Jharkhand News: खेती-किसानी में काफी पिछड़ गया झारखंड... एग्री स्मार्ट विलेज मॉडल से बदलाव की कवायद... जानिए, किस क्षेत्र में क्या है स्थिति
Jharkhand Agriculture कृषि और संबद्ध क्षेत्र में राष्ट्रीय मानकों की तुलना में झारखंड अभी काफी पीछे है। यहां खेतों तक बिजली-पानी पहुंचाना होगा। इतना ही नहीं किसानों के लिए बाजार की व्यवस्था भी करनी होगी। इसके बाद ही यहां के किसानों और खेती की दुनिया बदल सकती है।
रांची, राज्य ब्यूरो। कृषि व संबद्ध क्षेत्र के मानकों पर जब झारखंड की तुलना देश के अन्य राज्यों से की जाती है तो यह यह निचली पंक्ति में खड़ा दिखाई देता है। राष्ट्रीय मानकों के सापेक्ष जब इनकी तुलना करेंगे तो आंकड़े इसकी पुष्टि करते नजर आ जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं है कि झारखंड में संभावनाएं नहीं हैं। ये संभावनाएं वास्तविकता में बदल सकती हैं, बशर्ते ईमानदार प्रयास हो। राज्य में न तो कृषि योग्य भूमि की कमी है और न ही मानव संसाधन की। सरकारी योजनाओं की भरमार तो है ही। झारखंड में 38 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है।
खरीफ में 6.86 लाख हेक्टेयर भूमि रह जाती परती
खरीफ में अधिकतम 28 लाख हेक्टेयर में खेती की जाती है और रबी में महज 11 लाख हेक्टेयर तक तमाम प्रयास दम तोड़ देते हैं। यह आकड़ें इस बात की भी पुष्टि कर रहे हैं कि खरीफ में ही करीब 6.86 लाख हेक्टेयर भूमि परती रह जाती है। रबी के भारी-भरकम फासले की तो चर्चा ही बेमानी है। यह आंकड़े सरकारी है, जमीनी हकीकत इससे जुदा भी हो सकती है। इस गैप में संभावनाएं तलाशी जा सकती है। जहां कमियां या खामियां हैं, संभावनाएं भी वहीं छिपी हैं। खाली पड़ी कृषि योग्य भूमि को उपयोग में लाने के कुछ प्रयास पिछले एक दशक में हुए भी हैं लेकिन उन्हें पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। सिंचाई की सुविधाओं में विस्तार के साथ ग्रामीण क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास काफी कुछ बदल सकते हैं। अमृत सरोवर जैसी योजनाओं को भी गंभीरता से लेना होगा। किसानों तक सिर्फ बीज की आपूर्ति ही सुनिश्चित नहीं करनी होगी बल्कि उन्हें आधुनिक कृषि से जोड़ने के लिए कृषि उपकरण उपलब्ध कराने होंगे। किसानों के उत्पादों के लिए बाजार की चेन को भी दुरुस्त करना जरूरी है। एग्री स्मार्ट विलेज का खाका इन कमियों को दूर कर माडल गांव बनाने की दिशा में एक पहल है, यह माडल सफल हुआ तो झारखंड आयातित राज्य से निर्यातक राज्य में जल्द ही बदलेगा।
मानव संसाधन हमारी कमजोरी नहीं ताकत
झारखंड से प्रति वर्ष हजारों लोग काम की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। यह संख्या कितनी बड़ी है, यह कोविड के समय जब हमारे लोग वापस लौटे तो पता चला। करीब आठ से नौ लाख लोगों की वापसी हुई। काम न मिलने या मनमाफिक रोजगार न मिलने पर कुछ लोग स्थायी रूप से भी वापस लौटे। जब यह मानव बल झारखंड में वापस लौटा, गांव-घर के काम में इन हाथों ने काम बंटाया, नतीजा रिकार्ड उत्पादन के रूप में सामने आया। जाहिर हमारा मानव संसाधन हमारी ताकत है। और यदि इस ताकत का सही उपयोग हो तो बड़ा परिवर्तन संभव है। यह परिवर्तन कृषि व संबद्ध क्षेत्र में तो और भी सहज है, क्योंकि कृषि व संबद्ध क्षेत्रों के लिए किसी बड़ी तकनीकी योग्यता की आवश्यकता नहीं होती।
इस गैप को होगा पाटना
- क्षेत्र का ब्योरा --- झारखंड ---- राष्ट्रीय
- सिंचाई योग्य भूमि - 20 प्रतिशत - 35.4 प्रतिशत
- क्रापिंग इंटेंसिटी - 126 प्रतिशत - 142 प्रतिशत
- उर्वरक खपत (किग्रा प्रति हे.) - 92 - 158
- शीड रिप्लेसमेंट रेशियो - 15 - 33
- ऊर्जा उपलब्धता (केवी प्रति हे.) - 1.21 - 2.25
- फूड ग्रेन उत्पादकता (किग्रा प्रति हे.) - 1957 - 2233
- दलहन उत्पादकता (किग्रा प्रति हे.) - 1065 - 935
- तिलहन उत्पादकता (किग्रा प्रति हे.) - 729 - 1270
- फल उत्पादकता (टन प्रति हे.) - 8.08 - 12.03
- सब्जी उत्पादकता (टन प्रति हे.) - 14.21 - 17.30
- अंडा उत्पादन (लाख में) - 6928 - 1033180
- मीट उत्पादन (हजार टन में) - 67.25 - 8100
- अंडे की उपलब्धता (प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष) - 19 - 79
- मीट की उपलब्धता (ग्राम, प्रति व्यक्ति प्रतिदिन) - 5 - 17
- मछली (क्रिग्रा प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष) - 10.31 - 9