रांची: समृद्ध अतीत से सुनहरे भविष्य की ओर
रांची में शिक्षित लोगों की संख्या राष्ट्रीय औसत से करीब 2.2 फीसद अधिक है।
तमाम विसंगतियों के बावजूद संयुक्त बिहार के काल से ही शिक्षा में क्षेत्र में रांची की अलग पहचान रही है। तब पटना विश्वविद्यालय के बाद रांची विश्वविद्यालय को ही माना जाता था। सेंट जेवियर्स कॉलेज आजादी के पूर्व से ही ज्ञान बांटने में लगा हुआ है। विकास विद्यालय, जवाहर विद्या मंदिर आदि स्कूली शिक्षा के लिए बच्चों को अपनी ओर वर्षों से आकर्षित कर रहा है।
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रांची की ऐसी ही पुख्ता पहचान आज भी बरकरार है। एक के बाद एक शिक्षण संस्थान स्थापित हो रहे हैं। इससे शहर की शिक्षा के मीनार का और भी ऊंचा होना तय है।
लोगों की जागरूकता की वजह से शिक्षित लोगों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि जारी है। यहां शिक्षित लोगों की संख्या राष्ट्रीय औसत से करीब 2.2 फीसद अधिक है। 2001 की जनगणना में शिक्षित लोगों की संख्या 66.71फीसद थी, जो 2011 में बढ़कर 76.06 फीसद हो गई। मौजूदा राष्ट्रीय औसत 74.04 फीसद है।
चिकित्सा के क्षेत्र में राजेंद्र मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, इंजीनियरिंग के क्षेत्र बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (मेसरा) है, तो पिछले कुछ वर्षों में केंद्रीय विश्वविद्यालय, रक्षा विश्वविद्यालय, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, आइआइएम जैसे संस्थान यहां खुले हैं। तकरीबन सभी बड़े कोचिंग संस्थानों के ब्रांच भी शहर में खुल चुके हैं, जिससे आधुनिक शिक्षा का र्याप्त संसाधन उपलब्ध हो चुका है।
इधर, खामियों की बात करें तो सरकारी स्कूली शिक्षा की स्थिति दिन पर दिन बदहाली की ओर ही है। शिक्षकों की कमी तकरीबन सभी स्कूलों में है। संगीत शिक्षक है ही नहीं। कहीं एक कक्षा में तीन-तीन कक्षाएं चल रही है तो कहीं एक शिक्षक के भरोसे तीन-तीन कक्षाओं के विद्यार्थी हैं। मर्जर नीति से भी परेशानी बढ़ी है। घर-घर शिक्षा पहुंचाने के दावे के दौर में ग्र्रामीण क्षेत्र में बच्चों को चार से पांच किलोमीटर की दूरी तय करना पड़ रहा है।
यह स्थिति इतनी दयनीय हो चली कि सरकार को घोषणा करना पड़ा कि शिक्षा के लिए दूर जाने वाले बच्चों को यात्रा भत्ता दिया जाएगा। राइट टू एजुकेशन एक्ट लागू करने प्रति स्कूल या प्रशासन संवेदनशील नहीं है। सरकारी स्कूलों से इतर शहर में निजी विद्यालय नित नए मुकाम गढ़ रहे हैं। मगर अभिभावकों के आर्थिक शोषण का बदनुमा दाग के साथ।
तकरीबन हर वर्ष स्कूलों में नामांकन के समय फीस, बस किराया, बस्ता आदि को लेकर नीति तय करने की बात होती है, जो नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह कुछ दिनों गुम हो जाती है। नतीजा फिर वही कहानी दुहराने लगती है। बीते दिसंबर की बात है।
दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के आयुक्त दिनेशचंद्र ने स्कूलों पर नकेल कसने के लिए कड़े कदम उठाने के दावे किए। स्कूल प्रबंधन के साथ बैठकें हुईं। तय किया गया कि स्कूली बसों पर क्षमता से अधिक बच्चे नहीं बैठाए जाएंगे, किताब की कीमत और फीस भी तय होगा, इसके अतिरिक्त अन्य कई मानक तय किए गए।
इसकी जांच के लिए बाकायदा टीमें गठित हुईं। कुछ स्कूलों में जांच भी हुईं। नतीजा सिफर रहा। इसी सप्ताह एसडीओ अंजलि यादव ने जब एक स्कूली बस की जांच की तो 52 सीट वाली बस पर 125 बच्चे सवार पाए गए। ड्राइवर नशे में था।
जाहिर है हमें इन स्थिति से उबरना होगा, ताकि सरकारी स्कूल की शिक्षा मजबूत रहे और हम अपने बच्चे को सम्यक शिक्षा दे सकें।
इन बातों का रखना होगा ध्यान-
- कार्यक्रम व योजनाओं के क्रियान्वयन पर हो जोर
- निजी विद्यालयों के लिए तय हो एक नीति
- स्कूल तय नीति को लागू करे, इसके लिए मजबूत कदम उठाना होगा
- राइट टू एजुकेशन एक्ट सभी स्कूलों लागू हो
- निजी स्कूलों में अभिभावकों का लूट-खशोट रुके
- हर आय वर्ग के लोगों के लिए सुलभ हो गुणवत्तापरक शिक्षा
- निजी व सरकारी स्कूलों के बीच की दूरी मिटे
- शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों को भी मिले बढ़ावा
- व्यावसायिक शिक्षा केंद्र की बहुलता हो
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