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राउंडटेबल कांफ्रेंस : स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, सुरक्षा, इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर और इकोनॉमी में ऐसे सुधरेगा रांची

रांची समेत 10 चुनिंदा शहरों में चलाए जा रहे 'माय सिटी माय प्राइड' अभियान के तहत शनिवार को स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा, आधारभूत संरचना और अर्थव्यवस्था पर विमर्श हुआ ।

By Krishan KumarEdited By: Published: Sun, 09 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 09 Sep 2018 06:00 AM (IST)
राउंडटेबल कांफ्रेंस : स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, सुरक्षा, इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर और इकोनॉमी में ऐसे सुधरेगा रांची

जागरण संवाददाता, रांची 

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दैनिक जागरण, फेसबुक और रेडियो सिटी की ओर से देश के 10 चुनिंदा शहरों में चलाए जा रहे 'माय सिटी माय प्राइड' अभियान के तहत शनिवार को दैनिक जागरण कार्यालय में राउंड टेबल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमें शामिल विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने शहर के विकास को लेकर अपनी उम्‍मीदें साझा की । स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा, आधारभूत संरचना और अर्थव्यवस्था पर जब विमर्श शुरू हुआ तो शहर के विकास की उम्मीदों के साथ शहर को लेकर चिंताएं भी उभर कर सामने आईं।

चिकित्सकों ने अस्पतालों की हालत सुधारने व 'मेडिकल प्रोटेक्शन बिल' लागू करने पर जोर दिया। वहीं सुरक्षा विशेषज्ञों ने महिला सुरक्षा से लेकर शहर में अपराध की घटनाओं पर चर्चा करते हुए अपराधमुक्त शहर की परिकल्पना को साकार करने पर जोर दिया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत को लेकर भी उम्मीदें जताईं गईं। कहा गया योजनाएं व नीतियां बनाने में आम आदमी और विशेषज्ञों की भूमिका भी तय होनी चाहिए। इसके बगैर योजनाएं हवा हवाई बनती रहेंगी

डॉक्टर अजय कुमार सिंह और चंद्रकांत रायपत ने मेडिकल कॉलेजों समेत विभिन्न उद्योगों के लिए जमीन की उपलब्धता का मामला उठाया जिसमें झारखंड के सीएनटी एक्ट से लेकर अन्य कई तत्व आड़े आते हैं। इसके लिए ठोस नीति की भी जरूरत बताई गई। साथ ही जागरूक लोगों के शहर के विकास के लिए आगे आने की भी जरूरत पर जोर दिया गया।

समाजसेवी संदीप नागपाल व प्रोफेसर पंकज सिंह ने लोगों को जागरूक करने से लेकर कुछ धारणाएं बदलने की भी जरूरत बताई। एक दुर्घटना में घायल महिला का उदाहरण देते हुए बताया गया कि किस तरह 'मेडिकल प्रोटेक्शन बिल' के अभाव में और गलत धारणाओं के कारण कई बार डॉक्टर या निजी अस्पताल जरूरतमंदों के इलाज से पीछे हट रहे हैं। अस्पतालों में दवा के नि:शुल्क वितरण की व्यवस्था को भी प्रभावी तरीके से लागू करने की बात कही गई वहीं पैथोलॉजी और अस्पतालों के पारा मेडिकल सिस्टम को और भी दुरुस्त बनाने की बात हुई।

ट्रैफिक व्यवस्था की बात उठी तो पूर्व डीजीपी जेबी महापात्रा ने बताया कि वीआइपी के काफिले को ट्रैफिक में प्राथमिकता से आगे निकालने के लिए पास देने की व्यवस्था जहां है वहीं एंबुलेंस को भी उतनी ही प्राथमिकता के साथ रास्ता देकर निकालने का नियम है। इसकी निगरानी की जरूरत है। जाम से होनेवाली दिक्कतों की भी चर्चा हुई। कार्यक्रम में डॉ. मृत्युंजय, मयूर मिश्रा, प्रवीण कुमार, डॉ. डीएन तिवारी, डॉ. श्रवण कुमार सिंह, चंद्रकांत रायपत, ददन चौबे आदि ने भी विचार रखे।

लोगों ने ये भी रखे विचार

- झारखंड की स्वास्थ्य रिपोर्ट राष्ट्रीय औसत के अनुसार सबसे बेहतर है। जितने सरकारी और अर्द्धसरकारी अस्पताल इस राज्य में हैं उतने अन्य जगह नहीं है, लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्था सुधार की आवश्यकता है। इसके लिए जरूरी है कि रिम्स जैसे बड़े अस्पताल में हम केवल रेफर किए हुए मरीजों को ही लें। सर्दी और खांसी के लिए भी रिम्स यदि जिम्मेदार है तो स्वभाविक है कि चिकित्सकों और अन्य लोगों पर बोझ बढ़ रहा है, क्योंकि राज्य में डॉक्टर और मरीजों का अनुपात कम है। रिम्स को एम्स की तर्ज पर तैयार करने के लिए ऐसा करना अनिवार्य है।
डॉ. अजय कुमार सिंह, पूर्व अध्यक्ष, आइएमए।

