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करम आज, दिखेगी संस्कृति की झलक, थिरकेंगे पांव

आदिवासी समाज के करम त्योहार को लेकर रांची समेत पूरे राज्य में उत्सवी माहौल है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Sep 2021 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 17 Sep 2021 06:00 AM (IST)
करम आज, दिखेगी संस्कृति की झलक, थिरकेंगे पांव

जासं, रांची/बेड़ो: आदिवासी समाज के करम त्योहार को लेकर रांची समेत पूरे राज्य में उत्सवी माहौल है। इसे लेकर रांची के हर अखड़ा में तैयारी चल रही है। करमटोली चौक स्थित अखड़ा, हातमा स्थित अखड़ा, सहजानंद चौक स्थित अखड़ा आदि में भव्य सजावट की गई है। कोरोना संक्रमण के देखते हुए इस बार करम का पर्व बडे़ सादगी से मनाया जाएगा।

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केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा कि करम महापर्व प्राकृतिक पूजा आदिवासियों का महान पर्व है। इस त्योहार के माध्यम से आदिवासियों की संस्कृति परंपरा को जीवित रखते हैं। आदिवासी पर्व त्योहार नहीं मनाने से आदि काल से चली आ रही परंपरा संस्कृति नष्ट हो जाएगी। उन्होंने कहा कि करमा त्योहार गांव घर का त्योहार हैं। पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी कोविड-19 का पालन करते हुए सादगी से करमा मनाया जाएगा। इस वर्ष भी किसी तरह के जुलूस का आयोजन नहीं किया जाएगा। बहनें भाइयों की रक्षा का लेती है संकल्प

करम या करम्र पर्व झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों का लोकपर्व है। यह पर्व फसलों और वृक्षों की पूजा का पर्व है। यहां की संस्कृति और लोक नृत्य कला का आनंद करमा पर्व में भरपूर देखने को मिलता है। आदिवासियों के पारंपरिक परिधान पहने लड़कियां जगह-जगह लोक नृत्य करते नजर आएंगी। भादो महीने की उजाला पक्ष की एकादशी को यह पर्व पूरे राज्य में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जबकि इस पर्व की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है और पूजा पाठ एकादशी के पहले सात दिनों तक चलती है। झारखंड में करम कृषि और प्रकृति से जुड़ा पर्व है। जिसे झारखंड के सभी समुदाय हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। करम नृत्य को नई फसल आने की खुशी में लोग नाच गाकर मनाते हैं। इस पर्व को भाई-बहन के अगाध प्यार के रूप में भी जाना जाता है। बहनें भाइयों की रक्षा का संकल्प लेती हैं।

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सात दिन पहले ही शुरू हो जाती करम पूजा

एकादशी से सात दिन पहले ही करमा पूजा शुरू हो जाती है। करमा पर्व मनाने के लिए सात दिन पहले युवतियां अपने गांव में नदी या तालाब जाती हैं, जहां बांस की टोकरी में मिट्टी डालकर इसमें धान, गेंहू, चना, मटर, मकई, जौ, बाजरा, उरद आदि के बीज बोती हैं। उसके बाद निरंतर सात दिनों तक सुबह-शाम टोकरियों को बीच में रखकर सभी सहेलियां एक-दूसरे का हाथ पकड़कर व उसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए गीत गाते हुए नाचती हैं, जिसे जावाडाली जगाना कहा जाता है। टोकरियों में बोए गए बीज को अंकुरित करने के लिए करम त्योहार के एकादशी तक हल्दी मिले जल के छींटों से सुबह शाम नियमित रूप से सींचा जाता है। सात दिनों में जब बीज अंकुरित हो जाते हैं तो एकादशी के दिन करम पूजा में उस जावा डलिया को शामिल किया जाता है।

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अखड़ा में पहान से सुनते है करम की कथा

करम पर्व पर सभी लोग अखड़ा में पाहन से करम कथा सुनते हैं। फिर अखड़ा में युवक-युवतियों द्वारा पारंपरिक रूप से करमगीत और नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं। करमा कथा और करम गीत में कई अलग-अलग कहानिया प्रचलित हैं, लेकिन सभी में कर्म प्रधानता और प्रकृति संरक्षण का संदेश दिया गया है। पूजा के बाद खेत में गाड़ते हैं करम डाली

पूजा के बाद करम डाली को खेत में गाड़ दिया जाता है, ऐसा माना जाता है कि इससे फसल सुरक्षित रहता है और पैदावार अधिक होती है। करम त्योहार कृषि और प्रकृति से जुड़ा है, जिसमें परिवार की सुख समृद्धि के साथ फसलों की अधिक पैदावार के लिए प्रकृति से आराधना की जाती है। पर्यावरण संरक्षण व भाई-बहन के रिश्ते को मजबूती

करम पर्व को भाई-बहन के प्यार को बढ़ावा देने के साथ ही खेत में लगी धान की बालियों नई फसल आने की खुशी में नाच-गाकर मनाया जाता है। लोगों को मानना है कि पेड़-पौधे और जंगल के बिना लोग नहीं जी सकते, इसलिए उसकी रक्षा व देखरेख के संकल्प को दोहराने के लिए झारखंड में कई पर्व मनाए जाते हैं, जिसमें एक करमा पर्व भी है। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण के साथ ही भाई-बहन के रिश्ते को भी मजबूती देता है। कर्म पूजा विशेषकर प्रकृति की पूजा है। इस पूजा में लड़कियां अपने भाइयों की सुरक्षा तथा अपने भावी जीवन के लिए उपवास करती हैं। बीते वर्ष भी करोना की वजह से कर्मा पर्व अच्छे ढंग से नहीं मना पाए थे। चूंकि, इस वर्ष भी स्थिति कुछ खास ठीक नहीं है, इसलिए इस बार भी हम सरकार द्वारा दिए गए कोविड निर्देशों का पालन करते हुए पर्व को सादगी व श्रद्धा के साथ मनाएंगे। शारीरिक दूरी का पूरा ध्यान रखा जाएगा। पूजा में शामिल होना से पहले लोगों को सैनिटाइज किया जाएगा।

जगलाल पहान, मुख्य पहान झारखंड प्रदेश प्राकृतिक रूप से संपन्न प्रदेशों में से एक झारखंड की पहचान मुख्य रूप से कला संस्कृति खेल के रूप में पहचाना जाता है। यह त्योहार प्राकृतिक तथा अध्यात्म के बीच अटूट संबंध को दर्शाता है। यही नहीं इनकी रीति-रिवाज परंपरा तथा मान्यताओं का अद्भूत संगम होता है। लोक कथाओं में भी मान्यता है कि आदिवासी समाज खेती बारी करने के बाद अच्छी फसल हो। इसी कामना को लेकर के रिझ रंग के साथ मनाया जाता है। करम ही पूजा है। करम ही धर्म है। कर्म ही जीवन है। कर्म ही आनंद है। कर्म ही उल्लास है। करमा पूजा यह संदेश देता है।

प्रेम शाही मुंडा, अध्यक्ष, आदिवासी जन परिषद


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