Move to Jagran APP

Jharkhand: सोहराई पेंटिंग, देवघर का पेड़ा और धुसका का पेटेंट कराएगी सरकार

Jharkhand. झारखंड सरकार ने राज्य के विशिष्ट कार्यों विधाओं और वस्तुओं को चिह्नित कर उसे निबंधित (पेटेंट) करने का अहम फैसला किया है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 05 Jun 2019 11:51 AM (IST)Updated: Wed, 05 Jun 2019 03:49 PM (IST)
Jharkhand: सोहराई पेंटिंग, देवघर का पेड़ा और धुसका का पेटेंट कराएगी सरकार
Jharkhand: सोहराई पेंटिंग, देवघर का पेड़ा और धुसका का पेटेंट कराएगी सरकार

रांची, जेएनएन। झारखंड सरकार ने राज्य के विशिष्ट कार्यों, विधाओं और वस्तुओं को चिह्नित कर उसे निबंधित (पेटेंट) करने का अहम फैसला किया है। नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु को यह दायित्व सौंपा गया है। सरकार इस मद में यूनिवर्सिटी को 33.55 लाख रुपये का भुगतान करेगी। इससे इतर एमएसएमई टूल रूम, रांची को इस कार्य के लिए नोडल कार्यालय बनाए जाने की तैयारी है।

loksabha election banner

झारखंड कैबिनेट की मंगलवार को हुई बैठक में इस पर निर्णय लिया गया। इसमें राज्‍य‍कर्मियों को महंगाई भत्‍ता तीन फीसद बढ़ाने पर भी सहमति हुई। सरकार के इस फैसले के बाद अब आदिवासियों की प्रसिद्ध सोहराई पेंटिंग, धुसका, देवघर का पेड़ा आदि पेटेंट हो जाएंगे। सरकार इसकी ब्रांडिंग विश्व फलक पर कर सकेगी। रांची का पपीता और मटर भी देवघर के पेड़े की तरह झारखंड का ब्रांड बनेगा।

हजारीबाग के बादम में शुरू हुई थी सोहराई पेंटिंग

सोहराई कला या पेंटिंग एक आदिवासी कला है, जिसका प्रचलन सबसे पहले हजारीबाग जिले के बादम क्षेत्र में कई वर्ष पूर्व शुरू हुआ था। झारखंड की संस्कृति में आज भी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सोहराई पर्व के दौरान देशज उजली मिट्टी से सजे घरों की दीवारों पर महिलाओं के हाथों के हुनर देखने को मिलता है। हालांकि अब स्थानीय उजली मिट्टी की जगह चूने ने ले ली है। जानकारों के अनुसार, बादम राज में जब किसी युवराज का विवाह होता था तो उसकी यादगारी के लिए दीवारों पर कुछ चिह्न अंकित किए जाते थे।

इस कला में कुछ लिपि का भी इस्तेमाल किया जाता था जिसे वृद्धि मंत्र कहा जाता था। बाद के दिनों में इस लिपि की जगह कलाकृतियों ने ले ली जिनमें फूल, पत्तियां एवं प्रकृति से जुड़ी चीजें शामिल हैं। हाल के दिनों में यह कला उस समय चर्चित हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हजारीबाग में तत्कालीन उपायुक्त मुकेश कुमार द्वारा भवनों को सोहराई कला से सजाने की सराहना मन की बात कार्यक्रम में की। इसके बाद राजधानी रांची सहित कई शहरों में ऐसा किया गया। 

धुसका है पारंपरिक व्यंजन

धुसका झारखंड का पारंपरिक व्यंजन है। इसे बड़े चाव से खाया जाता है। चावल और चना दाल से युक्त घोल को तेल में छानकर इसे तैयार किया जाता है। पारंपरिक व्यंजन के तौर पर नाश्ते में इसे पसंद किया जाता है। पर्व-त्यौहार के मौके पर इस पकवान को बनाना लोग नहीं भूलते।

देवघर के पेड़े पांच से छह दिन तक खराब नहीं होते

बाबा भोले की नगरी देवघर का पेड़ा यहां भगवान शिव को बतौर प्रसाद चढ़ाने की परंपरा है। यहां आने वाले श्रद्धालु प्रसाद के तौर पर पेड़ा जरूर खरीदते हैं और अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार उसे घर ले जाते हैं। साल भर में यहां पेड़े का करीब 50 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। सावन के महीने में पेड़े की अप्रत्याशित बिक्री होती है। देवघर में करीब 300 स्थायी दुकान हैं। यहां के पेड़े में शुद्धता तथा उच्च गुणवत्ता बरकरार रहती है। खाने में स्वादिष्ट रहता है। इसलिए यह पांच से छह दिन तक खराब नहीं होते हैं।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.