इंटरनेशनल म्यूजियम डे : आदिवासी संस्कृति व सभ्यता को समेटे हैं बिरसा म्यूजियम
जागरण संवाददाता राची आज पूरी दुनिया में अंतराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस (इंटरनेशल म्यूजियम डे) आज है।
जागरण संवाददाता, राची : आज पूरी दुनिया में अंतराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस (इंटरनेशल म्यूजियम डे) मनाया जा रहा है। संग्रहालय वह स्थान है जहा संग्रहित कर रखी गई दुलर्भ वस्तुएं, प्रतिमाएं व चित्रों के माध्यम से हमें हमारे सभ्यता से जोड़ता है। संस्कृति, धरोहरों का जीवंत दर्शन कराता है। 1977 में इंटरनेशल काउंसिल ऑफ म्यूजियम (आईकॉम) ने अंतराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस की शुरुआत की। संग्रहालय के महत्व को देखते हुए 2009 में 98 देश, 2011 में 100 देश वही 2012 में 129 देशों के करीब 30 हजार संग्रहालयों ने इसमें हिस्सा लिया। दिवस मनाने के पीछे संग्रहालय के महत्व से आमलोगों को रू-ब-रू कराना है। 1992 में अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के निर्णय के अनुसार प्रत्येक वर्ष एक नए थीम पर संग्रहालय दिवस मनाया जाता है। कह सकते हैं हमारी संस्कृति व धरोहरों को सुरक्षित रखने और उनके प्रचार-प्रसार में संग्रहालय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसे इतिहास का भंडार भी कहा जा सकता है।
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राची में आइकॉनिक ट्राइबल संग्रहालय बनाने की योजना
झारखंड की आदिवासी संस्कृति से देश व दुनिया को अवगत कराने के लिए राज्य में आइकॉनिक ट्राइबल म्यूजियम का निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा होटवार स्थित राज्य म्यूजियम में एक अलग विंग है, जहा आदिवासियों के जीवन-दर्शन को सहेजा गया है। वहीं, मोरहाबादी स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजजातीय शोध संस्थान में भी एक छोटा सा संग्रहालय है। इस संग्रहालय से यह भी फायदा होगा कि यहा आदिवासी साहित्य, लोकगीत, लोक संस्कृति, लोकगाथा आदि की किताबें भी प्रकाशित हो सकेंगी। ------------------------
आदिवासी समाज के जीवन शैली का दर्शन स्थल है ट्राइबल म्यूजियम
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-आदिकाल के समय आदिमानवों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले आभूषण, हथियार का संग्रह
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झारखंड के जनजातीय समाज की विस्तृत जानकारी लेनी हो तो मोरहाबादी स्थित डॉ रामदयाल सिंह मुंडा जनजातीय संग्रहालय आईये। राज्य के भिन्न-भिन्न हिस्से में पाये जाने वाले सभी 32 जनजातीय समाज की विस्तृत जानकारी एक ही स्थान पर मिल जाएगी। संग्रहालय में जनजातीय समाज की सभ्यता-संस्कृति व इतिहास से जुड़ी जानकारिया व दुर्लभ वस्तुएं हैं। यहा अलग-अलग जनजातियों के मॉडल शो केस बनाए गए हैं। जिसमें इनके जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। आदिवासियों का पहनावा, जीवन, कार्य, व आर्थिक स्थिति को भी मूर्तियों के माध्यम से दर्शाया गया है। प्राचीन काल से अब तक की जीवन यात्रा को क्रमबद्ध तरीके से समझाया गया है। कास्य युग से आधुनिक युग के पारंपरिक हथियार, खान-पान से रू-ब-रू होने का मौका मिलेगा। यही नहीं प्राचीन काल के आभूषण, वाद्ययंत्र, हस्तशिल्प व शिकार करने के हथियार भी सहेज कर रखे गए हैं। इस प्रकार के अनूठे संग्रहालय की स्थापना 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने किया था। संग्रहालय का संचालन कल्याण विभाग द्वारा होता है। बाद में संग्रहालय का नाम डॉ रामदयाल मंडा के नाम पर रखा गया। इसी परिसर में डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान भी है। झारखंड का एक मात्र जनजातीय शोध संस्थान जहा जनजातीय समाज से जुड़ी इतिहास, संस्कृति व उन्नति के लिए शोध होते हैं। संस्थान की स्थापना 31 अक्तूबर 1953 को हुई थी। इसका संचालन कल्याण विभाग द्वारा होता है। यह जनजातीय संग्रहालय झारखंड की आदिवासी संस्कृति और जनजातीय जीवन और कला का अद्भुत केंद्र है।
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स्थान व जनसंख्या का मिलता है पूरा डिटेल
संग्रहालय में सभी जनजाति के लिए अलग-अलग शोकेस बनाया गया है। शो केस में जीवन शैली तो दर्शाया ही गया है साथ में कौन जनजाति राज्य के किस इलाके में निवास करते हैं और इनकी कितनी आबादी है इसकी भी पूरी जानकारी दी जाती है। जनगणना के अनुसार डाटा अपडेट किया जाता है। .....................
