छोटे शहर में रहकर देखा बड़ा सपना, मेहनत के दम पर पाया मुकाम
अपने लक्ष्य पर अर्जुन की तरह सीधे-सीधे मछली की आंख में देखने और लक्ष्य प्राप्त करने का काम आइएएस मेघा भारद्वाज ने किया।
जागरण संवाददाता, रांची : अपने लक्ष्य पर अर्जुन की तरह सीधे-सीधे मछली की आंख में देखने और लक्ष्य को भेद कर ही संतुष्ट होने का बहुत उत्तम उदाहरण हैं मेघा भारद्वाज। 2016 बैच की आइएएस अधिकारी मेघा भारद्वाज इस समय संयुक्त सचिव योजना सह वित्त के पद पर आसीन हैं। मेघा रांची की ही निवासी हैं। स्कूल से लेकर स्नातक तक की इनकी शिक्षा रांची में ही हुई। परास्नातक की पढ़ाई इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की। दो भाई अनुभव व अंकित के साथ अपने माता-पिता की तीन संतानों में मेघा सबसे बड़ी हैं। इनके पिता मोहन दुबे रांची में ही बैंक क्लर्क की नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। माता माधुरी दुबे गृहिणी हैं। दोनों भाई स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और अब वे भी सिविल सेवा की तैयारी कर रहे हैं। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद मेघा पढ़ाई में अपने भाइयों की मदद करती हैं। 2016 में सिविल सेवा के लिए चयनित होने से पहले 2015 में मेघा का चयन इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस और भारतीय वन सेवा के लिए भी हुआ था, लेकिन इन्होंने अपना लक्ष्य तो सिविल सेवा तय किया। यही कारण है कि मेघा ने दोनों नौकरियों को ठुकरा दिया। अगले ही साल सिविल सेवा के लिए चयनित होकर इन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया। अपने संघर्षों के बारे में मेघा बताती हैं कि मध्यमवर्गीय परिवार से होने के बावजूद सिविल सेवा का सपना देखना और उसको पूरा करने के लिए तमाम अवरोधों के बावजूद निरंतर आगे बढ़ते रहना बहुत आसान नहीं था। हिम्मत थी, अपने परिश्रम पर भरोसा था। इसलिए आगे बढ़ती गई और रास्ते बनते गए। मेघा कहती हैं कि सफलता-असफलता, ऊंचाई और निराशा, ये सभी जीवन के अंग हैं। महत्वपूर्ण ये है कि आप अपने जीवन के अर्थ को किस हद तक समझते हैं। यदि आप अपने जीवन के अर्थों को अच्छे से समझते हैं तो इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला कि लोग क्या कहते हैं। रास्ते में कितनी बाधाएं आती हैं। आपके आत्मविश्वास के आगे ये सब छोटी-छोटी चीजें बौनी हो जाती हैं और आप अपनी मंजिल प्राप्त कर लेते हैं।