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झारखंड की सांस्कृतिक अस्मिता का साक्षी, कौलेश्वरी पर्वत के आंचल में बिखरा पड़ा इतिहास

Kauleshwari Mountain झारखंड की सांस्कृतिक अस्मिता का साक्षी कौलेश्वरी पर्वत के आंचल में इतिहास बिखरा पड़ा है। सनातन बौद्ध और जैन संकृतियों के इस अनूठे संगम में पुरातात्त्विक महत्व के अवशेष सदियों से सुधी शोधकर्ताओं की बाट जोह रहे हैं।

By Sanjay KumarEdited By: Published: Sat, 20 Aug 2022 08:03 AM (IST)Updated: Sat, 20 Aug 2022 08:05 AM (IST)
झारखंड की सांस्कृतिक अस्मिता का साक्षी, कौलेश्वरी पर्वत के आंचल में बिखरा पड़ा इतिहास
Kauleshwari Mountain: कौलेश्वरी के आंचल में बिखरा पड़ा इतिहास।

चतरा, जासं। Kauleshwari Mountain झारखंड की सांस्कृतिक अस्मिता का साक्षी कौलेश्वरी पर्वत के आंचल में इतिहास बिखरा पड़ा है। सनातन, बौद्ध और जैन संकृतियों के इस अनूठे संगम में पुरातात्त्विक महत्व के अवशेष सदियों से सुधी शोधकर्ताओं की बाट जोह रहे हैं। आश्चर्यजनक बात यह कि अभी तक उन सांस्कृतिक-ऐतिहासिक अवशेषों के संरक्षण के प्रति किसी भी स्तर पर गंभीरता नहीं दिखाई गई है। विडंबना यह कि उस पर्वत को पर्यटन विभाग के हवाले किए जाने के बावजूद सरकार उसकी सुध लेना मुनासिब नहीं समझ पा रही है।

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यह दीगर बात है कि चार वर्ष पूर्व राज्य के तत्कालीन पर्यटन मंत्री अमर कुमार बाउरी ने इस अंतर्राष्ट्रीय पर्यटनस्थल के विकास का सब्जबाग दिखाया था। इस बीच भले ही उनकी सरकार चली गई, मगर वह कौलेश्वरी और भद्रकाली को मिलाकर तत्काल शाइन बोर्ड गठन का अपना वादा पूरा नहीं कर सके। इतना ही नहीं तब वह दो महीने के भीतर पर्वत पर प्रस्तावित रोपवे के उद्घाटन का वादा भी कर गये थे, मगर अपने पूरे कार्यकाल के दौरान उसका शिलान्यास तक नहीं कर पाए।

यहां बताना मुनासिब होगा कि सनातनी पर्वत पर मौजूद सांस्कृतिक अवशेषों को महाभारत कालीन इतिहास से जोड़कर देखते हैं तो बुद्धिष्ट गौतम बुद्ध से और जैनी तीर्थंकर पारसनाथ, शीतलनाथ आदि से। सबके अपने पास दावे के पक्ष में तथ्य हैं। ये अवशेष तीनों की आस्था और संवेदना से जुड़े हैं। यहां तक कि तीनों उनकी अपनी संस्कृति और परंपरा के हिसाब से पूजा-अर्चना भी करते हैं। इसके लिए देश-विदेश के श्रद्धालु प्रतिवर्ष वहां लाखों की संख्या में वहां पहुंचते हैं।

इसे आपसी सौहार्द की पराकाष्ठा ही कहेंगे कि सदियों से चली आ रही इस परंपरा के निर्वहन में कभी किसी को कोई एतराज़ नहीं हुआ। बहरहाल स्थानीय लोगों के स्वतः संज्ञान लेने से चतरा अनुमंडल पदाधिकारी की अध्यक्षता वाली कौलेश्वरी विकास प्रबंधन समिति नामक ट्रस्ट अस्तित्व में आया और उसके संवर्धन की पहल शुरू हुई।

इसी के मद्देनजर जन सहयोग से वर्ष 2015 में प्रतिवर्ष कौलेश्वरी महोत्सव की परंपरा शुरू की गई। पहले वर्ष उसकी अद्भुत सफलता से स्थानीय सांसद सुनील कुमार सिंह आकृष्ट हुए और आगे सरकार के स्तर से महोत्सव कराने का वादा किया। हालांकि उसके बाद दो बार महोत्सव हुए, मगर वह नियमित नहीं रह सका। ऐसे में उस धरोहर के प्रति सरकारी तंत्र की उदासीनता का संदेश गया है। स्थानीय विधायक सत्यानंद भोगता राज्य के कैबिनेट मंत्री हैं। लेकिन उसके बाद भी कौलेश्वरी पर्वत का विकास नहीं हुआ।


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