राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सरकार का जोर नामांकन पर, गुणवत्ता पर नहीं
सरकारी और प्राइवेट दोनों ही स्कूल राष्ट्रीय संपत्ति है। एक-दूसरे के सहयोग से दोनों आगे बढ़ सकते हैं।
सरकार का जोर सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) पर है, गुणवत्ता पर नहीं। आंकड़ों की बाजीगरी हो रही है। ऐसा प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा में भी हो रहा है। इससे स्कूल-कॉलेजों में नामांकन तो बढ़ा, लेकिन बात शिक्षा की गुणवत्ता पर अटक गई। दैनिक जागरण की ओर से आयोजित 'माइ सिटी माइ प्राइड' अभियान के तहत शिक्षा पर हुई राउंडटेबल चर्चा में ये बातें उभरकर सामने आईं।
शिक्षा विशेषज्ञों ने बड़ी ही बेबाकी से कहा कि जीईआर के साथ छात्र-शिक्षक अनुपात भी दुरुस्त हो तो स्कूल-कॉलेजों से निकलने वाले छात्रों के हाथों में डिग्री के साथ-साथ हुनर और रोजगार प्राप्त करनेके बेहतर अवसर भी होंगे। सरकार का जोर शिक्षकों की समय पर और सही नियुक्ति पर होना चाहिए।
अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी
जागरण की इस चर्चा में झारखंड एकेडमिक काउंसिल के परीक्षा नियंत्रक डॉ. सत्यजीत सिंह, डीएवीग्रुप के निदेशक एमके सिन्हा, डीपीएस के प्राचार्य डॉ. राम सिंह, रांची विवि के सूचना अधिकारी सहपीजी पॉलिटिकल साइंस विभाग के शिक्षक डॉ. धीरेंद्र त्रिपाठी, सेंट जेवियर्स कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कमल कुमार बोस, डॉ. श्यामा प्रसाद प्रसाद मुखर्जी विवि के डॉ. अनुराग त्रिपाठी, रांची विवि पीजी फिजिक्स विभाग के डॉ. राजकुमार सिंह, रांची विवि के रेडियो खांची के निदेशक सहपीजी जूलॉजी के शिक्षक डॉ. आनंद ठाकुर जैसे विशेषज्ञ शामिल हुए।
कुछ मुख्य बातें जो चर्चा में निकल कर आई
- सरकारी स्कूल के शिक्षकों में गुणवत्ता की कमी नहीं, कमी है व्यवस्था की।
- सरकारी स्कूलों में प्रतिभा की कमी नहीं, सरकारी तंत्र नहीं करता प्रचार
- सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूल एक दूसरे के संसाधन का करें उपयोग
- शिक्षकों की कमी पूरी हो तो बदलेगा शिक्षा का परिदृश्य
- छात्रों में संस्कार व सृजनशीलता की भी जरुरत
- बिना तैयारी के सीबीसीएस लागू, पहले संसाधन कराएं उपलब्ध
- सेंट्रल इक्यूपमेंट सिस्टम बनाएं ताकि सभी को मिले लाभ
- विवि को दिखावे की ऑटोनॉमी नहीं, सही मायने में मिले शक्ति
- प्राइवेट स्कूलों से कोई परेशानी है तो सरकार दे निर्देश, करेंगे पालन
मिले अधिकार, नहीं चाहिए दिखावे की ऑटोनॉमी
विवि में वीसी को किसी भी स्तर की नियुक्ति की शक्ति नहीं है। नामांकन से लेकर शिक्षकों और प्रोन्नति सभी चीजें सरकार के हाथों में है। विश्वविद्यालयों के पास दिखावे की ऑटोनामी है। नियुक्ति तक की शक्ति नहीं है। कॉलेजों में दस साल से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है। हर साल जितने पद रिक्त होते हैं, उस पर शिक्षकों की नियुक्ति हो जानी चाहिए। दस वर्षों से रेगुलेशन ही नहीं बन पाया है। लोगों में वर्क कल्चर का भी अभाव है, जब तक शिक्षा को पेशे के रूप में लेंगे सही तरीके से कार्य निष्पादन कठिन होगा। हमें शिक्षा को डिग्री केंद्रित न बना नॉलेज केंद्रित बनाना होगा।
