फिर गरमा सकता है आंगनबाड़ी स्मार्ट फोन का मुद्दा, विस में रिपोर्ट पेश करने की तैयारी
ICDS Smart Phones. आंगनबाड़ी स्मार्ट फोन और ई पॉश पर विपक्ष ने विधानसभा में बवाल काटा थ। हालांकि सरकार का दावा है कि 577 स्मार्ट फोन ही खराब हैं, जबकि ई पॉस में कोई घोटाला नहीं।
रांची, [विनोद श्रीवास्तव]। आंगनबाड़ी केंद्रों के क्रियाकलापों को स्मार्ट बनाने के निमित्त बांटे गए स्मार्ट फोन के खराब होने के मामले की रिपोर्ट सरकार ने तैयार कर ली है। रिपोर्ट कभी भी विधानसभा के हवाले की जा सकती है। इससे इतर राशन वितरण में इस्तेमाल हो रहे ई-पॉस मशीन का बेहिसाब किराया देने से संबंधित रिपोर्ट विधानसभा के हवाले की जा चुकी है। दोनों ही मुद्दों को लेकर विधानसभा के बजट सत्र में पिछले दिनों विपक्ष ने जमकर बवाल काटा था। विपक्ष ने इसे पैसे की बर्बादी और घोटाला करार देते हुए इस मामले की रिपोर्ट सदन को सौंपने को कहा था।
स्मार्ट फोन के मामले में सरकार के स्तर से तैयार रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राज्य के सात जिलों के आंगनबाड़ी केंद्रों को मार्च-2017 में 6858 तथा नवंबर 2017 में 5541 स्मार्ट फोन की आपूर्ति की गई थी। इस बीच कुछ फोन के खराब होने की शिकायत सरकार तक पहुंची। इसके बाद दिसंबर-2018 में संबंधित जिलों से रिपोर्ट तलब की गई, जिसमें दुमका से 93, पलामू से 147, गिरिडीह से 109, धनबाद से 80, लोहरदगा से 28, कोडरमा से 44 तथा लातेहार से 76 फोन के खराब होने की सूचना मिली। सरकार ने इसके बाद आपूर्तिकर्ता को पत्र लिखा।
बहरहाल आपूर्तिकर्ता ने संबंधित स्मार्ट फोन को सर्विस सेंटर के हवाले करने की अपील सरकार से की है। सरकार ने इसी तरह ई-पॉस मशीन के जरिए खाद्यान्न की आपूर्ति में किसी तरह की गड़बड़ी से इंकार किया है। इस आशय की रिपोर्ट में सरकार की ओर से कहा गया है कि यह व्यवस्था बिहार समेत मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी प्रभावी है। केंद्र सरकार की गाइडलाइन और अन्य राज्यों के अध्ययन के बाद इसे प्रभावी बनाया गया है। जहां तक मशीन को किराए पर लिए जाने की बात है, इसकी मूल वजह इसका मेंटेनेंस है।
राज्य में 25,887 पीडीएस दुकानें संचालित हैं। मशीनों में गड़बड़ी की आशंका बनी रहती है। इसके निराकरण के लिए आपूर्तिकर्ता ने हर जिले में एक-एक कर्मचारी को नियुक्तकर रखा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को केंद्र में रखकर और राज्य की परिस्थितियों के हिसाब से इस मशीन के सॉफ्टवेयर में दर्जन भर से अधिक बार बदलाव किए गए हैं। अगर इस कार्य के लिए अलग से एजेंसी रखी जाती तो खर्च कहीं अधिक होता। विभागीय मंत्री सरयू राय ने सदन में भी कुछ इसी तरह की बातें कही थी।