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इसरो की कार्यप्रणाली से झारखंड के खरीफ क्षेत्र की हो रही मैपिंग

भारत सरकार का कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, झारखंड में खरीफ की खेती को बढ़ावा देने में जुटा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 09 Aug 2018 10:39 PM (IST)Updated: Thu, 09 Aug 2018 10:39 PM (IST)
इसरो की कार्यप्रणाली से झारखंड के खरीफ क्षेत्र की हो रही मैपिंग
इसरो की कार्यप्रणाली से झारखंड के खरीफ क्षेत्र की हो रही मैपिंग

राज्य ब्यूरो, रांची। भारत सरकार का कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, झारखंड में खरीफ की खेती को उन्नत बनाने और उत्पादन बढ़ाने की दिशा में गंभीर प्रयास कर रहा है। कृषि मंत्रालय के अधीन महालानोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र झारखंड में खरीफ चावल क्षेत्र की मैपिंग कर रहा है। इसके लिए इसरो द्वारा विकसित कार्यप्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है। सासद महेश पोद्दार द्वारा गुरुवार को राज्यसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में राज्यमंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने यह जानकारी दी।

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मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने बताया कि मैपिंग के विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्षो को संबंधित स्थानों के मानचित्रों के साथ राज्य सरकार को उपलब्ध कराया जा रहा है। मैपिंग के इन निष्कर्षो का लाभ उठाकर किसान खरीफ के बाद परती भूमि पर अतिरिक्त फसल हासिल कर सकते हैं।

खरीफ के बाद 65-70 फीसद भूमि रह जाती है परती

मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने बताया कि झारखंड में खरीफ चावल क्षेत्र तथा खरीफ के मौसम के बाद परती भूमि का आकलन करने के लिए उपग्रह के आंकड़ों का उपयोग किया जाता है। 2016-17 में झारखंड का खरीफ चावल क्षेत्र 13.94 लाख हेक्टेयर था। प्राथमिक विश्लेषण यह दर्शाता है कि खरीफ सीजन के बाद खरीफ चावल क्षेत्र की करीब 65-70 फीसद भूमि को परती छोड़ दिया जाता है।

ये इलाके अधिकतर राज्य के दक्षिणी जिलों में स्थित हैं। खरीफ सीजन के बाद परती छोड़ दी जानेवाली भूमि के करीब 25-30 फीसद भाग खरीफ के बाद के मौसम के दौरान छोटी अवधि वाले दलहन की फसल के लिए उपयुक्त पाए गए हैं। ये इलाके झारखंड के राची, गुमला, सिमडेगा, पश्चिम सिंहभूम, गिरिडीह, कोडरमा आदि जिलों में स्थित हैं।


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