मंत्री सरयू राय ने सीएम को लिखा, महाधिवक्ता को पद से हटाएं
मंत्री सरयू राय ने महाधिवक्ता पर हाई कोर्ट को गलत जानकारी देने के मामले में हटाने की मांग करते हुए मुख्यमंत्री रघुवर दास को चिट्ठी लिखी है।
रांची, राज्य ब्यूरो। हाल ही में खनन कंपनियों के जुर्माने को लेकर मंत्री सरयू राय के निशाने पर आए राज्य सरकार के महाधिवक्ता अजीत कुमार एक बार फिर विवादों में हैं। मंत्री सरयू राय ने उनके कारनामे की लंबी फेहरिश्त मुख्यमंत्री रघुवर दास को भेजी है। जिसमें आरोप लगाया गया है कि जमशेदपुर के दलजीत सिंह नामक एक व्यक्ति की जमीन की जमाबंदी रद करने के लिए महाधिवक्ता ने सरकार को गलत जानकारी दी।
दलजीत सिंह प्रदेश भाजपा के पूर्व प्रवक्ता अमरप्रीत सिंह काले के बड़े भाई हैं। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने जिक्र किया है कि हाई कोर्ट को जब यह पता चला कि महाधिवक्ता ने गलत जानकारी दी है तो इसपर न्यायाधीश ने कड़ी नाराजगी जाहिर की और शपथपत्र देने को कहा। इस आदेश के बाद महाधिवक्ता ने सरकार को जानकारी दी कि उनके पुराने पत्र को रद माना जाए।
यह जानकारी भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग और जमशेदपुर के उपायुक्त को भी दी गई। मंत्री सरयू राय ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में जिक्र किया है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी महाधिवक्ता गलत जानकारी दे चुके हैं। खनन कंपनी शाह ब्रदर्स और मेसर्स एनकेपीके द्वारा अवैध खनन की वजह से लगाए गए 250 करोड़ का जुर्माना किश्तों में वसूलने पर सहमति की जानकारी उन्होंने दी थी जबकि यह गलत था।
आचरण गरिमा के अनुकूल नहीं : मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र में सरयू राय ने जिक्र किया है कि महाधिवक्ता का आचरण उनकी पद की गरिमा के अनुकूल नहीं है। वे सरकार के मंतव्य के बारे में उच्च न्यायालय को गलत सूचना देने और उच्च न्यायालय के बारे में सरकार को गलत सूचना देने के दोषी हैं। पता नहीं कितने मामलों में उन्होंने राज्य सरकार को ऐसा ही मंतव्य दिया होगा। ऐसे में उन्हें शीघ्र पद से हटाया जाए।
जमशेदपुर सर्किट हाउस एरिया की पांच एकड़ जमीन का मामला : पत्र के मुताबिक प्रतिवादी दलजीत सिंह ने जमशेदपुर के सर्किट हाउस एरिया में करीब पांच एकड़ जमीन का क्रय नब्बे के दशक में किया था। टाटा स्टील के साथ विवाद था कि यह जमीन टाटा लीज की है या रैयती है। 2012 में हाई कोर्ट के आदेश पर दलजीत सिंह के पक्ष में जमाबंदी हुई।
इस बीच मुंशी रजक के नाम से एक आवेदन राज्य सरकार को मिला। जिसमें इसे सरकारी जमीन बताते हुए जमाबंदी रद करने का आवेदन दिया गया। यह आवेदन बेनामी था। बाद में उपायुक्त से मंतव्य मांगा गया। इसके बाद राज्य सरकार ने हस्तक्षेप याचिका दायर करने का निर्देश दिया। उच्च न्यायालय के स्टैंडिंग काउंसिल (लैंड सिलिंग) विकास किशोर प्रसाद ने मंतव्य दिया कि यह कानून के विरूद्ध होगा। इसके बाद भी उपायुक्त ने हस्तक्षेप याचिका दायर किया जो विचाराधीन है।
महाधिवक्ता बोले, मैंने सही किया है : महाधिवक्ता अजीत कुमार ने कहा है कि मंत्री के पत्र पर वे इसलिए कोई टिप्पणी नहीं कर सकते, क्योंकि यह मामला अभी हाई कोर्ट में विचाराधीन है। संबंधित भूमि पर सरकार का पूर्ण अधिकार है, जिसपर हाई कोर्ट को आदेश पारित करना है। जब मैं अपर महाधिवक्ता के पद पर था तो इस संबंध में 2017 में पत्र लिखा गया था, जो पूर्व के गलत आदेशों पर था।
जब कभी सरकार को ऐसा प्रतीत हो कि राजस्व पदाधिकारी द्वारा पूर्व में कोई गलत आदेश पारित किया गया है तो सरकारी भूमि पर दावा करने के निमित्त कानून प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने के लिए सरकार स्वतंत्र होती है। मेरे द्वारा इसी प्रकार का एक निवेदन हाई कोर्ट से किया गया था। चूंकि मेरे अनुसार सरकार अपने में निहित भूमि को सुरक्षित करने के लिए कोई प्रावधानिक कार्रवाई कर सकती है, इसलिए उपरोक्त पत्र लिखा गया था। हाई कोर्ट की टिप्पणी या मौखिक प्रतिक्रिया के संबंध में मुझे कुछ नहीं कहना है, क्योंकि मामले में अंतिम सुनवाई जारी है। मैंने किसी भी प्रकार से किसी भी मामले में सरकार को कभी भी गुमराह नहीं किया है।