हेमंत सरकार और लोकायुक्त में टकराव, एसीबी को सीधे तौर पर आदेश मानने की मनाही
आदेश दिया गया है कि ACB लोकायुक्त का आदेश मानने की बजाय पहले अपने स्तर से शिकायतों की जांच कर पुष्ट हो ले। इसे लोकायुक्त को कमजोर करने की कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच और उसके तरीकों को लेकर सरकार और लोकायुक्त आमने-सामने दिख रहे हैें। लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय ने जहां शिकायतों की जांच और कार्रवाई में तेजी के लिए निजी एजेंसियों की भी मदद लेने का निर्णय लिया है, वहीं सरकार के स्तर से एसीबी को आदेश दिया गया है कि वह सीधे तौर पर कार्रवाई के लिए लोकायुक्त का आदेश मानने की बजाय पहले अपने स्तर से शिकायतों की जांच कर पुष्ट हो ले। इसे लोकायुक्त को कमजोर करने की कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है।
लोकायुक्त कार्यालय इस बात से परेशान है कि विभिन्न घपले-घोटाले समेत वित्तीय अनियमितता के आरोपों में जब प्रारंभिक जांच (पीई) करवाने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) या मंत्रिमंडल निगरानी को निर्देश दिया जाता है, तो वहां वर्षों तक मामला लंबित रहता है। अगर जांच कराई भी जाती है तो जिस विभाग के विरुद्ध आरोप होता है, उसी विभाग से जांच करा दी जाती है।
लोकायुक्त कार्यालय को जब जांच रिपोर्ट मिलती है तो शिकायतकर्ता उस रिपोर्ट पर यह कहते हुए सवाल उठाते हैं कि जिसपर आरोप है, उसी से जांच कराई गई है और इसमें आरोपितों को बचाने की कोशिश है। इसकी वजह से जांच की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्न लगता रहा है। सरकारी जांच एजेंसियों की हीलाहवाली को देखते हुए लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय ने ऐसे मामलों की जांच में निजी एजेंसियों की मदद लेने की निर्णय लिया है। ऐसी आधा दर्जन निजी जांच एजेंसियां जांच के लिए अधिकृत भी हैं। अब इनसे भुगतान के आधार पर लोकायुक्त कार्यालय जांच कराएगा।
सीधे आदेश नहीं मानेगा एसीबी
उधर सरकार के नए निर्देश के मुताबिक भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाली राज्य सरकार की एजेंसी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) लोकायुक्त का सीधा आदेश नहीं मानेगी। मंत्रिमंडल निगरानी विभाग से अनुमति मिलने के बाद ही एसीबी पीई दर्ज कर विधिवत प्रारंभिक अनुसंधान शुरू करेगा। मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग ने इससे संबंधित आदेश भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के महानिदेशक को भेजा है।
अगर लोकायुक्त किसी मामले में प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज करने के लिए एसीबी को निर्देश देते हैं तो एसीबी उस निर्देश की सत्यता की अपने स्तर पर गोपनीय जांच कराएगा। जांच में मामला सही मिलने पर ही एसीबी मंत्रिमंडल निगरानी से अपनी गोपनीय रिपोर्ट के आधार पर पीई के लिए अनुमति लेगा।
पहले लोकायुक्त के आदेश पर होती थी जांच
यह पहली बार नहीं है जब सरकार के स्तर पर लोकायुक्त की शक्तियों को कम किया गया है। पहले लोकायुक्त द्वारा आरंभिक जांच दर्ज करने का आदेश जारी होने के बाद ही एसीबी रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर देता था। पिछली सरकार में मंत्रिमंडल निगरानी एवं सचिवालय विभाग ने एक आदेश जारी किया था कि अब लोकायुक्त पीई के लिए आदेश देंगे तो उसमें मंत्रिमंडल निगरानी की अनुमति लेकर ही पीई दर्ज कर एसीबी जांच करेगा। अब तक यही प्रक्रिया चल रही थी।
500 से अधिक मामले लंबित
लोकायुक्त कार्यालय से जांच के लिए जारी करीब 500 से ज्यादा मामले एसीबी, मंत्रिमंडल निगरानी सहित संबंधित विभागों में लंबित हैं। इनमें 20 ऐसे मामले हैं, जो एसीबी में लंबित हैं। इसमें न पीई दर्ज हुई, न जांच शुरू हो सकी। पीई के लिए अनुमति मिलने में डेढ़-दो साल से अधिक समय लग जाता है। ऐसी स्थिति में जांच की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
एसीबी व मंत्रिमंडल निगरानी में पड़ी हैं कई फाइलें
आरंभिक जांच व प्राथमिकी से संबंधित दर्जनभर फाइलें मंत्रिमंडल निगरानी में लंबित है। इसपर कोई कार्रवाई नहीं हो रही, क्योंकि अनुमति मिलने के बाद जांच आगे बढ़ती है। जांच एजेंसियों के पास पूर्व गृह सचिव एनएन पांडेय, रांची नगर निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला, जैव विविधता पार्क के सौंदर्यीकरण में वित्तीय अनियमितता, जिला सहकारिता पदाधिकारी मनोज कुमार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले सहित कई प्रकरण अनुमति नहीं मिलने की वजह से जांच के लिए लंबित पड़े हैं।