Makar Sankranti 2020: तिल-गुड़ की मिठास के साथ मन रही मकर संक्रांति, लगाई आस्था की डुबकी
Makar Sankranti 2020 मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारंभ होती है। इसलिए इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं।
रांची, जासं। मकर संक्रांंति हिंदुओं का प्रमुख पर्व है। इस दिन भारतीय संस्कृति के विविध स्वरूप का दर्शन होता है। मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारंभ होती है। इसलिए इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं।
पुण्यकाल - सुबह 8:24 से 12:31 बजे तक
महापुण्य काल - 07:19 से 09:03 बजे तक
आज बाबा पर चढ़ेगा तिल व खिचड़ी का भोग
देवघर में बाबा मंदिर में मंकर संक्रांति बुधवार को मनाई जा रही है। राजपुरोहित श्रीनाथ महाराज ने बताया की बांग्ला पंचांग के अनुसार इस साल 12 बजे के बाद संक्रांति पडऩे से बाबा को तिल व खिचड़ी का भोग 15 जनवरी को लगेगा। बाबा मंदिर में बंगला पंचांग से ही पर्व त्योहार में परंपरा के अनुसार पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर प्रबंधन की ओर से मकर संक्रांति को लेकर तैयारी पूरी कर ली गई है। भीड़ को नियंत्रित करने व श्रद्धालुओं को सुविधापूर्वक पूजा कराने के लिए पुलिस प्रशासन की तैनाती की गई है। बता दें की मकर संक्रांति में बड़ी संख्या में लोग अल सुबह नदी, तालाब में स्नान कर दान पुण्य का कार्य कर मंदिरों में पूजा अर्चना करते है। वहीं बाबाधाम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है और शिवगंगा तालाब में स्नान दान कर बाबा मंदिर में पूजा अर्चना करते है। बाबा पर तिल गुड़ से बने लड्डू अर्पित कर मंगलकामना करते हैं।
घर में गंगा स्नान का ले सकते हैं लाभ
आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि यदि पवित्र नदी में नही जा सकते हैं तो घर मे ही किसी पात्र में गंगाजल डाल कर उसमें पुन: जल डाल कर स्नान करना चाहिए। इससे भी गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है। इस दिन ऊनी वस्त्र, भूमि, स्वर्ण और धार्मिक पुस्तकों का दान करना पुण्यप्रद माना गया है।
मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म ने त्यागा था देह
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
सकारात्मकता का प्रतीक है मकर संक्रांति
भगवान भास्कर के उत्तरायण होने के दिन को मनाये जानेवाल पर्व मकरसंक्रांति पर्व एक नई शुरुआत नई गति का प्रतिक है यह अशुद्ध विचारों को त्याग कर पावन हो जाने का पर्व है। यह तेज, तप और वैराग्य को एक साथ पाने का पर्व है। मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी बुधवार सुबह से शुरू होगा। संक्रांति काल 15 जनवरी को सुबह 8: 24 मिनट पर उत्तरायण होंगे यानि सूर्य चाल बदलकर धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
तिलकुट की मिठास व दही-चूड़ा संग मन रही मकर संक्रांति
मकर संक्रांति को लेकर बाजार में उल्लास का माहौल है। शहर के बाजार में तिलकुट अपनी सौंधी खुशबू बिखेर रहा है। तिलकुट की अलग-अलग वेरायटी जैसे गुड़ तिलकुट, खोआ तिलकुट, सौंफ तिलकुट, इलायची तिलकुट वड्रायफ्रूट तिलकुट बिक रहे हैं। इसके अलावा तिल लड्डू, तिलपïट्टी, रेवड़ी, चूरा के लाई, मूढ़ी के लाई आदि की भी काफी बिक्री हो रही है। इसके साथ ही बाजार में बासमती, सोनाचूर व कतरनी चूड़ा अपनी अलग महक बिखेर रहे हैं।
हृदय रोगियों के लिए रामबाण है तिल
सर्दियों में तिल खाने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। हृदय रोग से पीडि़त व्यक्तियों के लिए यह बेहद फायदेमंद है। तिल खाने से शरीर का कोलेस्ट्रोल कम होता है। इसके अलावा तिल के सेवन से तनाव तथा अन्य मानसिक समस्याओं से भी निजात पाई जा सकती है।
