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एक वोट की कीमत तुम क्या जानो 'विकास बाबू'... पढ़ें सत्‍ता के गलियारे की खरी-खरी

Jharkhand Political Update. एक वोट से पूरी कमल टोली को अपना कर्जदार बना लिया और फिर फोड़ा किताब बम। इस वजह से कमल क्लब में सब चुप हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 03:23 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 05:35 PM (IST)
एक वोट की कीमत तुम क्या जानो 'विकास बाबू'... पढ़ें सत्‍ता के गलियारे की खरी-खरी

रांची, [आनंद मिश्र]। Jharkhand Political Updates लोकतंत्र में जनता भले ही वोट देकर अपने को ठगा महसूस करती हो, लेकिन इनके मत से चुने गए नेताजी के वोट की कीमत का ग्राफ चढ़ता ही जा रहा है। ये पाला बदलते हैं तो ङ्क्षसहासन डोल जाता है, गिरे-पड़ों के सिर दोबारा ताज आ जाता है। इस खेल में समय, काल और परिस्थिति के अनुरूप 'गिव एंड टेक' (आपसी समझौता) की व्यावहारिक थ्योरी अमल में लाई जाती है। लौहनगरी वाले लौह पुरुष तो हैं ही दूरदर्शी। एक वोट से पूरी कमल टोली को अपना कर्जदार बना लिया और फिर फोड़ा किताब बम। कर्ज 'एनपीए' में तब्दील न हो, इस वजह से कमल क्लब में सब चुप हैं। कल तक जिनके विकास की दुहाई देते थे, उनके पक्ष में एक बोल भी नहीं फूट रहा है किसी का। बस इतना ही कह रहे हैं, एक वोट की कीमत तुम क्या जानो विकास बाबू...।

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फ्रेंडशिप डे 

बाबा ने चौतरफा मोर्चा खोल रखा है। क्या बालीवुड, क्या झालीवुड, हर ओर इनका जलवा बिखरा है। वैसे भी पंगा लेना इनकी फितरत में शुमार है, तो पंगा बाबा ने इस बार थोड़ा बड़ा बयाना ले लिया है। रायता कुछ ज्यादा फैल गया है, समेटे नहीं सिमट रहा है। हाकिम और उनकी टोली पूरे दल बल के साथ हो ली है पीछ़े। रजिस्ट्री-डिग्री सब पर आफत है। 'अटैक इज द बेस्ट डिफेंस' का पुराना फार्मूला भी दगा दे रहा है। अकेले मोर्चे पर जूझ रहे हैं और रोज नया बम फोड़ रहे हैं, लेकिन देसी बम की गारंटी ही क्या होती है। कुछ तो फुस्स निकलेंगे ही। सुना है अब लग गए हैं किसी तरह मामले को मैनेज करने में। पुराने थिंक टैंक से मदद की गुहार लगाई है। वैसे भी इनकी जोड़ी, जय-वीरू की मानी जाती है। फ्रेंडशिप डे है, कुछ तो दोस्ती का फर्ज अदा करो। 

हिट विकेट का जोखिम

चौतरफा विकेट की घेराबंदी के बीच सरकार लगातार बैकफुट पर जाकर खेल रही है। इससे जोखिम बढ़ गया है। ज्यादा बैकफुट पर जाने से हिट विकेट होने का खतरा वैसे भी बढ़ जाता है। ज्ञान हाकिम को भी है, लेकिन करें क्या। कदम बढ़ाते ही पलीता लग जाता है। आलम यह है कि अध्यादेश के पन्ने बिखरे पड़े हैं। सफेद हाथी खिल्ली उड़वा रहा है और खजाने की सेहत सुधारने के लिए लाई गई वनोपज नियमावली फजीहत करा वापस हो ली है। अब आगे बढ़े भी तो कैसे? इनके तो होम करते, हाथ जलते हैं। मंशा गलत नहीं है, सब ग्रह-गोचर का खेल है। पांच दिवसीय टेस्ट खेलने निकले थे, लेकिन अब तो 20-20 में ही पारी समाप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। तो दबाव से उबरने के लिए बड़ी बाउंड्री लगानी होगी, वह भी सीधे स्टेडियम पार।

क्वारंटाइन में केला

लॉकडाउन में राजनीतिक दलों के कार्यालयों पर भले ही ताला लटका हो, लेकिन राजनीति पूरी तरह अनलॉक है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, जनहित के मुद्दों पर इनकी मेहनत देखते ही बनती है। हाथ वाले तो इस कदर उत्साहित हैं कि कोई नहीं मिल रहा तो अपने ही खेमे में हंगामा मचाए हुए हैं। जीवित दलों से ऐसी अपेक्षा की भी जाती है। इस सबके बीच केले वाले लॉकडाउन का पूरी शालीनता से पालन कर रहे हैं। मजाल है, किसी ने इनका चेहरा भी देखा हो। केले में मैग्नीशियम, पोटेशियम, आयरन के साथ-साथ तमाम पौष्टिक तत्व होते हैं, लेकिन किसी से साझा नहीं कर रहे हैं। पूरी पार्टी होम क्वारंटाइन हैं और उन्हें इसकी आवश्यकता अधिक महसूस हो रही है। सुना है बड़े भाई से भी इन दिनों दूरी बना ली है, कहीं कोई काम न थमा दें।


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