पुराने जेल में भगवान बिरसा मुंडा सहित अन्य स्वतंत्रता सेनानी के कृतित्व से होगा परिचय
-1900 में बिरसा मुंडा को कारागार में लाया गया था, नौ जून को कारागार में हुई थी मृत्यु
-1880 में अंग्रेज द्वारा भवन को कारागार में परिवर्तित किया गया था
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कचहरी चौक स्थित केंद्रीय कारागार में जहा बिरसा मुंडा ने नौ जून 1900 को अंतिम सासे ली थी। उसे म्यूजियम बनाया जा रहा है। जेल में भगवान बिरसा मुंडा सहित झारखंड के तमाम स्वतंत्रता सेनानी के जीवन से साक्षात्कार करने का मौका मिलेगा। खासकर बिरसा मुंडा के जेल में बिताये पल को डॉक्यूमेंट्री, ऑडियो-वीडियो विजुअल के माध्यम से अवगत कराया जाएगा। कारागार को संरक्षित करने का कार्य अंतिम चरण में है। तैयार होने के बाद कारागार जैसा अंग्रेज के समय दिखता ठीक उसी प्रकार दिखेगा।
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दो माह के अंदर हो गई थी बिरसा मुंडा की मृत्यु
बिरसा मुंडा को मार्च 1900 में केंद्रीय कारागार लाया गया था। दो माह बाद ही नौ जून को देर रात उनकी जेल में मौत हो गई। जन भावना भड़कने के डर से आनन फानन में अंग्रेजों ने उनके शव को कोकर में डिस्टिलरी पुल के पास दफना दिया गया था। यहा अब बिरसा मुंडा स्मारक बनाया गया है।
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कमिश्नरी ऑफिस को बनाया गया था कारागार
आजादी से पूर्व केंद्रीय कारागार पहले कमिश्नरी ऑफिस हुआ करता था। बाद में इसे कारागार में तब्दील कर दिया गया। अंग्रेजी शासन काल में कारागार को 500 कैदियों के लिए बनाया गया था। पुरुष के लिए 10 बड़े-बड़े हॉल एवं महिलाओं के चार हॉल बनाये गए थे। आज की ही तरह उस समय भी दुर्दंत कैदियों को अलग कोपभवन में रखा जाता था। इसके लिए पाच कोपभवन बनाये गए थे। नाम के अनुरूप ही छोटे से रूम में दिन में भी अंधेरा रहता था। कोपभवन के पास में ही सिपाहियों के लिए विश्रामालय बनाया गया था।
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कारागार में एक कैदी को दी गई थी फासी
जानकारी के अनुसार अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को पहाड़ी मंदिर तब के फासी टुंगरी पर ही फासी दिया जाता था। कारागार में सिर्फ एक कैदी को ही फासी दी गई थी। कैंपस में स्थित अस्पताल के बगल में ही अस्थायी रूप से निर्माण किया गया जहा कैदी को मृत्यु दंड दी गई थी। 30 हजार स्क्वायर फीट में फैला है कारागार का भवन कारगार साढ़े चार एकड़ जमीन में फैला हुआ है। भवन करीब 30 हजार स्क्वायर फीट जमीन पर बना है। इसमें जेलर, कैदियों के लिए रसोई घर, खेलने का स्थान आदि शामिल है।