Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दिल्ली को राजधानी बनाने का सर अली इमाम ने दिया था प्रस्ताव

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 03 Aug 2018 06:44 PM (IST)

    हजारीबाग रोड पर कोकर चौक से आधा किलोमीटर चलने पर एक मजार मिलती है। ये मजार है सर सयद अली की, इन्हें बिहार का जनक माना जाता है। यह मजार 1935 में बनवाई गई थी।

    दिल्ली को राजधानी बनाने का सर अली इमाम ने दिया था प्रस्ताव

    संजय कृष्ण, रांची

    हजारीबाग रोड पर कोकर चौक से आधा किमी दूरी पर दाहिने एक मजार है। आने-जाने वाले इस मजार को जरूर देखते हैं। मुख्य द्वार पर एक अर्धचंद्राकार बोर्ड लगा हुआ है, जो बताता है कि यह मजार एक जज और नेता की है, वह नेता, जिसने पहली बार बंगाल से बिहार को अलग करने की मांग की थी और बाद में भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाने का प्रस्ताव भी दिया था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें 'बिहार का निर्माता' कहा था। जी हां, बात अली इमाम की हो रही है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यह मजार, अली इमाम की है। 11 फरवरी 1869 को पटना जिले के नियोरा गाव में नवाब सैयद इमदाद इमाम के घर उनका जन्म हुआ था और 31 अक्टूबर, 1932 की रात रांची में उनका देहांत। मौत से चंद घंटे पहले अपने बेटे नकी इमाम को अपने बाग के एक गोशे में ले गए और छड़ी से जमीन के एक हिस्से पर निशान बनाया और कहा, इसी जगह मेरी कब्र बनेगी। उसी रात जब उन्हें दिल का दौरा पड़ा तो तमाम मलाजिमों को अपने पास बुलाया और सभी से माफी मांगी। उस सुबह वे ठेकेदार पर बहुत गुस्सा हो गए थे, उसको भी बुलाकर माफी मांगी और बेटे नकी इमाम को का कि मेरे तमाम अजीजों, दोस्तों, रिश्तेदारों को मेरा सलाम कहना और कहना कि मेरी बात से अगर कोई तकलीफ पहुंची है तो मुझे माफ करें। इसी दौरान उन्होंने आखिरी सांस ली।

    सर अली इमाम के परदादा, खान बहादुर सैयद इमदाद अली पटना के सब ऑडिनेट जज के पद से रिटायर हुए। उनके बेटे, खान बहादुर शम्स-उल-उलेमा सैयद वाहिद-उद दीन पहले हिंदुस्तानी थे, जिन्हें जिला मजिस्ट्रेट बनाया गया था। अली इमाम के पिता सैयद इमदाद इमाम असर पटना कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर के साथ एक शायर भी थे। इनके बड़े भाई सैयद हसन इमाम भी जज रहे और उनका निधन 19 अप्रैल, 1933 को 61 साल की उम्र में जपला, पलामू में हुआ। 1917 में पटना हाई कोर्ट के बने जज अली इमाम बैरिस्ट्री की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए। वहां से वे जून, 1890 में पटना वापस आए और नवंबर 1890 से कलकत्ता हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी। बाद में वे पटना हाई कोर्ट में 1917 में जज बने। वकालत के साथ-साथ राजनीति में भी सक्रिय हो गए। 1906 में जब मुस्लिम लीग की स्थापना हुई तो अली इमाम की प्रमुख भूमिका रही। अप्रैल 1908 में पहला बिहार राज्य सम्मेलन हुआ तो इसकी अध्यक्षता अली इमाम ने की। जिसकी पूरी जिम्मेदारी सच्चिदानंद सिन्हा और मजहरुल हक के कंधों पर थी। 30 दिसंबर 1908 को अली इमाम की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग का दूसरा सत्र अमृतसर में हुआ। इसी साल उन्हें 'सर' की उपाधि प्रदान की गई। 1911 में वे भारत के गवर्नर जनरल के एग्जीक्यूटिव कौंसिल के सदस्य बने और फिर इसके उपाध्यक्ष। 25 अगस्त 1911 को सर अली ईमाम ने ¨हदुस्तान की राजधानी कलकत्ता को बदल कर नई दिल्ली करने का पूरा खाका उस समय भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग के सामने पेश किया, जिसे स्वीकारते हुए अंग्रेजों ने भारत की राजधानी कलकत्ता को बदल कर नई दिल्ली करने का एलान कर दिया।

    बाकीपुर पटना की एक सभा में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रासाद ने सर अली इमाम को आधुनिक बिहार के निर्माता की संज्ञा दी। 1910 से 1913 के बीच वक्फ बिल उनकी निगरानी में तैयार हुआ। 1914 मे उन्हे नाईट कमाडर (के.सी.एस.आई) के खिताब से नवाज गया। 1915 मे लॉ मेंबर के पद से रिटायर हुए। 3 फरवरी 1916 को पटना हाई कोर्ट की स्थापना जब हुई तो उसके बाद सितंबर 1917 मे सर अली ईमाम को पटना हाई कोर्ट का जज बना दिया गया। वे दो साल तक रहे। अगस्त 1919 में निजाम हैदराबाद के प्रधानमंत्री बने। वे 1922 तक रहे। 1923 में फिर से पटना हाईकोर्ट वकालत शुरू की और साथ ही देश की आजादी के लिए खुल कर हिस्सा लेने लगे। काग्रेस की कई नीतियों का खुल कर समर्थन किया। स्वराज और स्वदेशी की पैरवी की। 1927 में सर अली ईमाम ने साइमन कमीशन का जमकर विरोध किया। 1931 में सर अली ईमाम ने गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया और अगले साल ही इनका निधन हो गया।