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दवा कालाबाजारी: CID एडीजी अनिल पाल्टा के ट्रांसफर से कोर्ट नाराज, कहा- CBI को दी जा सकती है जांच

हाईकोर्ट ने रेमडेसिविर सहित अन्य दवा की कालाबाजारी की जांच की मॉनिटरिंग कर रहे सीआइडी के एडीजी के ट्रांसफर पर कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि जब कोर्ट इस मामले की मॉनिटरिंग कर रहा है उसके बाद सरकार को इतनी क्या जल्दी थी कि उनका ट्रांसफर कर दिया गया।

By Vikram GiriEdited By: Published: Thu, 17 Jun 2021 03:52 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jun 2021 07:43 PM (IST)
दवा कालाबाजारी: CID एडीजी अनिल पाल्टा के ट्रांसफर से कोर्ट नाराज। जागरण

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डाॅ. रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ में रेमडेसिविर सहित अन्य दवाओं की कालाबाजारी के मामले में सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत ने सीआइडी के एडीजी अनिल पालटा के तबादले पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि जब निष्पक्ष जांच के लिए कोर्ट ने एडीजी पर भरोसा जताया था तो बिना कोर्ट को जानकारी दिए उनका तबादला क्यों कर दिया गया। सरकार को तबादला करने की इतनी जल्दी क्यों थी। सरकार की मंशा रेमडेसिविर कालाबाजारी की जांच को प्रभावित करने जैसा प्रतीत होता है।

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सरकार के रवैये को देखते हुए इस मामले की सीबीआइ जांच कराई जा सकती है। अदालत ने सरकार से पूछा कि किन परिस्थितियों में एडीजी अनिल पालटा का तबादला किया गया है। इसकी पूरी जानकारी सोमवार तक अदालत में दाखिल करनी है। सरकार के जवाब के बाद कोर्ट सीबीआइ जांच पर निर्णय लेगी। गुरुवार को सुनवाई के दौरान अधिवक्ता राजेंद्र कृष्णा ने एक हस्तक्षेप याचिका दाखिल एडीजी अनिल पालटा के तबादले पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा गया है कि अनिल पालटा सीआइडी एडीजी हैं। उन्होंने कोर्ट में आकर इस मामले की निष्पक्ष एवं प्रोफेशनल तरीके से जांच कराने की बात कही थी।

इसके कुछ दिनों बाद ही उनका तबादला कर दिया गया है। रेमडेसिविर कालाबाजारी की जांच पूरी होने तक राज्य सरकार को उनके तबादले की इतनी जल्दी क्यों थी, इसलिए उनका तबादला रद कर देना चाहिए। इस पर अदालत ने भी नाराजगी जताते हुए कहा कि रेमडेसिविर की कालाबाजारी पर कोर्ट शुरू से सख्त है। कोर्ट ने पहले ही कहा था कि वह इस मामले की मॉनिटरिंग कर रहा है। इसके लिए सीआइडी के एडीजी को भी बुलाया गया था। एडीजी ने प्रोफेशनल तरीके से और निष्पक्ष जांच करने की बात कही थी। सीबीआइ में काम करने की वजह से कोर्ट ने उनपर भरोसा जताया था और एक सप्ताह में ही उनका तबादला कर दिया गया।

कोर्ट ने महाधिवक्ता से पूछा कि जब कोर्ट इस मामले की मॉनिटरिंग कर रहा है, तो तबादले के पूर्व कोर्ट की अनुमति क्यों नहीं ली गई। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई ऐसे आदेश हैं जिसमें स्पष्ट है कि जब अदालत किसी मामले की मॉनिटरिंग कर रही है, तो संबंधित अधिकारी के तबादले से पहले कोर्ट की अनुमति लेना अनिवार्य है। ऐसा लगता है कि सरकार इस मामले में अदालत से टकराव चाहती है। महाधिवक्ता ने कहा कि एडीजी का तबादला प्रशासनिक दृष्टिकोण से किया गया है। वह सीआइडी के एडीजी थे। इस मामले के अनुसंधानकर्ता नहीं थे।

उनकी जगह जो दूसरे अधिकारी आए हैं, वह भी कुशल अधिकारी हैं और तबादले से जांच प्रभावित नहीं होगी। एडीजी का तबादला सामान्य बात है। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि रेमडेसिविर दवा लोगों को समय पर नहीं मिली थी। इसकी कालाबाजारी की गई। क्या सरकार को अनिल पालटा की जांच पर भरोसा नहीं था, जो उनका तबादला कर दिया गया। जब कोर्ट ने कहा कि वे तबादले को केप्ट इन अबेंस रखेंगे, तो महाधिवक्ता ने कहा कि अगर अदालत एडीजी अनिल पालटा के निर्देशन में ही जांच चाहती है, तो उक्त केस की जांच उनके निर्देशन में ही होगी, लेकिन तबादले पर रोक नहीं लगाई जाए।

इस पर अदालत ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है। इससे बेहतर है कि पूरे मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी जाए ताकि निष्पक्ष जांच हो। महाधिवक्ता ने अदालत को बताया कि सरकार इस मामले की जांच के लिए एक एसआइटी का गठन करने को भी तैयार है। एसआइटी का अध्यक्ष अनिल पालटा को बनाया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि सरकार को जो भी कहना है, वह शपथपत्र के माध्यम से अदालत को बताए। सरकार का जवाब देखने के बाद ही अदालत सीबीआइ जांच कराने पर निर्णय लेगी। इस दौरान अदालत ने सीबीआइ के अधिवक्ता से पूछा कि सीबीआइ इस मामले की जांच कर सकती है या नहीं। अधिवक्ता ने कहा कि यदि कोर्ट आदेश देगी तो इस मामले की जांच सीबीआइ कर सकती है।


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