- सरकारी स्तर पर घरेलू चिकित्सा को भी बढ़ावा देना चाहिए। इस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को प्रोत्साहन देना होगा। उपचार का प्रकरण हमारे घरों से शुरू होता है। यह बेहद जरूरी है कि सभी लोगों को घर की चीजों से उपचार के बारे में पता हो। घर के मसालों में, पेड़-पौधों में कई औषधीय गुण की जानकारी नहीं होने के कारण हम कई बार छोटी बीमारी के कारण परेशान हो जाते हैं, जिसका उपचार घर पर भी किया जा सकता है। सरकार को भी चाहिए कि इस ओर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जाए।
डॉ. डीएन तिवारी, प्रदेश सचिव, आरोग्य भारती।

- विभिन्न घटनाओं के कारण कुछ लोगों का विश्वास डॉक्टरों पर कम हुआ है। ऐसी कई घटनाएं हैं जब गलतफहमी की वजह से डॉक्टर भीड़ के गुस्से का शिकार हुए हैं। ऐसे में अब डॉक्टर सीरियस केस में मरीज को छूने से डरते हैं। इसका असर यह होता है कि सड़क हादसों में घायल व्यक्ति की हालत गंभीर होने पर उसे फर्स्‍ट एड भी नहीं मिल पाता है। यदि उनका प्राथमिक उपचार हो जाए तो जान बचाई जा सकती है।
डॉ. मृत्युंजय, अखिल भारतीय राष्ट्रीय सचिव, आरोग्य फाउंडेशन।

- सबसे बड़ी समस्या है डॉक्टरों पर बढ़ रहा बोझ। राज्य में मरीजों और चिकित्सकों का अनुपात सही नहीं है। बहुत कम चिकित्सकों पर बहुत ज्यादा मरीजों की जिम्मेदारी है। खास कर सरकारी संस्थानों में परेशानी ज्यादा है। आम लोगों की जिम्मेदारी से भी कई बार चिकित्सा पर असर पड़ता है। शहर में जाम के बीच एंबुलेंस को रास्ता देने की कोई प्रक्रिया नहीं है। ग्रीन कॉरिडोर या ट्रैफिक मैनेजमेंट जैसी कोई चीज नहीं है। एंबुलेंस के लिए ट्रैफिक की सुदृढ़व्यवस्था होनी चाहिए।
जेबी महापात्रा, पूर्व डीजीपी, झारखंड।

- स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार सुधार हो रहा है। इस संदर्भ में केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना बेहद कारगर है, लेकिन इसका विस्तार निजी अस्पतालों तक भी होना चाहिए ताकि सभी लोगों को इसका बेहतर लाभ मिल सके। जिनके पास इलाज के पैसे नहीं है, उन्हे इस योजना से काफी उम्मीदें हैं। लेकिन यह जरूरी है कि इस योजना का क्रियान्वयन भी यही तरीके से हो और जन जन तक इसका लाभ पहुंच सके।
पवन मंत्री, समाजसेवी।

बेहतर स्वास्थ्य के लिए लोगों में योग और आसन की प्रवृत्ति जरूरी है। सरकार को भी चाहिए कि शहर के विभिन्न स्थानों पर फ्री योग केंद्र बनाए और लोगों को योग करने के लिए जागरूक व प्रेरित करें। इसके अलावा फिरायालाल के पास बड़े से एलसीडी में सरकार के विज्ञापनों के साथ प्राथमिक उपचार और चिकित्सकों के बारे में भी बताया जाना चाहिए। रोगों के उपचार की जानकारी नहीं होने से लोग ज्यादा परेशान होते हैं। जागरुकता ज्यादा जरूरी है।
संदीप नागपाल, व्यवसायी व समाजसेवी।

फ्री दवाओं पर सरकार बहुत खर्च करती है। लेकिन सही क्रियान्वयन के अभाव में दवाएं सही और जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाती है। यह जरूरी है कि योजनाओं के साथ उनके क्रियान्वयन पर भी ध्यान दिया जाए। दूसरी ओर शहर के सभी अस्पतालों में स्टाफ हैं लेकिन प्रबंधन की कमी और अन्य कारण से चिकित्सा पर प्रभाव देखने को मिल रहा है। राज्य के सभी अस्पतालों में प्रबंधन की कमी है, जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
प्रवीण कुमार, अधिकारी, महालेखाकार कार्यालय।

रिम्स सहित राज्य के ज्यादातर अस्पताल दशकों पुराने हैं। आज से 50 साल पहले की इंफ्रास्ट्रक्चर से हम आधुनिक दुनिया का ख्वाब नहीं देख सकते हैं। इसमें सुधार की आवश्यकता है। इसके अलावा ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि गंभीर हालात में यदि इलाज संभव नहीं है तो कम से कम प्राथमिक उपचार के लिए कोई भी छोटा या बड़ा अस्पताल मना नहीं करे। साथ ही किसी भी स्थिति में हर अस्पताल एंबुलेंस देने को तैयार हो।
चंद्रकांत रायपत, राष्ट्रीय अध्यक्ष, एकल फाउंडेशन।

- सरकार द्वारा चलाए जा रहे टीकाकरण अभियान से काफी बच्चे अछूते रह जा रहे हैं। ये टीके केवल स्कूलों में मिल रहे हैं जबकि देश भर के कई बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। इसके अलावा स्कूल जाने की शुरुआत तीन चार सालों बाद होती है, लेकिन टीके की जरूरत उससे पहले होती है। सरकार को चाहिए कि घर-घर जा कर हर बच्चे को टीका दिया जाए। इसके अलावा राज्य के जांच घरों की रिपोर्ट में अंतर देखने को मिलता है। यह अंतर लोगों को परेशान करता है। इसको दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
मयूर मिश्र, सीए।

 


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