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Jharkhand Weekly News Roundup: यहां लाल-पीला बत्‍ती दिखाकर साहबों के कामों का लगाया जा रहा हिसाब

Jharkhand Weekly News Roundup एक गया तो दूसरे को काम दिया और इस प्रकार आना-जाना लगा रहा। रुकने की आदत ही खत्म हो गई थी।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 08 Sep 2020 05:47 PM (IST)Updated: Tue, 08 Sep 2020 05:49 PM (IST)
Jharkhand Weekly News Roundup: यहां लाल-पीला बत्‍ती दिखाकर साहबों के कामों का लगाया जा रहा हिसाब
Jharkhand Weekly News Roundup: यहां लाल-पीला बत्‍ती दिखाकर साहबों के कामों का लगाया जा रहा हिसाब

रांची, [आशीष झा]। लाल, पीली और हरी बत्तियों का पुराना सिद्धांत है। इसी सिद्धांत से पूरी दुनिया की ट्रैफिक चलती है, लेकिन झारखंड में इसपर सवाल उठने लगे हैं। किसी को लाल बत्ती दिखाकर काम से हटा देना तो ठीक, लेकिन पीली बत्ती दिखाकर बैठा देने पर सवाल उठ रहे हैं। अब तक कोई ऐसा करता ही नहीं था। एक गया तो दूसरे को काम दिया और इस प्रकार आना-जाना लगा रहा। रुकने की आदत ही खत्म हो गई थी। नई व्यवस्था में सबको रुकना पड़ रहा है। कोई सात दिन, तो कई महीने भर। हम तो कहते हैं ऐसे रुकने में कुछ भी खराबी नहीं है। रुककर आराम कर लिए। व्यवस्था चाक-चौबंद कर ली और फिर अगली सफर पर निकल लिए। कुछ अधिकारी तो बेवजह इसे तूल दे रहे हैं। उनके तूल देने से कुछ हो भी नहीं रहा। सबको आराम तो मिल ही रहा है।

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किसने रन आउट कराया?

उद्योग धंधा वाला विभाग बड़ा पावरफुल होता है। कहते हैं जिसपर खुश उसका उद्योग चला और जिससे नाराज हुए उसका धंधा चौपट। सो, उद्योग-धंधे वाले बड़े साहब सरपट दौड़ लगा रहे थे। कई और विभाग भी मिले। निर्णयों में कहीं किसी स्तर पर पूछना भी नहीं। शायद इसीलिए वे आरक्षण के तमाम नियमों को अपने बूते ही बदलने की तैयारी कर चुके थे। आदेश भी अजब-गजब जारी किए और कहीं किसी ने सवाल भी नहीं उठाया। लेकिन, अचानक रन आउट हो गए। अपने बीच से ही किसी ने रन आउट करा दिया। जो भी हो, कर्मियों ने राहत की सांस ली है। मिल-जुलकर काम करने वाले लोगों के बीच बड़े साहब ने एक तरह से दीवार खड़ी कर दी थी। खैर, रन आउट होने के बाद वे वापस तो चले गए, लेकिन करीबी यही पता लगा रहे हैं कि आखिर रन आउट कराया किसने।

एकला चलो रे...

मांडर में आजकल मांदर की ताल पर एकला चलो की तान सुनाई दे रही है। बड़ी पार्टी में अचानक छोटे हो गए नेताजी को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर माजरा क्या है कि उनकी कहीं सुनी नहीं जा रही। हार के बाद मिली जीत पर रोज कार्यक्रम करने का मन करता है, लेकिन पार्टी लाइन के आगे अपनी लकीर छोटी हो जाती है। चर्चा में बने रहने की कोशिशों के बीच वे अब 1932 का गाना याद कर रहे हैं। मुद्दे पर रोज कुछ ना कुछ बोलते हैं और अपने लोगों को जोड़े रहने की कोशिशों में लगे हैं, लेकिन पार्टी में इस ताल पर रोक है। पार्टी लाइन अभी तय भी नहीं हुआ है। ऐसे में विधायकजी का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। नजदीकी बताते हैं कि आगे के निर्णय तय नहीं हैं। तृणमूल कांग्रेस का पुराना अनुभव कहीं उन्हें फिर बागी ना बना दे।

अब गीता प्रवचन भी

छोटे मियां आला टांगकर भी कुछ बिगाड़ ना सके, तो बापू ने उन्हें राजनीति की पाठशाला में भेज दिया। लगी-लगाई फसल थी, काटते जाना था। कहीं कोई दिक्कत भी नहीं हुई। दूसरी फसल भी सही तरीके से निकल रही है और अब बापू को भी इनसे सीख मिलने लगी है। आखिर काम ही ऐसा कर रहे हैं। पहले तो हनुमान मंदिर बनवाने के नाम पर सबको लुभाने की कोशिश की और अब गीता प्रवचन भी याद कर रहे हैं। बोलते भी हैं और ट्वीट भी करते हैं। लेकिन, इनके सामने तो सबसे बड़ी चुनौती यूपी वाले बाबा हैं। कहकर गए थे कि जीतने नहीं देंगे, पर किस्मत का लिखा कौन काटे, सो जीत गए। इसके बावजूद बाबा से पीछा नहीं छूट रहा। जब-तक कहते रहते हैं कि बाबा की किसी ने नहीं सुनी। हालांकि, वे खुद जानते हैं कि बाबा का मुकाबला गीता के बगैर संभव नहीं।


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