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दवा दुकानों में बिक्री पर रोक के बावजूद रेमडेसिविर की कालाबाजारी, जानें इसके पीछे की बड़ी वजह

Remdesivir Coronavirus Jharkhand News सरकार द्वारा सीधे निजी अस्पतालों को रेमडेसिविर देने के बाद भी इसकी कालाबाजारी हो रही है। औषधि प्रशासन आपूर्ति के अनुसार प्रतिदिन अस्पतालों को आवंटन देता है। हालांकि अभी तक न तो पुलिस न ही औषधि प्रशासन एक भी दलाल को पकड़ पाया है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sun, 25 Apr 2021 06:54 PM (IST)Updated: Sun, 25 Apr 2021 07:02 PM (IST)
Remdesivir, Coronavirus, Jharkhand News अभी तक न तो पुलिस न ही औषधि प्रशासन एक भी दलाल को पकड़ पाया है।

रांची, राज्य ब्यूरो। कोरोना वायरस के मामले अचानक तेजी से बढ़ने के बाद जिस दवा की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह रेमडेसिविर है। जरूरत के अनुरूप इसकी उपलब्धता की भी वही स्थिति है जो ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की है। राज्य सरकार द्वारा सीधे निजी अस्पतालों को रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध कराने के बावजूद इसकी कालाबाजारी हो रही है। इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह अस्पताल से बाहर कैसे आ रहा है। दरअसल, कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में इस इंजेक्शन के इस्तेमाल किए जाने के बाद इसकी अचानक मांग बढ़ गई।

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दूसरी तरफ, आवश्यकता के अनुसार इसकी आपूर्ति नहीं हो पा रही है। केंद्र के निर्देश पर राज्य सरकार ने कालाबाजारी रोकने के लिए रेमडेसिविर की दवा दुकानों में खुली बिक्री पर रोक लगा दी है। राज्य सरकार के औषधि प्रशासन संबंधित कंपनियों से स्वयं आपूर्ति लेकर निजी अस्पतालों को मांग के अनुपात में देता है। हालांकि अस्पतालों को मांग के अनुरूप इंजेक्शन नहीं मिल पा रही है। निजी अस्पतालाें को रेमडेसिविर देने में भेदभाव के आरोप भी लग रहे हैं, लेकिन औषधि प्रशासन इसकाे सिरे से इन्‍कार करता है।

वहीं, निजी अस्पतालों में सभी गंभीर मरीजों को रेमडेसिविर नहीं दिए जाने तथा मरीजों से इसके लिए अधिक कीमत वसूले जाने की बातें आती रही हैं। दूसरी तरफ, दलालों द्वारा रेमडेसविर कई गुना कीमत पर बेचे जाने की भी बातें आती हैं। हालांकि अभी तक न तो पुलिस न ही औषधि प्रशासन एक भी दलाल को पकड़ पाया है। इस संबंध में औषधि प्रशासन के जिम्मेदार पदाधिकारियों का कहना है कि अभी तक उनके समक्ष ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है।

निजी अस्पतालों के क्रय करने पर नहीं है रोक

औषधि प्रशासन के पदाधिकारियों के अनुसार, निजी अस्पतालों द्वारा सीधे कंपनी से रेमडेसिविर खरीदने पर रोक नहीं है। कंपनियां ही अस्पतालों को सीधे आपूर्ति नहीं करती हैं। इसकी बड़ी वजह इसकी कमी भी है।

30 अप्रैल तक के लिए झारखंड को मिलेंगे 21 हजार रेमडेसिविर

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने झारखंड को 30 अप्रैल तक के लिए 21 हजार रेमडेसिविर आवंटित किए हैं। इसके तहत जायडस कैडिला से 10 हजार, हेटेरो से 7,300, सिपला से 2700 तथा जुबिलैंट लाइफ साइंसेज से 1,000 रेमडेसिविर झारखंड को मिलेंगे। शुरू में झारखंड को 15,500 इंजेक्शन का आवंटन हुआ था, जिसे बढ़ाकर 21 हजार किया गया।

राज्य सरकार ने एक लाख इंजेक्शन का किया है टेंडर

राज्य सरकार ने एक लाख रेमडेसिविर क्रय करने के लिए टेंडर किया है। अब देखना है कि इसमें कितनी कंपनियां आगे आती हैं, क्योंकि पूरे देश में इसकी कमी है। राज्य सरकार ने 15 दिन पूर्व भी टेंडर किया था लेकिन एक भी कंपनी टेंडर में शामिल नही हुई। राज्य सरकार ने बांग्लादेश से रेमडेसिविर आयात करने की भी अनुमति भारत सरकार से मांगी है। बताया जाता है कि अभी तक इसपर अनुमति नहीं मिली है।

सात कंपनियां करती हैं रेमडेसिविर की आपूर्ति

देश में सात कंपनियां सिपला, जाइडस कैडिला, हेटेरो, माइलैन, जुबिलैंट लाइफ साइंसेज, डॉ. रेड्डीज, सन फार्मा रेमडेसिविर का उत्पादन करती हैं। इन कंपनियों में 38.80 लाख यूनिट की उत्पादन क्षमता है।

सभी मरीजों के लिए रेमडेसिविर जरूरी नहीं

रेमडेसिविर एक एंटीवायरल दवा है जिसका एक दशक पहले हेपेटाइटिस सी और सांस संबंधी बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता था। वर्तमान में इसका इस्तेमाल कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में किया जा रहा है। हालांकि कोरोना के इलाज में इसके प्रभावी ढ़ंग से काम करने को किसी ने मान्यता नहीं दी है। एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने भी कहा है कि मरीज को शुरुआती दौर में रेमडेसिविर देने से नुकसान हो सकता है। उनके अनुसार, बीमारी बहुत अधिक बढ़ जाने के बाद भी रेमडेसिविर देने से भी कोई लाभ नहीं होता। इसे बीमारी की बीच वाली अवस्था में ही दिया जाना चाहिए।


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