आधा किलोमीटर क्षेत्र में फैले वार मेमोरियल की देखरेख महार रेजिमेंट करती है। यहां आप सुबह से शाम के बीच कभी भी आ सकते हैं।
निश्शुल्क लाइट एंड साउंड शो का आनंद लेते हुए समझें आजादी के संघर्ष को
वार मेमोरियल में शुक्रवार व शनिवार को शाम सात बजे से एक घंटे तक लाइट एंड साउंड सिस्टम चलता है। यहां शत्रुघ्न सिन्हा की रौबदार आवाज में इलेक्ट्रॉनिक रेखाचित्रों के माध्यम से पहाड़िया विद्रोह से लेकर करगिल युद्ध तक की कहानी आप में देशप्रेम और गौरव का जज्बा भर देगी।