दिनेश शर्माl झारखंड के पश्चिमी सिंहभू‍म जिले में बसे चक्रधरपुर के कुड़मियों में विवाह की बिल्कुल अनोखी परंपरा है। यहां परंपरागत विवाह में न तो पंडित की जरूरत होती है, न वैदिक मंत्रोच्चारण होता है और न ही सात फेरे लिए जाते हैं। सामान्य सनातनी विवाह की तरह अग्नि की साक्षी भी नहीं होती। तिलक-दहेज की तो बात ही छोड़िए, यहां वधू मूल्य चुकाकर शादी की अनोखी परंपरा है। यानी दहेज तो है ही नहीं, उल्टा वर पक्ष वधू पक्ष को वधू मूल्य देता है।

कुड़मी समाज में अग्नि को साक्षी मानने का नहीं है रिवाज

कुड़मी परंपरा में समाज की जानकार महिलाएं सभी रीति-रिवाजों को पूरा करवाती हैं, जिसके अनुसार कई तरह के नेग होते हैं। इन नेग में गीत गाए जाते हैं। यहां सात फेरों व अग्नि को साक्षी मानने का भी रिवाज नहीं है। शादी से पहले भूत पिढ़ा के सामने भाभी या कोई विवाहिता हाथ पकड़कर वधू के तीन चक्कर लगवाती है। भूत पिढ़ा घर के आंगन में बना वह स्थान है, जिसे पूर्वजों को समर्पित स्थान माना जाता है। वरमाला के स्थान पर वर और वधू मालाओं की आपस में अदला-बदली करते हैं।

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वधू पक्ष को मूल्‍य चुकाने बाद ही दी जाती है विदाई

इसी परंपरा का निर्वाहन करते हुए कुड़मी नेगाचारि के अनुसार, सोनुवा प्रखंड के बेलपोस निवासी काली शंकर महतो ने अपने पुत्र जगबंधु महतो की शादी वधू मूल्य चुका कर कराई। बीते 27 नवंबर को ईचागढ़ प्रखंड के खिरी निवासी बुद्धेश्वर महतो की बेटी रिसीता महतो उर्फ ईशा के साथ कुड़मी सामाजिक रीति-रिवाज से बिना ब्राह्मण के शादी संपन्न हुई। वर पक्ष द्वारा पनटाका, धुलि उड़ा, चइकपुरा, गीतगाहा, संगछाड़ा आदि विभिन्न नेग पर कन्या पक्ष को नकद राशि प्रदान की गई। वर पक्ष द्वारा सभी मूल्य चुकाने के पश्चात कुलहीमुड़ा में संगछाड़ा मूल्य प्रदान करने के बाद वर-कन्या को विदाई दी गई।

अब शहरियों की नकल में जुटे हैं लोग

कन्या के भाई व कुड़माली नेगाचारी के जानकार व साहित्यकार राजेन्द्र प्रसाद महतो ‘राजेन’ ने बताया कि हमारे कुड़मी समाज के विवाह संस्कार में ब्राह्मण प्रथा कभी नहीं रही। वर्तमान में पढ़े-लिखे शिक्षित व आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के विवाह समारोह में शहरियों की नकल होने लगी है। शहरीकरण के पश्चात कुड़मी संस्कृति व संस्कार पर अतिक्रमण प्रारंभ हुआ है, जो खेदजनक है। बाराती बाजे गाजे के साथ नृत्य करते हुए गांव में प्रवेश करते हैं। इस क्रम में धूल उड़ती है। इस पर कन्या पक्ष को नेग की राशि दी जाती है। कन्या की विदाई के समय गांव के अंतिम छोर तक कन्या की सहेलियां छोड़ने जाती हैं। वर सहेलियों को नेग राशि देकर समझा-बुझाकर वापस भेजता है।

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Edited By: Arijita Sen