Jharkhand Politics: आदिवासी बनाम कुड़मी की लड़ाई में जलेगा झारखंड, एक दूसरे को दे रहे धमकी
Adivasi vs Kudmi लोकसभा चुनाव से पहले झारखंड में आदिवासी और कुड़मी की लड़ाई तेज हो गई है। कुड़मी आदिवासी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं और आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं। दोनों तरफ से एक दूसरे के खिलाफ आंदोलन की धमकी दी जा रही है।
रांची, राज्य ब्यूरो। Adivasi vs Kudmi In Jharkhand झारखंड में पिछली जाति में दर्ज कुड़मी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा संबंधी मांग के तूल पकड़ने का उल्टा असर पड़ रहा है। पिछले दिनों कुड़मी जाति से जुड़े विभिन्न सामाजिक संगठनों ने अपनी मांग के समर्थन में रेल रोको आंदोलन किया था। इसका असर बंगाल और ओडिशा पर भी पड़ा था। कुड़मी संगठनों की इस मांग का कई आदिवासी संगठनों ने अब खुलकर विरोध आरंभ किया है, जबकि पूर्व में यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक दल अक्सर चुनाव के वक्त उछालते थे। हाल ही में कुछ जातियों को जब केंद्र सरकार ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया तो कुड़मी संगठनों ने अपनी मांग तेज की। फिलहाल इनके आंदोलन का स्वर धीमा हो चला है, लेकिन आदिवासी संगठन मुखर हैं। उनके निशाने पर राज्य में सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) समेत अन्य दल हैं।
जल्द मांग पूरी नहीं होने पर आंदोलन करने की चेतावनी
उल्लेखनीय है कि सभी दल कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग का समर्थन करते हैं। झामुमो का कहना है कि केंद्र सरकार को इस संबंध में निर्णय करना है। यह राज्य का मसला नहीं है। आदिवासी संगठनों ने पिछले दिनों कुड़मी संगठनों की मांग के विरोध में राजधानी रांची में बड़ा प्रदर्शन भी किया था। इन्होंने आगे भी आंदोलन की घोषणा कर रखी है। उधर कुड़मी संगठनों ने भी चेतावनी दी है कि जल्द मांग नहीं मानी गई तो वे आंदोलन आरंभ करेंगे। उनके साथ पड़ोसी राज्य बंगाल और ओडिशा के कुड़मी संगठन भी हैं।
साथ देने वाले सारे नेताओं का जलाएंगे पुतला : सालखन मुर्मू
पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगेल अभियान के प्रमुख सालखन मुर्मू के मुताबिक कुड़मी महतो जाति या किसी भी अन्य बड़ी जाति समूह को वोट के लोभ-लालच और राजनीतिक फायदे के लिए अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने या कराने का कोई भी प्रयास असली आदिवासियों को फांसी के फंदे में लटकाने के समान है। झारखंड, बंगाल और ओडिशा के सत्ताधारी दल क्रमशः जेएमएम, टीएमसी और बीजेडी ने कुरमी महतो को एसटी बनाने की अनुशंसा कर आदिवासी विरोधी षड्यंत्र को अंजाम दिया है। आदिवासी सेंगेल अभियान इसकी कड़ी निंदा करता है। सेंगेल अभियान ने फैसला लिया है कि इन तीनों पार्टियों तथा कुड़मी को सहयोग करनेवाले सभी आदिवासी विधायक और सांसद को बेनकाब करने के लिए 30 अक्टूबर सभी प्रदेशों में इनका पुतला दहन किया जाएगा।
लोगों के बीच भ्रम फैला रहे सालखन मुर्मू : शीतल ओहदार
कुड़मी विकास मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शीतल ओहदार के मुताबिक सामाजिक स्तर पर कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने का कोई विरोध नहीं है। सालखन मुर्मू जैसे नेता भ्रम फैला रहे हैं। उनकी गतिविधियां कुछ राजनीतिक दलों को फायदा पहुंचाने के लिए है। अर्जुन मुंडा को भी डर है कि ऐसा हुआ तो उनकी राजनीति समाप्त हो जाएगी। यही लोग आदिवासी समाज में भ्रम फैला रहा है। कुड़मी समाज के लोग लगातार आदिवासी बुद्धिजीवियों के संपर्क में है। दोनों समुदाय सैकड़ों वर्षों से साथ रह रहे हैं। कुछ लोग गलत माहौल बना रहे हैं, जिसका असर नहीं पड़ेगा। हम दर्जा पाने के लिए लगातार आंदोलन करेंगे।
आदिवासी ही करते हैं आदिवासी का शोषण : शैलेंद्र महतो
जमशेदपुर के पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो का तर्क है कि कुड़मी संगठनों की मांग जायज है। कुछ लोग कह रहे हैं कि हमारी नजर आदिवासी जमीन पर है। ऐसे लोगों को बताना चाहिए कि कहां कुड़मी समुदाय के लोगों ने ऐसा किया है। सच्चाई यह है कि आदिवासी जमीन की दलाली इसी समुदाय के लोग करते हैं। यह कहना भी गलत है कि हम किसी का हक मारना चाहते हैं। जो आदिवासी संगठन विरोध कर रहे हैं वह प्रायोजित है। ये सामाजिक संगठनों को आगे कर राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं।