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छठी जेपीएससी परीक्षा के परिणाम पर रोक लगाने से हाई कोर्ट का इन्कार

रांची झारखंड हाई कोर्ट ने छठी जेपीएससी संयुक्त सिविल सेवा प्रतियोगिता परीक्षा के परिणाम पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। गुरुवार को जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने छठी जेपीएससी के परिणाम को चुनौती देने वाली राहुल कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस परीक्षा के परिणाम पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Jun 2020 12:58 AM (IST)Updated: Fri, 26 Jun 2020 12:58 AM (IST)
छठी जेपीएससी परीक्षा के परिणाम पर रोक लगाने से हाई कोर्ट का इन्कार
छठी जेपीएससी परीक्षा के परिणाम पर रोक लगाने से हाई कोर्ट का इन्कार

रांची : झारखंड हाई कोर्ट ने छठी जेपीएससी संयुक्त सिविल सेवा प्रतियोगिता परीक्षा के परिणाम पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। गुरुवार को जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने छठी जेपीएससी के परिणाम को चुनौती देने वाली राहुल कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस परीक्षा के परिणाम पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया। साथ ही, राज्य सरकार और झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) से जवाब मागा है। मामले में अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी।

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प्रार्थी के अधिवक्ता शुभाशीष रसिक सोरेन की ओर से अदालत को बताया गया कि पूर्व में अदालत ने जेपीएससी को जवाब देने के लिए समय दिया था, लेकिन अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया गया है। इस पर जेपीएससी के अधिवक्ता संजय पिपरवाल व प्रिंस कुमार सिंह ने प्रार्थी की दलील का विरोध करते हुए कहा कि 19 फरवरी 2020 का जो आदेश था, उसमें जेपीएससी की बजाए राज्य सरकार को जवाब देना था। वहीं, प्रार्थी द्वारा 19 अप्रैल 2017 को जारी सरकार की अधिसूचना को अब चुनौती देना उचित नहीं है, क्योंकि देवकुमार के मामले में यह मुद्दा उठाया जा चुका है। इस पर अदालत ने जेपीएससी को प्रार्थी की ओर से उठाए गए सभी बिंदुओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। बता दें कि प्रार्थी ने 19 अप्रैल 2017 को जारी राज्य सरकार के संकल्प को चुनौती दी है। साथ ही, स्थगन याचिका दाखिल कर छठी जेपीएससी के परिणाम पर रोक लगाने की मांग की है।

---------------- तीन का इस्तीफा, वरीयता को नजरंदाज कर बहाली

रांची : राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में पक्ष रखने के लिए अधिवक्ताओं की सूची जारी की है, लेकिन इसमें उन्हीं अधिवक्ताओं को जगह मिली है जो सरकार के करीबी रहे हैं। अधिवक्ता समुदाय में इस बात को लेकर चर्चा जोरों पर है कि इस बार की सूची में वरीयता का ध्यान नहीं रखा गया है। महत्वपूर्ण पद कम समय से प्रैक्टिस करने वालों को दे दिया गया, जबकि उनसे अधिक समय से प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं को कनीय पद मिले हैं।

अब तक अधिवक्ता एलसीएन शाहदेव, डीके पाठक व रूपेश सिंह ने अपने-अपने पदों से इस्तीफा दिया है। हालांकि, इन लोगों ने अपने इस्तीफे का कारण निजी बताया हैं, लेकिन चर्चा है कि अपने से कनीय अधिवक्ता के नीचे ये काम नहीं करना चाहते हैं। कइयों का कहना है कि जब इस प्रकार की ही सूची तैयार करनी थी, तो अधिवक्ताओं से आवेदन क्यों मांगा गया था। स्टैडिंग काउंसिल में सहायक रहीं एक अधिवक्ता को स्टैंडिंग काउंसल बनाया गया है। हालांकि, ऐसा पहले भी होता रहा है। कई अधिवक्ताओं का मानना है कि कोर्ट में किसी भी महत्वपूर्ण मामले में वरीय अधिवक्ताओं से ही सलाह ली जाती है, लेकिन महत्वपूर्ण पद पर किसी वरीय अधिवक्ता की नियुक्ति नहीं हुई है। बहरहाल, अब नवनियुक्त अधिवक्ता सरकार के महत्वपूर्ण मामलों में पक्ष हाई कोर्ट में रखेंगे।

--------------- सूडा के टेंडर के खिलाफ रांची की मेयर आशा लकड़ा गई हाई कोर्ट

रांची : झारखंड हाई कोर्ट में सूडा की ओर से रांची नगर निगम के लिए निकाले गए टेंडर को चुनौती दी गई है। मेयर आशा लकड़ा ने इस संबंध में याचिका दाखिल कर सूडा (राज्य शहरी विकास एजेंसी) द्वारा जारी टेंडर पर रोक लगाते हुए उसे रद करने की मांग की है। आशा लकड़ा की ओर से उक्त याचिका अधिवक्ता शुभाशीष रसिक सोरेन ने दाखिल की है। उन्होंने बताया कि झारखंड म्यूनिसिपल एक्ट 2011 में नगर निगम के किसी काम के लिए निगम की ओर से ही टेंडर जारी करने का प्रविधान है। लेकिन, रांची नगर निगम की एक एजेंसी के चयन के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अनुमति से सूडा ने टेंडर जारी कर दिया है, जो नियमानुसार गलत है। याचिका में सूडा की ओर से जारी टेंडर पर रोक लगाते हुए उसे रद करने का आग्रह अदालत से किया गया है।

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