Jharkhand: उपचुनाव का परिणाम बताएगा, परिवारवाद आगे बढ़ेगा या विकास की राजनीति
Jharkhand By Election मुख्यमंत्री दुमका में कैंप कर रहे तो भाजपा की ओर से तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्री दौरा कर चुके हैं। यूपीए के 2 बड़े परिवारों की साख दांव पर है। एनडीए ने भी पूरा जोर लगा रखा है।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में दुमका और बेरमो उपचुनाव के बहाने राजनीति एक बार फिर करवट बदलने को बेचैन है। भारतीय जनता पार्टी लगातार यूपीए पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाती रही है और एक बार फिर यह परिणाम तय करेगा कि राज्य में परिवारवाद आगे बढ़ेगा या फिर विकास की राजनीति होगी। दुमका से पूर्व मुख्यमंत्री व दिशोम गुरु शिबू सोरेन के छोटे पुत्र मैदान में हैं तो बेरमो से पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह के बड़े बेटे।
इनके विरोध में भाजपा में दोनों सीटों पर ऐसे नेताओं को उतारा है जिनके पास इस परिवार को राजनीतिक तौर पर मात देने का अनुभव है। दुमका से लुईस मरांडी उम्मीदवार हैं जिन्होंने पूर्व में हेमंत सोरेन को हराया है तो बेरमो से योगेश्वर महतो को पार्टी में मैदान में उतारा है और इन्होंने इसके पूर्व राजेंद्र सिंह को शिकस्त दी थी। जाहिर सी बात है कि भाजपा के नेता जीते तो परिवारवाद हारेगा और महागठबंधन के उम्मीदवार जीते तो परिवारवाद जीतेगा।
अपने भाई की जीत सुनिश्चित करने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दुमका में कई बार कैंप कर चुके हैं तो भाजपा की ओर से तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास अलग-अलग समय पर क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी परिवारवाद और दुमका के पिछड़े होने को मुद्दा बनाकर महागठबंधन को कटघरे में खड़ा करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। रघुवर दास ने अपने कार्यकाल में किए गए विकास कार्यों का हवाला दिया है।
अर्जुन मुंडा इस क्षेत्र के लोगों की नब्ज पकड़ना जानते हैं। इसके बावजूद मुकाबला कड़ा है। दुमका में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने शिबू सोरेन की छोटे बेटे बसंत सोरेन को मैदान में उतारा है। उनकी उम्मीदवारी से ना सिर्फ परिवार बल्कि संथाल परगना में पार्टी की साख भी दांव पर लग गई है। झामुमो किसी भी तरह से चुनाव को जीतना चाहेगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन स्वयं इसके लिए मेहनत कर रहे हैं तो दूसरी ओर भाजपा की ओर से तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्री प्रचार कर चुके हैं। तमाम सीनियर नेताओं के दौरे इस इलाके में हो चुके हैं।
2009 में दुर्गा सोरेन की बगावत ने हिला कर रख दी थी यूपीए की जड़ें
हेमंत सोरेन झारखंड की राजनीति में बड़ा नाम हैं और मुख्यमंत्री बन चुके हैं लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा के लोग जानते हैं कि उनसे बड़ा नाम दुर्गा सोरेन का था। दुर्गा सोरेन की गिनती झारखंड के मजबूत और कद्दावर नेताओं में होती रही है। आज दुर्गा सोरेन जिंदा होते तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उनका कद और पद हेमंत सोरेन से बड़ा होता।
झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन हमेशा से अपने बड़े भाई दुर्गा सोरेन की छाया में ही रहे। दुर्गा को ही झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन का स्वभाविक उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन कुछ वर्षों पहले हुई उनकी मृत्यु ने उनके छोटे भाई हेमंत को राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया। हेमंत सोरेन भले ही आज यूपीए के नेता है लेकिन ऐसा वक्त भी आया था कि दुर्गा सोरेन ने यूपीए से बगावत करके खुद को उम्मीदवार घोषित कर 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ा था।
यूपीएसआइ कांग्रेस के फुरकान अंसारी के नाम की घोषणा हो जाने के बाद भी हेमंत सोरेन जिद पर अड़े रहे और झामुमो का सिंबल भी जमा किया। नतीजा यह निकला कि फुरकान अंसारी इस क्षेत्र से दोबारा सांसद नहीं बन पाए। 2009 से लगातार निशिकांत दुबे ही जीत रहे हैं। खैर, यूपीए को कमजोर करने वाला यह अध्याय दुर्गा सोरेन के निधन के साथ ही खत्म हो गया है।