#धरतीआबा_बिरसा मुंडा ने तीर-कमान से छुड़ाए थे अंग्रेजों के छक्के, आदिवासियों के सुपर हीरो को जानिए
Birsa Munda 144th Birth Anniversary. ,धरतीआबा_बिरसा मुंडा की 144वीं जयंती पर झारखंड समेत देशभर में उन्हें नमन कर श्रद्धांजलि दी जा रही है।
रांची, [जागरण स्पेशल]। Birsa Munda 144th Birth Anniversary #धरतीआबा_बिरसा मुंडा की 144वीं जयंती पर झारखंड समेत देशभर में उन्हें नमन कर श्रद्धांजलि दी जा रही है। आदिवासियों के सुपर हीरो के नाम पर सोशल मीडिया में भी खूब संस्मरण शेयर किए जा रहे हैं। #धरतीआबा_बिरसा मुंडा हैशटैग के साथ लाइक्स, रीट्वीट और कमेंट का दौर सतत चल रहा है। भगवान #धरतीआबा_बिरसा मुंडा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने महज तीर-कमान से आदिवासियों पर जुल्म ढाने वाले अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। #धरतीआबा_बिरसा मुंडा की सिर्फ 25 साल की उम्र में रहस्यमय परिस्थितियों में जेल में मौत हो गई थी।
रांची से सटे उलिहातू में है #धरतीआबा_बिरसा मुंडा की जन्म स्थली
#धरतीआबा_बिरसा मुंडा की जन्मस्थली झारखंड की राजधानी रांची से सटे अड़की प्रखंड का उलिहातू गांव है। यहां आज भी #धरतीआबा_बिरसा मुंडा के वंशज वास करते हैं। गांव के लोग अपने पूर्वज #धरतीआबा_बिरसा मुंडा के प्रति पूरी निष्ठा रखते हैं। #धरतीआबा_बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को यहां एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। मां सुगना और पिता करमी के घर पैदा हुए #धरतीआबा_बिरसा मुंडा ने सकला में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। सन् 1895 के बाद उन्होंने आदिवासी संस्कृति से जुड़े लोगों में ऐसी पैठ बनाई की उन्हें भगवान का दर्जा दे दिया गया।
19वीं सदी के जननायक हैं #धरतीआबा_बिरसा मुंडा
#धरतीआबा_बिरसा मुंडा अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई के बड़े सूत्रधारों में शुमार रहे। उन्हें जननायक के रूप में लोग याद करते हैं। तब उन्होंने अंग्रेजों को उनकी हैसियत बताते हुए आदिवासी संग्राम को उल-गुलान का नाम दिया था। अंग्रेजों की फॉरेस्ट नीति के खिलाफ उनके धारदार आंदोलन को आज भी याद किया जाता है। आदिवासियों कीजमीन हड़पने वाले कानून की मुखालफत करते हुए #धरतीआबा_बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश सरकार की चूलें हिला दीं। उन्हें तब 2 साल के लिए जेल की कड़ी सजा दी गई।
जयंती पर उलिहातू में #धरतीआबा_बिरसा मुंडा को किया नमन
#धरतीआबा_बिरसा मुंडा की 144वीं जयंती के अवसर पर शुक्रवार को उनकी जन्मस्थली अड़की प्रखंड के उलिहातू गांव में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम बिरसा मुंडा के वंशज सुखराम मुंडा परिवार के सदस्यों के साथ गांव में स्थित स्मारक स्थल (बिरसा ओड़ा) पर पहुंचे। यहां उन्होंने पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ पूजा-अर्चना कर भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धासुमन अर्पित किए। इसके बाद बिरसा के अनुयायी बिरसाइत धर्म मानने वालों तथा गांव वालों ने बारी-बारी से बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर आदिवासी रीति-रिवाज से पूजा की।
विधायक विकास कुमार मुंडा ने भी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। इसके बाद आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने भी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। जिला प्रशासन की ओर से आइटीडीए के परियोजना निदेशक हेमंत सती कल्याण विभाग के अधिकारियों के साथ बिरसा ओड़ा पहुंचे और भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धा सुमन अर्पित किया।
जयंती के अवसर पर बिरसा ओड़ा में उत्सव का माहौल बना रहा। बिरसा मुंडा को नमन करने के लिए दूरदराज के ग्रामीणों समेत सामाजिक संगठनों के लोग व बिरसा मुंडा अनुयायियों का दिनभर बिरसा ओड़ा में तांता लगा रहा। ग्रामीण अपने पूर्वज धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा को नमन कर अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। इस दौरान वहां सामूहिक नाच-गान का दौर चलता रहा।
इस दौरान गांव में हॉकी मैच का आयोजन भी किया गया। साथ ही कल्याण अस्पताल अड़की के संचालक दीपक फाउंडेशन के तत्वावधान में निश्शुल्क स्वास्थ्य शिविर लगाकर क्षेत्र के दो सौ ग्रामीणों की स्वास्थ्य जांच की गई। साथ ही उन्हें दवा भी दी गई। शाम को उलीहातू व आसपास के गांवों के अखड़ा में नाच-गान का आयोजन हुआ। इसमें बड़ी संख्या में महिलाओं व पुरुषों ने भाग लिया। सामूहिक नृत्य-गीत के द्वारा ग्रामीणों ने बिरसा मुंडा के दोबारा धरती पर आने का आह्वान किया।
इस मौके पर बिरसा मुंडा के वंशज सुखराम मुंडा एवं कल्याण अस्पताल के प्रबंधक डॉ. रवि यादव, डॉ. सुबोध कुमार, डॉ. सुभाशीष चटर्जी, डॉ. ओपी नारायण, डॉ. अंकिता प्रिया आदि ने बिरसा मुंडा के बलिदान पर चर्चा करते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।