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टीबी मरीजों की पहचान में भी कोरोना का असर

रांची नीरज अम्बष्ठ कोरोना वायरस के संक्रमण का प्रभाव कई योजनाओं और कार्यक्रमों पर तो पड़ा ही है इसका असर स्वास्थ्य सेवाओं पर भी पड़ा है। स्वास्थ्य सेवाओं में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम पर इसका अधिक प्रभाव पड़ा है। स्थिति यह है कि राज्य में पिछले वर्ष सितंबर माह तक टीबी के जितने मरीजों की पहचान हुई थी उससे इस वर्ष सितंबर माह तक 33 फीसद कम टीबी मरीजों की पहचान हुई है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2020 03:04 AM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 05:13 AM (IST)
टीबी मरीजों की पहचान में भी कोरोना का असर
टीबी मरीजों की पहचान में भी कोरोना का असर

रांची, नीरज अम्बष्ठ : कोरोना वायरस के संक्रमण का प्रभाव कई योजनाओं और कार्यक्रमों पर तो पड़ा ही है, इसका असर स्वास्थ्य सेवाओं पर भी पड़ा है। स्वास्थ्य सेवाओं में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम पर इसका अधिक प्रभाव पड़ा है। स्थिति यह है कि राज्य में पिछले वर्ष सितंबर माह तक टीबी के जितने मरीजों की पहचान हुई थी, उससे इस वर्ष सितंबर माह तक 33 फीसद कम टीबी मरीजों की पहचान हुई है। ऐसा नहीं है कि इस साल इतने मरीज कम हो गए। दरअसल, इतने मरीजों की पहचान ही नहीं हो पाई। नए टीबी मरीजों की पहचान होने के बाद उनकी रिपोर्टिंग (राज्य सरकार व जिला प्रशासन को जानकारी देना) अनिवार्य होती है। नए टीबी मरीजों की रिपोर्टिंग में यह गिरावट लगभग सभी राज्यों में हुई है। पूरे देश की बात करें, तो यह गिरावट 36 फीसद है।

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पिछले साल मिले टीबी मरीजों की संख्या के आधार पर इस वर्ष राज्य में 65 हजार नए टीबी मरीजों की पहचान का लक्ष्य रखा गया था। इनमें 54,166 मरीजों की पहचान का लक्ष्य सितंबर माह तक पूरा करना था, लेकिन इस माह तक 31,797 टीबी मरीजों की ही पहचान हो सकी। इस तरह, लक्ष्य के अनुरूप 59 फीसद ही उपलब्धि रही। पिछले सात सितंबर तक राज्य में मिले टीबी मरीजों की इस साल सितंबर तक की तुलना करें, तो निश्चय पोर्टल पर जारी आंकड़े के अनुसार, इस वर्ष इस अवधि तक 33 फीसद कम मरीजों की पहचान हुई। इसके लिए लॉकडाउन तथा स्वास्थ्य कर्मियों की कोरोना जांच में अधिक संलिप्तता को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। सरकारी अस्पतालों में तो टीबी रिपोर्टिंग में पिछले वर्ष की तुलना में 43 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, प्राइवेट क्लिनिक में पिछले साल की अपेक्षा एक फीसद अधिक टीबी मरीजों की पहचान हुई है। इस तरह, टीबी मरीजों की पहचान में प्राइवेट क्लिनिक पिछले साल की अपेक्षा कुछ बेहतर कर पाए हैं। हालांकि, ये भी लक्ष्य से काफी पीछे चल रहे हैं।

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समय पर पहचान नहीं होना घातक :

टीबी मरीजों की समय पर पहचान नहीं होना घातक साबित हो सकता है। एक अध्ययन के अनुसार, सक्रिय और सुप्त अवस्था में टीबी की मौजूदगी कोरोना संक्रमण के लिहाज से काफी खतरनाक है। ऐसा होने पर मरीज की संवेदनशीलता बढ़ती है और लक्षणों में विकास तेजी से होता है। बीमारी तेजी से बढ़ती है, जिसके नतीजे खराब होते है। बता दें कि केंद्र ने सभी नए टीबी मरीजों की कोरोना जांच करने तथा सभी कोरोना मरीजों की लक्षण होने पर टीबी जांच करने को लेकर भी गाइडलाइन जारी की है। इसके बावजूद राज्य में टीबी मरीजों की पहचान में कमी आई है।

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यह है टीबी मरीजों की पहचान की स्थिति

अस्पताल - वार्षिक लक्ष्य - सितंबर तक लक्ष्य - सितंबर तक पहचान - उपलब्धि - पिछले साल सितंबर तक पहचान - कमी या वृद्धि प्रतिशत

सरकारी अस्पताल - 43,000 - 35,833 - 21,098 - 59 फीसद 37,187 - 43 फीसद गिरावट

प्राइवेट अस्पताल - 22,000 - 18,333 - 10,699 - 58 फीसद - 10562 - 01 फीसद अधिक

कुल - 65,000 - 54,166 - 31,797 - 59 फीसद - 47,749 - 33 फीसद गिरावट

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