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जानें एके राय की शख्सियत को, कालिख की कोठरी से निकले बेदाग

Jharkhand. धनबाद लोकसभा क्षेत्र से तीन बार सांसद रहे कामरेड एके राय सादगी की प्रतिमूर्ति थे। वे टायर का चप्पल पहनते थे।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sun, 21 Jul 2019 02:43 PM (IST)Updated: Sun, 21 Jul 2019 10:24 PM (IST)
जानें एके राय की शख्सियत को, कालिख की कोठरी से निकले बेदाग
जानें एके राय की शख्सियत को, कालिख की कोठरी से निकले बेदाग

रांची, [नवीन शर्मा]। राजनीति एक तरह से कालिख की कोठरी ही है। इसमें जीवन बीता कर भ्रष्टाचार और अन्य गलत कामों से दूर रहना नामुमकिन सा लगता है। इस तरह का असंभव सा काम धनबाद लोकसभा क्षेत्र से तीन बार सांसद रहे कामरेड एके राय ताउम्र करते रहे । अपनी तरह के रेयर हार्डकोर ईमानदार नेता का आज धनबाद में निधन हो गया। वे कुछ दिन पहले तबीयत खराब होने पर अस्पताल में इलाज करा रहे थे।

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केमिकल इंजीनियर थे

धनबाद के कोयला खदानों वाले इलाके में लंबे समय तक एके राय की तूती बोलती थी। उनके मजदूर आंदोलन और माफिया विरोधी अभियान की देश-विदेश में ख्याति रही है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से राजनीति शुरू करनेवाले राय पहले सिंदरी खाद कारखाना में केमिकल इंजीनियर थे।

शादी नहीं की

राय दा ने शादी नहीं की। अपना घर परिवार नहीं बसाया। अपनी सारी जिंदगी मजदूर और सर्वहारा की लड़ाई में झोंक दी। कम्युनिस्ट होते हुए भी राय बाबू के बहुत स्वतंत्र विचार थे।

टायर का चप्पल पहनते थे

राय दा जिन मजदूरों का प्रतिनिधित्व करते थे, वे उन्हीं की तरह का सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। इसी कारण वे टायर का चप्पल पहनते थे ताकि वो जल्दी घीसे नहीं, ज्यादा दिनों तक चले। आज की पीढ़ी के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल होगा कि तीन बार सांसद रहने वाला इन्सान इस तरह का जीवन जीता है। आजकल तो एक मुखिया या वार्ड कमिश्नर भी बड़ी गाड़ियों पर अकड़ कर चलते नजर आते हैं। ऐसे दौर में एके राय जैसे लोग भीड़ में अलग ही नजर आते हैं।

सांसद के रूप में पेंशन और अन्य सुविधाएं लेने से किया इन्कार कार

एके अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। एक तरफ जहां अधिकतर नेता अपनी सुविधाएं बढ़ाने के लिए बेताब रहते हैं, उन्होंने सांसद के रूप में पेंशन और अन्य सुविधाएं लेने से इन्कार कर दिया था। सांसदों को दी जानेवाली सुविधाओं का विरोध करनेवाले वह अकेले सांसद थे।

अपनी पार्टी बनाई

राय दा ने माकपा से अलग होकर अपनी पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी) बनाई थी। हालांकि, उनका मजदूर संगठन बिहार कोलियरी कामगार यूनियन सीटू से संबद्ध है। एक खपड़ैल के घर में बिना बिजली के जिंदगी गुजार देनेवाले राय दा के प्रशंसक उनके विरोधी भी रहे हैं। राय दा की वामपंथी विचारक के रूप में पहचान रही है। वह बड़े अंग्रेजी अखबारों में लेख भी लिखते थे।

उनका दशकों पहले कोयलांचल सहित देश के मजदूर आंदोलन में दबदबा रहा है। छत्तीसगढ़ के किसान-मजदूर नेता शंकर नियोगी गुहा उनके समकालीन रहे हैं। कोयलांचल में पहलवानों के जोर से मजदूर आंदोलन के नाम पर ठेकेदारी और चंदाखोरी करनेवालों को राय साहब के आंदोलन के कारण बैकफुट पर आने को विवश होना पड़ा था।

झामुमो के संस्थापकों में प्रमुख

राय दा ने शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो के साथ 70 के दशक में झारखंड अलग राज्य के आंदोलन को नए सिरे से गति दी थी। झामुमो के गठन में उनका महती योगदान रहा है। उस दौरान उनके जुलूस में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती थी। जिले के कई विधानसभा क्षेत्र में उनकी पार्टी का कब्जा था। आज भी एक विधायक हैं अरूप चटर्जी। ऐसे ईमानदार नेता का जाना इसलिए भी ज्यादा खलता है कि ऐसा नेता झारखंड में तो और कोई दिखाई नहीं देता है।


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