- अनुराग त्रिपाठी, प्रोफेसर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि, रांची
समस्या से अधिक समाधान पर दें ध्यान
च्वॉइस बेस्ड सिस्टम लागू हुआ, लेकिन खामियां रह गई हैं। इसमें सुधार की जरुरत है। तकनीक बदल रहा है। अब हमें समस्याओं से ज्यादा समाधान पर कार्य करना होगा। कई कॉलेजों में उपकरण इस्तेमाल नहीं होते हैं तो कहीं छात्र उपकरण के बिना रिसर्च नहीं कर पाते हैं। जरूरत है सेंट्रल इक्यूपमेंट सिस्टम बनाने की, ताकि इसका सभी समुचित उपयोग कर सकें। मैन पावर की कमी सभी क्षेत्रों में है, लेकिन सहभागिता का सिस्टम अपनाना होगा। ऐसा कर कमी को दूर करते हुए बेहतर आउटपुट दे सकते हैं। शिक्षा को डिजिटल स्तर पर काफी मजबूत करने की आवश्यकता है। ताकि गांव के बच्चों को भी बेहतर और समानशिक्षा प्राप्त हो सके।
- डॉ. आनंद ठाकुर, प्रोफेसर, पीजी जूलॉजी, रांची विवि
शिक्षकों की कमी को करें पूरा
आज 90 प्रतिशत कॉलेजों में शिक्षकों की कमी है। सरकार अनुबंध पर शिक्षकों को नियुक्त कर रही है। पहले तो ऐसे शिक्षकों को बहुत ही कम पैसे देने की बात हुई है और दूसरी सबसे अहम है कि सात माह बाद भी इन्हें पैसे ही नहीं मिले हैं। ऐसे में ये अनुबंध वाले शिक्षक कितनी मेहनत और लगन से बच्चों को पढ़ाएंगे। कॉलेजों में दो शिफ्टों में कक्षाएं चलती हैं, पर शिक्षक सीमित हैं। वह किस प्रकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देंगे। स्कूलों में शिक्षकों को शिक्षण के अलावा अन्य कामों में भी लगाया जाता है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। - डॉ. कमल कुमार बोस, विभागाध्यक्ष हिंदी, सेंट जेवियर्स कॉलेज
एक-दूसरे के सहयोग से बढ़ें आगे
सरकारी और प्राइवेट दोनों ही स्कूल राष्ट्रीय संपत्ति है। एक-दूसरे के सहयोग से दोनों आगे बढ़ सकते हैं। कोई किसी को पूरी तरह अडॉप्ट नहीं कर सकती है। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से शिक्षा की गुणवत्ता जरूर निखरेगी। लर्निंग सहित अन्य एक्टिविटीज एक्सचेंज प्रोग्राम को बढ़ावा मिलना चाहिए। एक-दूसरे स्कूलों में जाएं और वहां की शिक्षा प्रणाली को समझें। आधारभूत संरचनाओं में भी सुधार की आवश्यकता है। प्राइवेट स्कूलों जैसी सुविधाएं सरकारी स्कूलों में भी उपलब्ध कराने के साथ उनकी निगरानी भी हो।
- डॉ. राम सिंह, प्राचार्य, डीपीएस, रांची
अडॉप्ट के बाद हो सही मॉनिटरिंग
