25 एकड़ की फसल से निकाल लिया अफीम, पुलिस को भनक तक नहीं
Opium Farming. 25 एकड़ में लगी फसल से चीरा लगाकर करीब एक करोड़ की अफीम निकाला। अब सौदागर डोडा पोस्ता व डंठल निकालने की तैयारी में जुटे हैं।
रांची, [फहीम अख्तर/संजय साहू]। रांची पुलिस जिलेभर में अफीम की खेती नष्ट करने के लिए अभियान चला रही है। कई जगहों पर लगातार अफीम की फसलें नष्ट की गई। लेकिन बीच राजधानी में अफीम की फसल लगी। फसल अपनी पूरी अवधि में तैयार हुए। इसके फलों पर चीरा लगा अफीम निकाली गई। लेकिन इसकी खबर पुलिस को नहीं मिली। मामला खरसीदाग ओपी क्षेत्र का है।
रांची-खूंटी का सीमावर्ती इलाके में नक्सलियों के संरक्षण में अफीम की खेती लगी है। तुपुदाना, खरसीदाग व नामकुम इलाके में अफीम की खेती लगी और फल पर चीरा लगाने के बाद काट लिया गया। यहां कब फसल लगी और कब काट ली गई, पुलिस को भनक तक नहीं लगी। बताया जाता है कि करीब 25 एकड़ भूमि में लगी फसलों से करीब एक करोड़ की अफीम निकाली गई है।
अफीम की फसल नष्ट करते पुलिसवाले। फाइल फोटो।
यहां लगी है फसल, जहां से निकाली गई अफीम : सीरी जंगल, हुड़वा जंगल, रुड़ुंग कोचा, बंडूबेड़ा, बांधटोली, रायडीह, बुंगडू के जंगली इलाके में अफीम की खेती लगाई गई थी। जहां चीरा मारकर निकाल लिया गया। जबकि रांची के नामकुम, दशम फॉल, बुंडू, तमाड़ सहित अन्य थानों की पुलिस लगातार अफीम की खेती नष्ट करती रही है।
उग्रवादियों का है अर्थतंत्र : रांची सहित अन्य जिलों में अफीम की खेती नक्सलियों का अर्थतंत्र है। नशे के बड़े कारोबारी कई जिलों में अफीम की खेती नक्सलियों को जिम्मेवारी देकर करवा रहे हैं। झारखंड के टीपीसी, माओवादी और पीएलएफआई संगठन के साथ गंठजोड़ कर अफीम की खेती करा रहे हैं। अफीम की खेती रांची के अलावा खूंटी, चतरा, गुमला, गढ़वा, पलामू, लातेहार, सिमडेगा और सरायकेला सहित अन्य जिलों में हो रही है। सभी जगहों पर नक्सली-उग्रवादी ही ग्रामीणों को लोभ देकर या डरा धमकाकर जंगली इलाकों में अफीम की खेती करवा रहे हैं।
डोडा लेकर डंठल तक बेच डालते हैं कारोबारी : अफीम की खेती में कुछ भी बर्बाद नहीं होता। चीरा लगाकर अफीम पहले निकाल ली जाती है, फिर फल सूख जाने पर उसके पोस्ता के दानों को निकाल लिया जाता है। इसके बाद उसके डोडा और डंठल को भी बेच दी जाती है। बाजार में पोस्ता की कीमत 200 से लेकर 400 रुपये किलो तक है, जबकि डोडा 30 हजार से 40 हजार रुपये किलो में बिक्री होती है। जबकि डंठल को दस हजार रुपये किलो की बिक्री होती है। पोस्ता छोड़ सभी को इस्तेमाल का नशे के लिए होती है। जबकि पोस्ता खाने के लिए किया जाता जाती है।
नशा के सौदागर करते है रुपये निवेश : रांची सहित पूरे राज्य में उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, नेपाल, सहित कई राज्यों के नशा के सौदागर रुपये इंवेस्ट करते हैं। बताया जाता है कि सितंबर में अफीम की खेती की शुरुआत हो जाती है। खेती के लिए छह से सात महीने के लिए किसानों के खेत को बतौर लीज लिया जाता है। सहमत किसानों को पहली किस्त दी जाती है। फसल तैयार होने के दौरान दूसरी किस्त दी जाती है, फसल पूरी तरह तैयार होने पर राशि की अंतिम किस्त दी जाती है। तीन महीने में इन पौधों में फल-फूल निकल आते हैं। इसके बाद उन फलों में चीरा लगाया जाता है। फिर उससे निकले गाढ़े रस को एकत्र कर अफीम तैयार की जाती है।
चीरा लगाते ही बढ़ जाता टीबी का खतरा : अफीम की फसलें तैयार होने पर उसके फलों पर चीरा लगा दी जाती है। चीरा लगाते ही, उनसे निकलने वाली गाढ़े रस निकल आते हैं। वह एक तरह की गंध भी फैलाती है। इस गंध से आसपास के लोग टीबी के शिकार होते हैं। लेकिन कभी दहशत के मारे, तो कभी पैसे की लालच में खेती लगाने का काम करते हैं। तुपुदाना के रामकृष्ण मिशन टीबी सेनेटोरियम में हाल में करीब 40 मरीज भर्ती हुए हैं। अस्पताल सूत्रों की मानें, तो अधिकांश मरीजों को अफीम की वजह से टीबी की बीमारी हुई है।
कब-कब कितनी फसल की गई नष्ट :
साल 2018 में अब तक 2160.5 एकड़
2017 में 2676.5 एकड़
2016 में 259.19 एकड़
2015 में 516.69 एकड़
2014 में 81.26 एकड़
2013 में 247.53 एकड़
2012 में 66.6 एकड़
2011 में 26.85 एकड़