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Corruption in Jharkhand: लोकायुक्त का गंभीर आरोप, अपने अफसरों को बचाता है एसीबी

Jharkhand Lokayukta News. लोकायुक्‍त ने कहा कि छोटी मछलियों पर कार्रवाई होती है बड़ी मछलियों को छोड़ दिया जाता है। सभी विभागों में भ्रष्टाचार व्‍याप्‍त है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 09:54 AM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 10:54 AM (IST)
Corruption in Jharkhand: लोकायुक्त का गंभीर आरोप, अपने अफसरों को बचाता है एसीबी

रांची, राज्य ब्यूरो। भ्रष्टाचार के मामलों की जांच पर सरकार और लोकायुक्त आमने-सामने हैं। लगातार दूसरे दिन भी लोकायुक्त जस्टिस ध्रुव नारायण उपाध्याय सरकारी जांच एजेंसी पर खफा दिखे। उन्होंने कहा कि लगभग सभी विभागों में भ्रष्टाचार व्याप्त है। मंत्रिमंडल निगरानी व एसीबी की कार्रवाई छोटी मछलियों तक ही सीमित रहती है, लेकिन इस भ्रष्टाचार के केंद्र में जो अफसर, क्लास-टू अफसर होते हैं, उन्हें बचाया जाता है।

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इतना ही नहीं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) किसी न किसी प्रकार से रिपोर्ट व पत्राचार के माध्यम से लोकायुक्त की शक्तियों की गलत व्याख्या करता है और ऐसा करने का प्रयास भी करता है। लोकायुक्त जस्टिस उपाध्याय ने उदाहरण देते हुए कहा कि पूर्व के लोकायुक्त के समय में एक लोकसेवक के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में तीन बार एसीबी को आय से अधिक संपत्ति के मामले में जांच का आदेश दिया गया। प्रत्येक बार एसीबी ने जो रिपोर्ट दी, उसमें आरोपित लोकसेवक की कुल संपत्ति 40 लाख रुपये बताया।

इसके बाद लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय ने स्वयं बाहरी एजेंसी, बाहरी आर्किटेक्ट व बाहरी चार्टर्ड अकाउंटेंट से उक्त संपत्ति की जांच कराई। जांच में कुल संपत्ति दो करोड़ 70 लाख रुपये मिली थी। लोकायुक्त ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जनता में सरकार की छवि भी तभी बेहतर बनेगी, जब लोकायुक्त मजबूत होंगे। लोकायुक्त को सरकार जितना मजबूत बनाएगी, उसका मैसेज भी आम जनता में उतना ही बेहतर जाएगा।

बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में लोकायुक्त की अपनी जांच एजेंसी

लोकायुक्त ने बताया कि बिहार, मध्य प्रदेश व कर्नाटक में लोकायुक्त की अपनी जांच एजेंसी है। झारखंड में अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। अब लोकायुक्त ने यह निर्णय लिया है कि निजी एजेंसी की मदद से भी भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कराएंगे।

नियमों को तोड़ मरोड़कर लोकायुक्त मामले में फंसाया पेच

वर्तमान में सरकार की जांच एजेंसी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग के 07 अगस्त 2015 के संकल्प (नियमावली) के अनुसार संचालित हो रहा है। इस नियमावली के जिस सेक्शन-20 की व्याख्या कर यह आदेश जारी किया गया है कि लोकायुक्त के आदेश को सीधे तौर पर न मानकर पहले उसकी गोपनीय जांच एसीबी कराएगा। उसके बाद ही अपनी अनुशंसा मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग से पीई के लिए अनुमति लेगा।

यह सेक्शन आम जनता से प्राप्त शिकायतों के संदर्भ में है, लोकायुक्त के संदर्भ में नहीं। लोकायुक्त का संदर्भ सेक्शन 22 में है, जिसमें लोकायुक्त अथवा न्यायालय से प्राप्त आदेश में एसीबी गोपनीय जांच नहीं कराकर प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज कर अनुसंधान शुरू करेगा। इसमें लोकायुक्त अथवा न्यायालय स्वयं सत्यापन से संतुष्ट होने के बाद ही जांच का आदेश देते हैं।

इसमें जरूरत पडऩे पर एसीबी मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग से अनुमति लेने को स्वतंत्र है। इधर, एक जून को सरकार के मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग ने एसीबी को जो आदेश दिया है, उसमें इसी नियमावली के सेक्शन-20 की गलत व्याख्या की गई है, जिसपर लोकायुक्त कार्यालय को आपत्ति है।


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