छोटे बच्चों की आंखें हो रही खराब, 100 में 20 बच्चे को लग रहा चश्मा
आखें हमारी सबसे नाजुक अंगों में से एक हैं। अगर इनका ख्याल न रखा जा जाय तो परेशानी बढ़ जाती है।
जागरण संवाददाता, रांची : आखें हमारी सबसे नाजुक अंगों में से एक हैं। अगर इनका ख्याल न रखा जाए तो छोटी-सी परेशानी जिंदगी भर की तकलीफ बन सकती है। आज कल बच्चों की आखों में कई तरह की समस्या देखी जा रही है। विशेषज्ञ डॉक्टरों के अनुसार हर दिन 100 से ज्यादा बच्चे आंखों की समस्या लेकर आते हैं। किसी को अपने स्कूल में ब्लैकबोर्ड देखने में परेशानी होती है तो कोई अपनी किताबें ठीक तरह से नहीं पढ़ पाने की समस्या लेकर पहुंचता है। इसका मुख्य कारण बच्चों की बदलती लाइफस्टाइल है, जिसमें मोबाइल की अहम भूमिका है। मोबाइल के इस्तेमाल के दौरान इससे निकलने वाले रेडिएशन आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन लापरवाही से बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। बच्चों की आखे काफी नाजुक होती हैं इसलिए उन्हें खास देखभाल की जरूरत होती है। बच्चे बार-बार आखों पर हाथ लगाते हैं जिस वजह से आखों में संक्रमण की आशका बढ़ जाती है।
अस्पताल आने वाले हर 100 बच्चे में 25 को चश्मे की जरूरत
रिम्स के नेत्र रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राहुल प्रसाद ने बताया कि पिछले कुछ सालों में आखों की परेशानिया लेकर आने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। प्रतिदिन 80 में से 25 बच्चे ऐसे आते हैं जिन्हें चश्मे की जरूरत होती है। इसका मुख्य कारण मोबाइल व लैपटॉप का घटों इस्तेमाल करना है। बच्चे जंक फूड का सेवन भी अधिक करते है, यह भी आंख की रोशनी खराब होने का अहम कारण है। अभिभावकों को बच्चों में बढ़ती आखों की समस्याओं के लिए जागरूकता की कमी है। अभिभावकों को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए की बच्चों को पौष्टिक आहार मिले और मोबाइल व अन्य गैजेट्स की पहुंच सीमित हो। बच्चो में मायोपिया, आखों में पानी आना, सूखे आख जैसी तकलीफ देखी जा रही हैं जो छोटी उम्र में चिंता का गंभीर विषय है।
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कम करें मोबाइल का इस्तेमाल
विशेषज्ञ व डॉक्टरों के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक उपकरण व मोबाइल फोन का रेडिएशन मिलकर शरीर पर दोगुना नकारात्मक प्रभाव डालता है। कंप्यूटर, टीवी, रेडियो एफएम, हीटिंग-लाइटिंग लैंप, माइक्रोवेवओवन और आसपास से गुजर रही बिजली की लाइनें भी कई सिग्नलों से तरंगें उत्पन्न करती हैं। इनका इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन मोबाइल के रेडिएशन और सेल टावर के सिग्नल से ट्रासमिट करता है। इससे शरीर पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव दोगुना हो जाता है। शरीर में ऑक्सीडेंट की मात्रा बढ़ जाती है। थकावट, सिरदर्द, अनिद्रा, कानों में घटिया बजने, जोड़ों में दर्द और याददाश्त कमजोर होने जैसी समस्याएं सामने आती हैं।
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कौन सी हैं बच्चों में आखों की बीमारिया
-सूखी आखें
-आखों से पानी निकलना
-मायोपिया- दूर की चीजें देखने में परेशानी -------
क्या कहते हैं अभिभावक
मेरे बच्चे को सात साल की उम्र में ही चश्मा लग गया था। उसे दूर की चीजें देखने में परेशानी होती है। अभी वह चौथी कक्षा में है और उसे नियमित डॉक्टर से चेक उप करवाते रहना पड़ता है। डॉक्टर कहते हैं की बच्चे के खान-पान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। हरी सब्जिया खिलाने को कहा है।
-निधि मिश्रा, अभिभावक।
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अभिभावक होने के नाते मैं अपने बच्चे पर पूरा ध्यान देती हूं, लेकिन फिर भी आज की लाइफस्टाइल ही ऐसी हो चुकी है की बच्चे मोबाइल व जंक फूड की तरफ आकर्षित होते हैं। इसे रोक पाना भी मुश्किल होता है। मेरा बेटा कुछ दिन से चीजें धुंधली दिखने की शिकायत कर रहा है और अभी वह केवल पांच साल का है।
-स्वाति शर्मा, अभिभावक।