अधिकारियों पर फूटेगा म्यूटेशन बिल की खामियों का ठीकरा
रांची आशीष झा लैंड म्यूटेशन एक्ट कैबिनेट से पारित होने के बावजूद विधानसभा में नहीं ला पाने का ठीकरा किसी ना किसी पर फूटना तय है। फिलहाल अधिकारियों पर ही आरोप लग रहे हैं। शिकायत के साथ साक्ष्य भी दिए जा रहे हैं। कैबिनेट की बैठक के पूर्व मंत्रियों को इस बिल से संबंधित एजेंडा नहीं मिलने और अंतिम समय में विचार के लिए प्रस्ताव लाने की बात भी कही जा रही है।
रांची, आशीष झा : लैंड म्यूटेशन एक्ट कैबिनेट से पारित होने के बावजूद विधानसभा में नहीं ला पाने का ठीकरा किसी ना किसी पर फूटना तय है। फिलहाल अधिकारियों पर ही आरोप लग रहे हैं। शिकायत के साथ साक्ष्य भी दिए जा रहे हैं। कैबिनेट की बैठक के पूर्व मंत्रियों को इस बिल से संबंधित एजेंडा नहीं मिलने और अंतिम समय में विचार के लिए प्रस्ताव लाने की बात भी कही जा रही है। कांग्रेस ने अब अधिकारियों के खिलाफ एक तरह से मोर्चा खोल दिया है। मुख्यमंत्री से भी इनकी शिकायत की गई है। सत्ताधारी दल इस बात से खासे परेशान हैं कि विपक्ष को बैठे-बिठाए एक मुद्दा मिल गया। भाजपा इस मुद्दे पर पहले से ही अपनी पीठ थपथपा रही है।
राज्य में नई सरकार बनने के बाद से विधानसभा के मानसून सत्र की शुरुआत के पूर्व ही सरकार की किरकिरी हो गई। यह फजीहत म्यूटेशन बिल को वापस लेने को लेकर हो रही है। सदन में पेश करने के पूर्व ही कांग्रेस विधायकों और फिर झामुमो की कोर टीम ने भी इसे जनविरोधी करार दिया, जिसके बाद विधेयक पर सरकार ने कदम वापस लिए। अब मुद्दा उठ रहा है कि कैबिनेट में यह मसला कैसे पास हो गया। जिस कैबिनेट बैठक में इस मसले पर चर्चा हुई, उसमें कांग्रेस कोटे के चार मंत्रियों में से सिर्फ रामेश्वर उरांव मौजूद थे। अन्य मंत्री किसी ना किसी कारण से कैबिनेट की बैठक में मौजूद नहीं थे और इसकी जानकारी दे दी थी। अब सभी मंत्री बता रहे हैं कि उनकी अनुपस्थिति में यह पूरा प्रकरण हुआ है। दूसरी ओर, कैबिनेट की बैठक में मौजूद मंत्री विभाग पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। झामुमो और कांग्रेस के मंत्रियों ने इस मामले में स्पष्ट तौर पर राजस्व विभाग पर दोष मढ़ दिया है। एक अन्य मंत्री ने यहां तक कहा कि जिन लोगों ने रघुवर दास सरकार में धोखे से अथवा विश्वास में लेकर सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन करा लिया, उन्हीं लोगों ने इस काम को अंजाम दिया है। इस विवाद को कोई बढ़ाना नहीं चाहता, लेकिन मंत्री अपने ऊपर भी कुछ लेना नहीं चाहते। चुप रहने का कारण बताते हैं कि मुख्यमंत्री का विभाग होने के कारण इस मामले में कोई अधिक हस्तक्षेप नहीं करना चाहता था और बैठक में स्पष्ट तौर पर बातें नहीं रखी गई थीं। मंत्री मानकर चल रहे थे कि बिहार की तर्ज पर नियमावली बनी है, लेकिन बदलाव की जानकारी किसी को नहीं थी। यही कारण है कि अब पता लगाया जा रहा है कि राजस्व विभाग में कौन-कितने दिनों से टिका हुआ है। सचिव समेत तमाम पदाधिकारी का कार्यकाल स्कैन हो रहा है।
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