बिहार के निवासियों को झारखंड में आरक्षण की मांग पर फैसला सुरक्षित Ranchi News
उच्च न्यायालय के फुल बेंच ने सुनवाई के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है। सरकार ने हाई कोर्ट में कहा कि सिर्फ झारखंड के स्थायी निवासियों को आरक्षण का लाभ मिलेगा।
रांची, राज्य ब्यूरो। बिहार के स्थायी निवासियों को झारखंड राज्य में भी आरक्षण देने की मांग वाली याचिका पर शुक्रवार को हाई कोर्ट की फुल बेंच में सुनवाई हुई। सभी पक्षों की ओर से बहस पूरी करने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। झारखंड हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही है।
सुनवाई के दौरान अपर महाधिवक्ता मनोज टंडन ने अदालत को बताया कि एकीकृत बिहार या 15 नवंबर 2000 से राज्य में रहने के बाद भी वैसे लोग आरक्षण के हकदार नहीं होंगे, जिनका ओरिजिन (मूल) झारखंड नहीं होगा। आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हें ही मिलेगा, जो झारखंड ओरिजिन (मूल) के होंगे। जहां तक 18 अप्रैल 2016 से लागू स्थानीय नीति का सवाल है, तो जो लोग इसकी परिधि में आते हैं, उन्हें सिर्फ सामान्य कैटेगरी में ही विचार किया जा सकता है।
अपर महाधिवक्ता (एएजी) मनोज टंडन ने सुप्रीम कोर्ट के वीर सिंह वर्सेज केंद्र सरकार के मामले में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा है कि माइग्रेटेड (बाहरी) राज्य से आने वाले लोगों को दूसरे राज्य में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। ऐसे में एकलपीठ का आदेश बिल्कुल सही है। दरअसल, एकलपीठ ने पूर्व में वादियों की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि उनके सभी सर्टिफिकेट बिहार के हैं, ऐसे में उन्हें राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है।
राज्य में रहने की वजह से मिले आरक्षण का लाभ : वादी
प्रार्थी की ओर से कहा गया कि एकीकृत बिहार, वर्तमान बिहार और वर्तमान झारखंड में उनकी जाति एससी-एसटी व ओबीसी के रूप में शामिल है, इसलिए वर्तमान झारखंड में उन्हें एससी-एसटी व ओबीसी के रूप में आरक्षण मिलना चाहिए। उनका कहना था कि पिछले कई सालों से वे झारखंड क्षेत्र में रह रहे हैं और सिर्फ इसलिए उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वे वर्तमान में बिहार राज्य के स्थायी निवासी हैं। उनकी ओर से अदालत को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में जो अधिकार मिला हुआ है, उसके अनुसार उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए।
यह है मामला
झारखंड में सिपाही की बहाली हुई थी। इस दौरान बिहार के स्थायी निवासियों ने आरक्षण का लाभ लिया था। बाद में मामला उजागर होने पर उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद रंजीत कुमार व अन्य की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। एकलपीठ ने सरकार के फैसले को उचित ठहराया और इनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद यह मामला खंडपीठ में पहुंचा। मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे 09 अगस्त 2018 को फुल कोर्ट में भेजने की अनुशंसा की गई थी। इसके बाद फुल बेंच इसकी सुनवाई कर रही है।