दामोदर वैली कारपोरेशन बकाया: केंद्र से भिड़ने के मूड में दिख रही झारखंड सरकार
Damodar Valley Corporation Dues झारखंड राज्य बिजली वितरण निगम का झारखंड में संचालित 190 केंद्रीय उपक्रमों पर 1379 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है। इन्हें झारखंड बिजली वितरण निगम पूर्व में बकाया का भुगतान का नोटिस भेज चुका है।
रांची, प्रदीप शुक्ला। DVC Power Dues दामोदर वैली कारपोरेशन (डीवीसी) के बकाया बिजली बिल की रकम केंद्र द्वारा खाते से काट लिए जाने से खफा झारखंड सरकार इस बार केंद्र से भिड़ने के मूड में दिख रही है। रांची स्थित केंद्रीय उपक्रम हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन (एचईसी) की नौ घंटे के लिए बिजली काटकर राज्य सरकार ने अपनी यह मंशा स्पष्ट कर दी है। जिस तरह से केंद्रीय उपक्रमों पर बिजली सहित अन्य बकाया का राज्य सरकार ने हिसाब-किताब खंगालना शुरू किया है, उसे देखते हुए यह आशंका भी बलवती हो गई है कि आने वाले दिनों में यह टकराव बढ़ेगा। राज्य में सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस पहले से ही केंद्र और भाजपा को इस मुद्दे पर घेरते आ रहे हैं। दोनों दल केंद्र पर झारखंड के साथ भेदभाव बरतने और परेशान करने का आरोप मढ़ रहे हैं।
भाजपा इसका प्रतिकार कर रही है और बकाया बिल प्रकरण को इसे राज्य सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन का नतीजा बता रही है। खैर, इस विवाद का अंत जो भी हो, लेकिन यह सवाल तो लाजिमी है कि आखिर बिजली कंपनियों के बकाए का भुगतान नहीं होगा तो वे संचालित कैसे होंगी? वित्तीय संकट के चलते उत्पादन अथवा संप्रेषण प्रभावित होता है तो फिर जिम्मेदारी किसकी होगी? बिजली आपूíत बाधित होती है तो उन आम उपभोक्ताओं का क्या दोष जो अपना पूरा भुगतान निगम को समय से करते हैं।
डीवीसी बकाये के भुगतान का मसला इस सरकार के गठन के समय से ही केंद्र और राज्य के बीच बड़ा मुद्दा बना हुआ है। शुरुआत में कई आग्रह के बाद डीवीसी ने चेताया था कि अगर उसका बकाया भुगतान नहीं किया जाता है तो वह बिजली आपूर्ति ठप कर देगी। उन्होंने एक-दो बार ऐसा किया भी। राज्य के आधा दर्जन से ज्यादा जिलों में डीवीसी से बिजली की आपूर्ति होती है। हर बार राज्य सरकार के आश्वासन के बाद बिजली बहाल हो गई, लेकिन बकाया भुगतान का कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया। ऐसी स्थिति में करीब 10 महीने पहले केंद्र सरकार ने झारखंड सरकार के भारतीय रिजर्व बैंक खाते से पहली किस्त के रूप में 1417 करोड़ रुपये काट लिए थे। इसके बाद काफी हो-हल्ला मचा था।
राज्य सरकार ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार सुनियोजित तरीके से राज्य सरकार को अस्थिर करना चाहती है। कोरोना काल में जब राज्य पहले से ही आíथक चुनौतियों से जूझ रहा है ऐसे में इतनी बड़ी धनराशि एकमुश्त काट लिए जाने से राज्य के वित्तीय हालात बहुत खराब हो सकते हैं। इसके बाद प्रतिक्रिया स्वरूप राज्य सरकार ने वर्ष 2017 में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रलय, झारखंड सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते को एकतरफा खत्म कर दिया था। इस समझौते में यह शर्त थी कि बकाया भुगतान नहीं होने पर राज्य सरकार के खाते से बकाया रकम काटी जा सकती है। इसके बाद केंद्रीय ऊर्जा मंत्रलय और आरबीआई को पत्र लिखकर भविष्य में बकाया की रकम केंद्र के खाते से नहीं काटने का आग्रह किया था। फिर राज्य सरकार ने डीवीसी को हर महीने 125 करोड़ रुपये का भुगतान करना शुरू कर दिया था।
उधर, केंद्रीय ऊर्जा मंत्रलय ने झारखंड सरकार के इस कदम को गैरकानूनी करार देते हुए कहा था कि समझौता त्रिपक्षीय है, इसलिए यह एकपक्षीय फैसले से खत्म नहीं हो सकता। अब बकाया राशि की दूसरी किस्त के रूप में केंद्र की ओर से झारखंड के खाते से 714 करोड़ रुपये काट लिए गए हैं। इससे एक बार फिर केंद्र और राज्य के बीच तल्खी बढ़ गई है। झारखंड सरकार ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार भाजपा शासित राज्यों के खाते से भारी-भरकम बकाया होने के बाद भी पैसे नहीं काट रही है, जबकि झारखंड की ओर से अनुरोध किए जाने के बाद भी रकम काट ली जा रही है। कांग्रेस भी लगातार भाजपा को राज्य विरोधी करार दे रही है। राज्य में मौजूद केंद्रीय उपक्रमों पर देनदारियों की पड़ताल की जा रही है। प्रतीकात्मक ही सही, 126 करोड़ रुपये से अधिक के बकाये को लेकर रांची स्थित केंद्रीय उपक्रम हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन की हाइटेंशन लाइन की आपूर्ति नौ घंटे तक बाधित कर दी गई। यदि कोई उचित समाधान नहीं निकला तो हो सकता है आने वाले कुछ महीनों में इनमें से कई पर बिजली की गाज गिरे।
[स्थानीय संपादक, झारखंड]