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Jharkhand: मंत्री पद की दौड़ में गोल-गोल घूम रहे नेता, कई तो इतना घूमे कि गिर गए

Jharkhand Political Updates कुर्सी की दौड़ में वरिष्ठ अल्पसंख्यक और महिला मंडली कुछ ज्यादा ही आगे हैं। सांसें थमी जाती हैं लेकिन हाकिम हैं कि रहम ही नहीं कर रहे हैं। आखिर कुर्सी तो एक या दो ही रहती है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 12:08 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 04:23 PM (IST)
Jharkhand: मंत्री पद की दौड़ में गोल-गोल घूम रहे नेता, कई तो इतना घूमे कि गिर गए
झारखंड में नेताओं के कहीं दीप जल रहे हैं तो कही दिल।

रांची, [आनंद मिश्र]। कभी म्यूजिकल चेयर का गेम देखा है। कुर्सी के चारों ओर सभी खिलाड़ी घूमते हैं और धीरे-धीरे कुर्सियों की संख्या कम होती जाती है। आखिर में एक या दो कुर्सी रहती हैं जबकि दावेदार मौजूदा कुर्सियों से अधिक। सरकार में मंत्री पद की सीमित कुर्सी बची है। दर्जन भर दावेदार गोल-गोल घूम रहे हैं। कई तो इतना घूमे कि चक्कर खाकर गिर गए। कुर्सी की दौड़ में वरिष्ठ, अल्पसंख्यक और महिला मंडली कुछ ज्यादा ही आगे हैं। सांसें थमी जाती हैं, लेकिन हाकिम हैं कि रहम ही नहीं कर रहे हैं। हां, उत्कृष्ट का तमगा दे किनारे जरूर लगा रहे हैं। ये एक ऐसा तमगा है जो कम से कम इस बरस कोई नहीं लेना चाहता था। इससे तो बेकार भले थे, कम से कम आस तो बनीं थी। उत्कृष्टता के चक्कर में दूध में मक्खी की तरह निकाल कर रख दिए गए।

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घाट धरना

घाट-घाट का पानी पीना-कहावत दरअसल राजनीति के लिए ही बनी है। घाट के दर्शनों की संख्या का सियासत के उतार-चढ़ाव से भी समानुपाती रिश्ता माना जाता है। तमाम घाटों की परिक्रमा के बाद कोई एक घाट धर लिया तो ऊपर जाने की सीढ़ी अपने आप मिल जाती है। कई पुराने उदाहरण हैं, कहां तक गिनिएगा। अब थोड़ा सा चेंज आया है। जो घाट अब तक परोक्ष रूप से राजनीति में दखल देते थे अब प्रत्यक्ष में अपने वजूद का एहसास कराने लगे हैं। अपने सूबे में तो घाट पर राजनीति चरम पर हैं। कोई घाट जाने से रोकता है, तो कोई खुली चुनौती देता है, हम तो जाएंगे, देखें कौन रोकता है। बयानवीर मोर्चा साध तीन दिन तक डटे रहे। शुक्र है जंग में कोई खेत नहीं रहा। कमल दल को अपना घाट मिल गया और तीर कमान को अपना। अब सब नार्मल है।

कहीं दीप जले, कहीं दिल

चुनाव बीते लंबा समय हो चुका है, लेकिन लौहनगरी में लोहा अब भी गरम है। तपिश से हाथ जल जाते हैं, बगलगीरों के। यहां दीप से दीप नहीं, दिल जले जाते हैं। बीते दिनों कइयों के तो टूटे भी। घोषणा सात-सात हजार दीप तीन दिन तक जलाने की हुई। बस सामने वाली टीम ने ले लिया दिल पर। अपनी टीम के साथ 11 हजार दीप लेकर समय से पहले पैदल पहुंच गए और कर डाला वितरण। तमाम नक्षत्र टकराते दिखे, मीडिया बिरादरी को भी खटका। बात तूल पकड़ती, इसलिए टीम 'बी' तीसरे दिन नहीं गई, लेकिन शोर अब तक थमा नहीं है। कमेटियों का टकराव जारी है। सामुदायिक भवन ही नहीं, अब तो मंदिर की कमेटी पर भी नजरें लगी हैं हुजूर की। सुना है समानांतर कमेटी किसी भी मुकाबले को तैयार है। टकराव की आहट राजधानी तक भी सुनी जा रही है।

नेताजी की ऊर्जा

नेताजी की ऊर्जा का वेग कभी थमे न थमता था। अब स्वयं उर्जाविहीन नजर आते हैं, जनता के लिए। तभी तो कभी कोयलांचल में लोकप्रिय रहे नेताजी की अब जमानत तक जब्त हो जा रही है। सुशासन बाबू की पार्टी का सूबे में दमखम नहीं दिखा तो किसी तरह कमल को अपना सहारा बनाने में कामयाब हो गए, लेकिन वहां भी किसी ने न पूछा। पिछले साल हुए चुनाव में सुशासन बाबू की पार्टी में वापसी कर चुनावी समर में बिना कोई ऊर्जा के शामिल हो गए। पार्टी की डीम रोशनी में नेताजी का लाल चेहरा पब्लिक को नजर ही नहीं आया। सो, पूरी तरह पिट गए। हाल ही में उपचुनाव हुआ तो हाथी पर सवार होकर समर में उतरे। यहां तो पूरी तरह फ्यूज ही उड़ गया। अब देखना है नेताजी अपनी बची हुई ऊर्जा कहां लगाते हैं।


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