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Jharkhand: ‘आओ, चलें शिव की ओर’ पुस्तक का हुआ विमोचन, लेखक बोले- बनो तो शिव, रहो तो शिव और जियो तो शिव

कालखंड के प्रथम शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द द्वारा लिखित आध्यात्मिक पुस्तक ‘‘आओ चलें शिव की ओर’’ का विमोचन वसंत पंचमी के अवसर पर डीबडीह एक निजी हॉटल में किया गया। पुस्तक का विमोचन भूतपूर्व जस्टिस झारखण्ड उच्च न्यायालय डी के सिन्हा के द्वारा किया गया।

By Vikram GiriEdited By: Published: Tue, 16 Feb 2021 03:13 PM (IST)Updated: Tue, 16 Feb 2021 03:13 PM (IST)
‘आओ, चलें शिव की ओर’ पुस्तक का हुआ विमोचन। जागरण

रांची, जासं । कालखंड के प्रथम शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द द्वारा लिखित आध्यात्मिक पुस्तक ‘‘आओ, चलें शिव की ओर’’ का विमोचन वसंत पंचमी के अवसर पर डीबडीह एक निजी हॉटल में किया गया। पुस्तक का विमोचन भूतपूर्व जस्टिस, झारखण्ड उच्च न्यायालय डी के सिन्हा के द्वारा किया गया। लेखक हरीन्द्रानन्द ने पुस्तक की आध्यत्मिक व्याख्या में कहा है कि बनो तो शिव, रहो तो शिव और जियो तो शिव।

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इन्होंने कहा कि पुस्तक लिखना मेरे लिए असंभव सा था क्योंकि विगत चार दशकों से अहर्निश मैंने शिव गुरु कार्य किया और सरकारी सेवा में भी रहा। कोरोना काल की आपदा को महादेव ने मेरे लिए अवसर में बदल दिया। पूरे देश दुनियां में हुए लॉकडाउन ने मुझे मनचाहा समय दे दिया। ‘‘आओ, चलें शिव की ओर’’ पुस्तक निःसंदेह मेरे द्वारा लिखी नहीं गई है, बल्कि किसी ने मुझे कलम थमा दी और वह अविरल चल पड़ी। नतीजा आपके सामने है।

‘आओ, चलें शिव की ओर’ पुस्तक की प्रकाशक अनुनीता ने कहा कि सामान्यतया किताबें प्रकाशक और लेखक को समृद्व करती हैं पर ‘‘आओ, चलें शिव की ओर’’ पुस्तक के लेखक हरीन्द्रानन्द ने अपनी पुस्तक के प्रकाशन का अधिकार देकर आखर पब्लिकेशन को प्रतिष्ठित किया है, समृद्ध  किया है।

कार्यक्रम के आयोजक अर्चित आनन्द ने कहा कि ‘‘आओ, चलें शिव की ओर’’ पुस्तक नहीं एक ग्रंथ है जो मानवता को एक दिशा प्रदान करेगी। हमें शिव की ओर चलने को प्रेरित करेगी। शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द फाउंडेशन की अध्यक्ष बरखा सिन्हा ने हरीन्द्रानन्द की पुस्तक के कुछ अंशों को उद्धृत करते हुए कहा कि इसमें जो डूबेगा वह डूबता ही जाएगा। जो भी पुस्तक को पढ़ना आरंभ करेगा वह इसे अंतिम पेज तक पढ़कर ही छोड़ेगा। भगवान शिव के गुरु स्वरूप की व्याप्ति और प्रसार, साहब की आपबीती सभी पाठक के मन को झकझोरेगी।

पटना से आए डॉ अमित कुमार ने ‘‘आओ, चलें शिव की ओर’’ अध्याय की अंतिम पंक्तियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि साहब की ये पंक्तियां न जयघोष है, न उद्घोष है अपितु मानव मन पर प्रहार करती है।


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