मॉब लिंचिंग पर हाई कोर्ट: आम लोग सहयोग न करें तो दोषी को कैसे मिलेगी सजा
Jharkhand. रांची के डोरंडा में स्कूली बस पर हमले के मामले में हाई कोर्ट ने कहा कि बिना जनता की गवाही के पुलिस कैसे अंजाम तक पहुंचेगी।
By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 31 Jul 2019 03:13 PM (IST)Updated: Wed, 31 Jul 2019 09:23 PM (IST)
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस दीपक रोशन की अदालत में मॉब लिंचिंग मामले को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सरकार के शपथ पत्र को देखकर अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि आम लोगों को इस तरह के मामले में जांच के दौरान पुलिस को सहयोग करना चाहिए। यदि आम जनता पुलिस का सहयोग नहीं करेगी, तो पुलिस जांच को अंजाम तक कैसे पहुंचाएगी।
अगर जांच नहीं होगी तो दोषी कैसे पकड़े जाएंगे। इसलिए जनता का भी दायित्व बनता है कि वो जांच में पुलिस का सहयोग करे। इसके बाद अदालत ने राज्य सरकार से डोरंडा राजेंद्र चौक और एकरा मस्जिद के पास पांच जुलाई को हुए उपद्रव की जांच की प्रगति रिपोर्ट तलब की। अदालत ने राज्य सरकार को चार सप्ताह में स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
उपद्रव को लेकर तीन प्राथमिकी
इस दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि इन मामलों में डोरंडा, हिंदपीढ़ी और लोअर बाजार थाना में प्राथमिकी दर्ज की गई है। इन घटनाओं में अब तक कुल 11 आरोपितों को गिरफ्तार किया गया है और जांच जारी है। इस पर अधिवक्ता राजीव कुमार ने कांग्र्रेस नेता शमशेर आलम की अखबार में छपी फोटो को दिखाते हुए कहा कि शमशेर आलम राजेंद्र चौक में हुए उपद्रव में नामजद आरोपित हैं, इस तस्वीर में पुलिस भी है, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। कहा गया कि जब उनकी ओर से उपद्रव में शामिल लोगों का नाम बताया गया है। ऐसे में पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार नहीं करना सवाल खड़ा कर रहा है।
जांच में सामने नहीं आ रहे लोग
राज्य सरकार की ओर से अदालत में शपथ पत्र दाखिल किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राजेंद्र चौक पर बस जलाने के प्रयास की जांच के दौरान छात्र पुलिस को सहयोग नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि वह अब संस्थान से पास होने वाले और भविष्य को देखते हुए इस मामले में कोई बयान नहीं देंगे। इसके अलावा अन्य घटना में भी लोग पुलिस को सहयोग नहीं कर रहे हैं जिसकी वजह से जांच में तेजी नहीं आ रही है।
प्रार्थी के अधिवक्ता राजीव कुमार ने कहा कि जब सीबीआइ की ओर से किसी मामले की जांच की जाती है, तो वह अपने गवाहों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखती है लेकिन पुलिस ऐसा नहीं करती है जिसकी वजह से लोग गवाही देने सामने नहीं आते हैं। इस पर अदालत ने कहा कि आम लोगों को जांच के दौरान पुलिस को सहयोग करना चाहिए। अधिवक्ता राजीव कुमार ने वर्ष 2000 में डीएसपी यूसी झा की मौत का भी मामला उठाया, जिस पर अदालत ने कहा कि इस मामले में गवाही नहीं होने की वजह से ही आरोपितों को बरी कर दिया गया।
सीबीआइ जांच का किया गया है आग्रह
दरअसल जनसभा संस्था के पंकज कुमार यादव ने इसको लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जिसमें मार्च 2016 से अब तक राज्य में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं की सीबीआइ जांच का आग्र्रह किया गया है। इसके अलावा पांच जुलाई को डोरंडा और एकरा मस्जिद के पास हुए उपद्रव की जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है।
अगर जांच नहीं होगी तो दोषी कैसे पकड़े जाएंगे। इसलिए जनता का भी दायित्व बनता है कि वो जांच में पुलिस का सहयोग करे। इसके बाद अदालत ने राज्य सरकार से डोरंडा राजेंद्र चौक और एकरा मस्जिद के पास पांच जुलाई को हुए उपद्रव की जांच की प्रगति रिपोर्ट तलब की। अदालत ने राज्य सरकार को चार सप्ताह में स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
उपद्रव को लेकर तीन प्राथमिकी
इस दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि इन मामलों में डोरंडा, हिंदपीढ़ी और लोअर बाजार थाना में प्राथमिकी दर्ज की गई है। इन घटनाओं में अब तक कुल 11 आरोपितों को गिरफ्तार किया गया है और जांच जारी है। इस पर अधिवक्ता राजीव कुमार ने कांग्र्रेस नेता शमशेर आलम की अखबार में छपी फोटो को दिखाते हुए कहा कि शमशेर आलम राजेंद्र चौक में हुए उपद्रव में नामजद आरोपित हैं, इस तस्वीर में पुलिस भी है, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। कहा गया कि जब उनकी ओर से उपद्रव में शामिल लोगों का नाम बताया गया है। ऐसे में पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार नहीं करना सवाल खड़ा कर रहा है।
जांच में सामने नहीं आ रहे लोग
राज्य सरकार की ओर से अदालत में शपथ पत्र दाखिल किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राजेंद्र चौक पर बस जलाने के प्रयास की जांच के दौरान छात्र पुलिस को सहयोग नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि वह अब संस्थान से पास होने वाले और भविष्य को देखते हुए इस मामले में कोई बयान नहीं देंगे। इसके अलावा अन्य घटना में भी लोग पुलिस को सहयोग नहीं कर रहे हैं जिसकी वजह से जांच में तेजी नहीं आ रही है।
प्रार्थी के अधिवक्ता राजीव कुमार ने कहा कि जब सीबीआइ की ओर से किसी मामले की जांच की जाती है, तो वह अपने गवाहों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखती है लेकिन पुलिस ऐसा नहीं करती है जिसकी वजह से लोग गवाही देने सामने नहीं आते हैं। इस पर अदालत ने कहा कि आम लोगों को जांच के दौरान पुलिस को सहयोग करना चाहिए। अधिवक्ता राजीव कुमार ने वर्ष 2000 में डीएसपी यूसी झा की मौत का भी मामला उठाया, जिस पर अदालत ने कहा कि इस मामले में गवाही नहीं होने की वजह से ही आरोपितों को बरी कर दिया गया।
सीबीआइ जांच का किया गया है आग्रह
दरअसल जनसभा संस्था के पंकज कुमार यादव ने इसको लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जिसमें मार्च 2016 से अब तक राज्य में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं की सीबीआइ जांच का आग्र्रह किया गया है। इसके अलावा पांच जुलाई को डोरंडा और एकरा मस्जिद के पास हुए उपद्रव की जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है।
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