औषधीय गुणों से भरपूर है गुड़
चीनी शरीर को नुकसान पहुंचाती है जबकि गुड़ औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसलिए डॉक्टर भी चीनी के बजाए गुड़ खाने की सलाह देते हैं। गुड़ शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने में बेहद फायदेमंद है। एनीमिया के मरीजों के लिए तो यह अमृत के समान है। इसमें आयरन की भरपूर मात्रा होती है। इसके अलावा ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए भी यह बेहद उपयोगी है।
पाचन क्रिया दुरूस्त करती है खिचड़ी
मकर संक्रांति में खिचड़ी खाने की भी परंपरा है। खिचड़ी पाचन क्षमता कमजोर होने पर भी आसानी से पच जाती है और पाचन क्रिया को दुरुस्त करती है, इसलिए डॉक्टर बीमारी में मरीजों को खिचड़ी खाने की सलाह देते हैं। खिचड़ी खाने से शरीर डिटॉक्स होता है। इसके साथ ही यह वजन कम करने में भी उपयोगी है।
दूध से अधिक फायदेमंद है दही
दही दूध से अधिक फायदेमंद है। दूध की अपेक्षा दही में ज्यादा कैल्शियम पाया जाता है। इसके अलावा यह आसानी से पच भी जाता है। रोजाना दही का सेवन करने से पाचन शक्ति दुरूस्त होती है और व्यक्ति को खुलकर भूख लगती है।
मकर संक्रांति पर किसानों में खासा उत्साह
मकर संक्रांति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकंपा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद मांगते हैं। इसलिए मकर संक्रांति के त्योहार को फसलों एवं किसानों के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। नेपाल में मकर संक्रांति को माघे-संक्रांति, सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में माघी कहा जाता है। इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्योहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कंदमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिए जाते हैं।
प्रयागराज संगम पर लगा माघ मेला
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। 14 दिसंबर से 14 जनवरी तक का समय खरमास के नाम से जाना जाता है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से शुरू होकर शिवरात्रि के आखिरी स्नान तक चलता है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है। बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्व है।
चौदह ब्राह्मणों को दान देते हैं तिलगुड़
महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूड़ नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है। असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। वहीं, राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।
तिलकुट की कीमतों में आई कमी
ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कई दुकानदारों ने तिलकुट के दाम में भी कमी कर दी है। जहां दो दिन पहले तक तिलकुट की कीमत 240 रुपये प्रति किलो थी वहीं अब कई जगहों पर महज 200 सौ रुपये प्रति किलो बिक रहा है। गांधी चौक पर तिलकुट विक्रेता शशि गुप्ता बताते हैं कि तिलकुट की बिक्री पंद्रह जनवरी के बाद बेहद कम हो जाएगी। इसलिए कोशिश है कि उससे पहले ही सारा तिलकुट बेच लिया जाए।
हनुमान मंदिर के राजू कुमार बताते हैं कि यूं तो तिलकुट की बिक्री मार्च तक होती है मगर नए साल के शुरुआती पंद्रह दिन ही इसकी ज्यादा बिक्री होती है। पर्व समाप्त होते ही लोग तिलकुट खाना कम कर देते हैं। इसके अलावा बचे तिलकुटों को सही से रखने में भी बेहद परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए कोशिश रहती है कि कम से कम मुनाफे में तिलकुट को बेच लिया जाए। वह बताते हैं कि औरों की अपेक्षा कम कीमत रखने से तिलकुट की बिक्री में काफी बढ़ोतरी हुई है।