यहां है भोलेनाथ का अद्भुत पारदर्शी शिवलिंग, अंग्रेजों ने खरीदने की जताई थी इच्छा Koderma News
Koderma News कोडरमा के डोमचांच प्रखंड में भगवान शंकर का एक शिवलिंग है। इसे यहां निरंजन नाथ के नाम से पूजा जाता है। विधायक मंत्री से लेकर दूर-दूर से लोग भगवान भोले के इस अद्भुत शिवलिंग के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
कोडरमा, जासं। भगवान भोले के अनेक रूपों के साथ अनेकों नाम से आप वाकिफ होंगे। लेकिन कोडरमा जिले के डोमचांच प्रखंड के मसनोडीह में भगवान भोलेनाथ शंकर का एक अद्भुत शिवलिंग है। यहां का शिवलिंग पूरी तरह से ठोस पत्थर का होने के बावजूद पारदर्शी है। भगवान भोले के पारदर्शी स्वरूप को लोग यहां भगवान निरंजन नाथ के रूप में पूजते हैं।
सन 1850 में वर्तमान बिहार के नवादा जिला अंतर्गत बारतगढ़ इस्टेट के जमींदार धर्म नारायण सिंह के द्वारा इस शिवलिंग को स्थापित किया गया था। पारदर्शी शिवलिंग होने की विशेषता के कारण ही यह मंदिर काफी विख्यात है। लोग इसे स्फटिक का पत्थर भी बताते हैं। मसनोडीह निवासी दीपक सिंह बताते हैं कि उनके पूर्वज धर्म नारायण सिंह को डेढ़ दशक पहले भगवान भोले स्वप्न में दिखाई दिए थे और मसनोडीह से थोड़ी दूर चंचाल पहाड़ी क्षेत्र में होने की बात उन्हें स्वप्न में बताई थी।
अगले ही दिन उन्हेंं उसी स्थान पर यह शिवलिंग के आकार का पत्थर मिला। इसके बाद पूरे विधि-विधान व मंत्रोच्चारण के साथ शिवलिंगरूपी स्फटिक पत्थर को लाया गया और यहां स्थापित किया गया। शिवलिंग के स्थापित होने के बाद यहां के लोगों की आस्था इसके प्रति लगातार बढ़ती जा रही है। विधायक, मंत्री से लेकर दूर-दूर से लोग भगवान भोले के इस अद्भुत शिवलिंग के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
दीपक जलाने के बाद आर पार दिखता है शिवलिंग
मसनोडीह में पूर्व जमींदार धर्म नारायण सिंह के परिसर में एक छोटे से मंदिर में स्थापित भगवान शंकर के इस शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शिवलिंग के सामने दीपक जलाने पर शिवलिंग आर-पार दिखाई देती है। इसे देखने के लिए लोग काफी उत्सुकता के साथ यहां आते हैं और भगवान से मनोवांछित कामना करते हैं।
अद्भुत शिवलिंग को अंग्रेजों ने भी खरीदने की जताई थी इच्छा
1850 में स्थापित इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी हैं। राजा महाराजा के काल में बने इस मंदिर में अंग्रेजों की भी नजर थी। पारदर्शी पत्थर होने के कारण कई बार अंग्रेजों ने उस वक्त के जमींदारों से इस शिवलिंग को खरीदने की चेष्टा भी की, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मंदिर की स्थापना के बाद से ही धर्म नारायण सिंह के परिवार के साथ-साथ मसनोडीह गांव की खूब तरक्की हुई और लोगों के रहन-सहन में काफी बदलाव आया।
स्थानीय निवासी मृत्युंजय प्रसाद बताते हैं कि जब राजा ने इस मंदिर में शिवलिंग को स्थापित किया, उसके बाद मसनोडीह गांव में खेती-बाड़ी से लेकर हर चीज में तरक्की हुई। यहां के लोग आर्थिक रूप से सशक्त बनते गए। ऐसे में इस मंदिर के प्रति लोगों की अटूट आस्था है। उन्होंने बताया कि उनकी जानकारी के मुताबिक कई बार अंग्रेजों के बड़े अधिकारियों ने यहां के राजा से इस शिवलिंग को ले जाने की इच्छा व्यक्त की
और इसकी एवज में मुंह मांगी रकम देने की बात भी कही, लेकिन राजा ने अंग्रेजों की इच्छा को कभी पूरा नहीं होने दिया। मंदिर के पुजारी रविंद्र पांडे बताते हैं कि मंदिर की स्थापना के बाद गांव की तरक्की से लोग खुश थे और उसी वक्त से सभी तबके के लोगों का मंदिर में आना-जाना था। उन्होंने बताया कि वे अपने पूर्वजों की चौथी पीढ़ी हैं जो इस मंदिर में पूजा-पाठ कर रहे हैं। आज भगवान की कृपा से उन्हें भी कोई दिक्कत नही है।