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Jivitputrika Vrat 2021: यहां कुंवारी लड़कियां भी करती हैं जितिया व्रत, जानें इसकी बड़ी वजह

Jitiya Parv Jivitputrika Vrat 2021 Jharkhand News झारखंड के खूंटी में कुंवारी कन्‍याएं जितिया व्रत करती हैं। यह सुनने में भले ही थोड़ा अटपटा लगे पर सच यही है। अच्छा वर-घर पाने की कामना को लेकर उपवास रखने की परंपरा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 27 Sep 2021 09:58 PM (IST)Updated: Tue, 28 Sep 2021 07:04 AM (IST)
Jivitputrika Vrat 2021: यहां कुंवारी लड़कियां भी करती हैं जितिया व्रत, जानें इसकी बड़ी वजह
Jitiya Parv, Jivitputrika Vrat 2021, Jharkhand News झारखंड के खूंटी में कुंवारी कन्‍याएं जितिया व्रत करती हैं।

खूंटी, [दिलीप कुमार]। जीवित्पुत्रिका या जितिया झारखंड का एक प्रमुख त्योहार है। इसे आदिवासी और गैर आदिवासी भी निष्ठा और विश्वास के साथ मनाते हैं। मान्यता के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखती हैं। जितिया की पौराणिक कथा में भी संतान के दीर्घायु होने की कामना से जीवित्पुत्रिका व्रत करने का वर्णन आता है। इसकी कहानी राजा जिमुतवाहन से जुड़ी हुई है।

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जिन महिलाओं के बच्चे नहीं हैं, उन्हें जितिया व्रत करने का अधिकार नहीं है, लेकिन कर्रा प्रखंड के पश्चिमी भाग के कई गाांवों में बाल-बच्चेदार महिलाएं के साथ, कुंवारी कन्याएं भी जितिया का व्रत करती हैं। सुनने में यह भले ही थोड़ा अटपटा लगे, पर पहाड़टोली, बमरजा, डुमरगड़ी, कइसरा, खटंगा, कंडरकेला, कुरकुरिया, बुढ़ीरोमा सहित कई गांवों में कुंवारी लड़कियां अच्छे वर और घर पाने की कामना से जितिया का उपवास रखती हैं।

आदि काल से चली आ रही परंपरा : पाहन

कर्रा प्रखंड के पहाडटोली गांव के पाहन कांडे पाहन बताते हैं कि कुंवारी लड़कियों के जितिया पूजा करने की परंपरा उनके गांव में सदियों से चली आ रही है। पूर्वजों के काल से आ रही परंपरा को वे भी बखूबी निभाते आ रहे हैं। इस अनोखी परंपरा के शुरू होने के पीछे क्या कारण रहे होंगे, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। उन्होंने बताया कि जितिया पूजा के दिन तीन कुंवारे लड़के जंगल से करम डाली लाते हैं। गाजे-बाजे के साथ कुंवारे लड़के करम डाली गांव के अखरा तक लाते हैं।

करम डाली को करम अखरा में गांव के पाहन ही स्थापित करते हैं। इसके एक सप्ताह पूर्व तीन कुंवारी लड़की नदी से महीन बालू लेकर आती है। इस महीन बालू के साथ सात प्रकार के अनाज का बीज मिलाती है। इसे बांस की बनी तीन अलग-अलग डालियों में रखा जाता है। इसे घर के एक स्थान पर रखा जाता है। इसे ही जितिया का जावा कहा जाता है। एक सप्ताह के दौरान उसमें पौधे तैयार हो जाता है। जिसका जावा अधिक होता है, उसे उतना ही अच्छा माना जाता है।

पहाड़टोली के पाहन यानि पुजारी कांडे पहान बताते हैं कि उनके पूर्वजों की परंपरा के तहत जितियां पूजा के दौरान करम अखरा में पूजा-अर्चना के बाद लाल रंग के मुर्गे की बलि दी जाती है। बलि दिए जाने वाले मुर्गे को चावल से साथ पकाया जाता है और इसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है। इस प्रसाद को महिलाएं नहीं ग्रहण करती हैं, इसे पाहन के परिवार के पुरुष ही ग्रहण करते हैं।

एक सप्ताह तक रोज होती है जावा की पूजा

जितिया पूजा में जावा का काफी महत्व है। बिना जावा के पूजा नहीं हो सकती। पहाड़टोली और आसपास के गांवों में कुंवारी लड़कियों ने बुधवार को जावा उठाया है। घर में जावा स्थापित कर रोज पूजा-अर्चना की जा रही है। सुबह लड़कियां नहाकर सबसे पहले जावा की पूजा करती हैं। रोज धूप, अरवा चावल, खीरा आदि से जावा की पूजा की जा रही है। जब तक घर में जावा रहता है, उतने दिनों तक घर में मांस-मदिरा का प्रयोग पूरी तरह बंद रहता है। इस दौरान व्रति लड़कियां सात्विक भोजन करती हैं।

'पहाड़टोली गांव के अखरा में जितिया के दिन जितिया व करम की डाली गाड़कर लड़कियां सामूहिक पूजा-अर्चना करती हैं। अखरा में गांव के पाहन पूजा कराते हैं। रात भर अखरा में नाच-गान का दौर चलता रहता है। दूसरे दिन शाम को चार-पांच बजे गाजे-बाजे के साथ करम की डालियों को नदियों में प्रवाहित करा दिया जाता है। जितिया (पीपल की डाली) को सूर्योदय से पहले नदियों में विसर्जित किया जाता है, जबकि करम की डाली का विसर्जन शाम को होता है।' -उपेंद्र पाहन।

'पहाड़टोली ही नहीं, आसपास के दर्जनों गांवों में कुंवारी लड़कियां जितिया का उपवास करती हैं। आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को दिन भर निर्जला उपवास रहकर शाम को पीपल पेड़ की डालियों को घर के आंगन में गाड़कर उनकी विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं। इसके लिए एक सप्ताह पहले ही कुंवारी लड़कियां नदी से जावा उठाती हैं। करम पूजा की तरह ही जितिया पूजा की जाती है।' -रेखा कुमारी।

'अश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात को पूजा-अर्चना के बाद दूसरे दिन शाम साढ़े चार बजे जावा को नदियों में भक्तिभाव से विसर्जित कर दिया जाता है। डालियों के विसर्जन के बाद ही व्रति अन्न ग्रहण करती हैं। जो महिलाएं जितिया का व्रत करती हैं, वे किसी के घर में गाड़े गए जितिया डाली के पास जाकर पूजा-अर्चना करती हैं। करम अखड़ा में सिर्फ कुंवारी लड़किया ही पूजा करती हैं।' -प्रियंका कुमारी।

'अच्छा घर व वर के लिए कुंवारी लड़कियां जितिया का व्रत करती हैं। इसको लेकर सभी एक सप्ताह पहले ही नदी से जावा उठाती है और रोज घर में उसकी पूजा-अर्चना करती है। जितिया के दिन करम अखरा में पाहन सामूहिक पूजा कराते हैं। इसके बाद सभी व्रति अन्न ग्रहण करती हैं। गांव में चली आ रही परंपरा के तहत गांव की अन्य लड़कियों के साथ पिछले दो साल से जितिया का व्रत कर पूजा-अर्चना करती हूं।' -अनिता कुमारी।


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