समस्याएं हर जगह हैं, बावजूद इसके रांची व आसपास के छात्र-छात्राएं आइआइटी, मेडिकल, सिविल सेवा जैसी प्रवेश परीक्षाओं में अच्छी सफलता दर्ज कर रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों द्वारा सरकारी स्कूलों को अडॉप्ट करने की बात हुई, लेकिन इसकी सही तरीके से मॉनिटरिंग नहीं हो सकी। इस दिशा में सुधार की जरूरत है। सरकारी स्कूल के शिक्षकों की गुणवत्ता में कमी नहीं है, कमी है व्यवस्था की। उपलब्ध संसाधन का सही तरीके से उपयोग हो तो शिक्षा का परिदृश्य बदल जाएगा। - एमके सिन्हा, निदेशक, डीएवी ग्रुप
सेकेंड शिफ्ट अच्छी, लेकिन मिले सुविधा
सेकेंड शिफ्ट शुरू होना अच्छा है। लेकिन कॉलेज और पीजी विभागों में उपलब्ध लैब और लाइब्रेरी फर्स्ट शिफ्ट के विद्यार्थियों के लिए ही पूरा नहीं हो पाता है तो सेकेंड शिफ्ट वाले को यह सुविधा कैसे मिल पाएगा। दूसरी ओर सेकेंड शिफ्ट में शिक्षकों की नियुक्ति हो गई, लेकिन नन टीचिंग स्टाफ नहीं हैं। ऐसे में लैब का उपयोग करना मुश्किल है। पहले से नियुक्त कर्मचारियों को अतिरिक्त काम के पैसे नहीं मिल रहे हैं। इसलिए वे अतिरिक्त समय नहीं देते हैं। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा में शिक्षक-छात्र रेशियो इतना अधिक असंतुलित है कि कक्षा में सबसे पीछे बैठने वाले विद्यार्थी के पास शिक्षक का ध्यान बमुश्किल से पहुंच पाता है। कॉलर माइक की सुविधा हो तो कुछ हद तक इस समस्या का समाधान संभव है।
- डॉ. राजकुमार, पीजी फिजिक्स विभाग, रांची विवि
सरकारी तंत्र भी करे प्रचार-प्रसार
कुछ समस्याएं व्यावहारिक हैं, वहीं कुछ का हम मन से समाधान नहीं चाहते हैं। शिक्षकों की कमी है, लेकिन इस कमी के बावजूद भी हम शिक्षकों को बच्चों को जितना देना चाहिए वह नहीं दे रहे हैं। प्राइवेट स्कूल बच्चों को खूब प्रमोट करते हैं, जबकि सरकारी तंत्र अपने स्कूल के बच्चों को प्रमोट करने में पीछे रह जाता है। शिक्षा विभाग के प्रधान सचिवकी पहल पर मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश के लिए आकांक्षा कार्यक्रम चलाया जा रहा है। बच्चे सफल भी हो रहे हैं। इसी तरह जैक अध्यक्ष व सचिव के प्रयास से जैक का सारा कार्य सफलतापूर्वक ऑनलाइन हो गया। इसके प्रचार-प्रसार से छात्र-छात्राओं को और अधिक सुविधा मिलेगी। - डॉ. सत्यजीत सिंह, परीक्षा नियंत्रक, जैक
शिक्षा के साथ संस्कार व सृजनशीलता भी जरूरी
छात्रों को शिक्षा के साथ संस्कार और सृजनशीलता की जरूरत है। ऐसे गुण इनमें प्राथमिक स्तर से ही डालना पड़ेगा। धौंस दिखाकर और आवश्यक कर देने से बच्चों में संस्कार नहीं आएगा। सिलेबस तैयार करते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसका फायदा छात्रों को किस रूप में मिलेगा। कैंपस में उच्च शिक्षा में जीवंतता का अभाव दिखता है। झारखंड के विद्यार्थी शिक्षा के लिए लालायित रहते हैं। यहां प्रतिभा की कमी नहीं है। इन्हें सुविधा व सही दिशा देने कीजरुरत है। - डॉ. धीरेंद्र त्रिपाठी, पीजी राजनीतिशास्त्र विभाग, रांची विवि
अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी