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बच्चों को सुरक्षित माहौल दिलाने के लिए निभानी होगी सक्रिय भूमिका

बाल संरक्षण कानून के अनुसार यदि बाल यौन शोषण का कोई मामला सामने आता है तो पुलिस को 24 घंटे के अंदर उस पर कार्रवाई करनी होगी।

By Gaurav TiwariEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 03:00 PM (IST)
बच्चों को सुरक्षित माहौल दिलाने के लिए निभानी होगी सक्रिय भूमिका

हम देश की आजादी की 71वीं सालगिरह मना रहे हैं। ऐसे में समाज के हर वर्ग के साथ बच्चों की आजादी और अधिकार पर भी बात लाजिमी है। राजधानी रांची समेत पूरे झारखंड में बाल संरक्षण आयोग और सरकार ने इस दिशा में सराहनीय प्रयास किए हैं। सुरक्षा के अलावा उनके पढऩे-लिखने, खेलने, खुश रहने, खुली हवा में सांस लेने और जिम्मेदार नागरिक बनने के लक्ष्य और अधिकारों का हमें ख्याल रखना है। हमारे सामने अक्सर बच्चों के यौन शोषण से जुड़ी खबरें आती हैं।

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बच्चों को ये मालूम नहीं होता कि उन्हें अगर उनके साथ गलत हो रहा है तो क्या करना चाहिए। इसलिए परिवार के सदस्यों के लिए जरूरी है कि घर के बच्चों को ये सिखाया जाए कि किसी भी बाहरी व्यक्ति पर अगर उन्हें संदेह हो तो तुरंत अपने माता-पिता को बताएं। ऐसी बातें घर की चारदीवारी के अंदर ही रहनी चाहिए। बदलते वक्त के साथ ये जरूरी हो गया है कि बच्चे भी अपनी सुरक्षा को लेकर अलर्ट रहें। बाल संरक्षण आयोग लगातार इस दिशा में प्रयास कर रहा है।

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बच्चों को सुरक्षित माहौल दिलाने की कोशिश
बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए साल 2012 में प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज (पॉक्सो ) कानून बनाया गया। इसे पारित कराने से पहले महिला और बाल विकास मंत्रालय ने एक सर्वेक्षण किया जिसके अनुसार आधे से ज्यादा बच्चे किसी ना किसी रूप में यौन उत्पीड़न का शिकार हुए थे। कानून का मकसद बच्चों को एक सुरक्षित माहौल मुहैया कराना और बच्चों के साथ यौन अपराध करने वालों को जल्द से जल्द सजा दिलाना है। आयोग की कोशिश है कि बच्चों को सुरक्षित माहौल मिले। उनके प्रति होने वाले अपराध में दोषियों को कड़ी सजा मिले और इन अपराधों पर रोक लगे।

बच्चों की कोमल भावनाओं का ख्याल रखते हुए उनके हितों की रक्षा

बाल संरक्षण कानून के अनुसार यदि बाल यौन शोषण का कोई मामला सामने आता है तो पुलिस को 24 घंटे के अंदर उस पर कार्रवाई करनी होगी। बच्चे की पहचान को सुरक्षित रखना भी अनिवार्य है। आयोग इन सब नियमों के कड़ाई से पालन के लिए लगातार काम करता है। कानूनी कार्रवाई के कारण बच्चे को मानसिक रूप से कष्ट ना पहुंचे, इसके लिए उसे बार बार गवाही देने के लिए भी नहीं बुलाया जा सकता। बाल अपराध के मामले में भी ये बातें लागू होती हैं।

बाल श्रम पर रोक के लिए लगातार कार्रवाई
बच्चों की देखभाल और उनका कल्याण माता-पिता का प्रमुख दायित्व होता है। सरकार की भी अपनी जिम्मेदारी है। भावी पीढ़ी के कल्याण की चिंता समाज और सरकार दोनों को करनी है। बाल श्रम पर रोकथाम के लिए कानून बनाए गए हैं। समय-समय पर इस दिशा में काम होता है। बच्चों को मुक्त कराया जाता है। उनके पुनर्वास और पढ़ाई-लिखाई की भी व्यवस्था सरकार करती है।

छात्रावासों, बाल संरक्षण गृहों का लगातार निरीक्षण
स्कूल-कॉलेजों, बालिका छात्रावासों आदि का भी आयोग के सदस्य नियमित रूप से निरीक्षण करते हैं, ताकि वहां रहने वाले किशोर-किशोरियों और बच्चों के साथ होने वाले व्यवहार और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की निगरानी की जा सके। कोई शिकायत मिलने पर तत्काल कार्रवाई की जाती है। बाल संरक्षण गृहों का भी लगातार निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट आयोग सरकार को देता है। पुलिस व अधिकारियों को समय-समय पर जरूरी कार्रवाई के निर्देश भी दिए जाते हैं।

कहीं भी बच्चों की तस्करी या खरीदे-बेचे जाने की सूचना हो तो तुरत करें संपर्क
सामाजिक कारणों से बहुत से बच्चे भटक जाते हैं। ऐसे अनेक बच्चे अपराधी गिरोहों के चंगुल में फंस जाते हैं। झारखंड में गरीबी और विषमताओं के बीच बच्चों की खरीद-बिक्री और मजदूरी के लिए तस्करी के मामले भी सामने आते हैं। ऐसे किसी भी मामले के संज्ञान में आने पर बाल संरक्षण आयोग कार्रवाई करता है। किसी भी व्यक्ति को ऐसी कोई भी जानकारी मिले तो तुरंत आयोग से संपर्क कर सकते हैं।

- आरती कुंजूर, अध्यक्ष, बाल संरक्षण आयोग, झारखंड

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