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कानून की कमी नहीं, अमल हो तो बात बने : राज्यपाल

रांची : राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि बच्चों के अधिकार को संरक्षित रखने के लिए कानून

By JagranEdited By: Published: Tue, 21 Nov 2017 03:01 AM (IST)Updated: Tue, 21 Nov 2017 03:01 AM (IST)
कानून की कमी नहीं, अमल हो तो बात बने : राज्यपाल
कानून की कमी नहीं, अमल हो तो बात बने : राज्यपाल

रांची : राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि बच्चों के अधिकार को संरक्षित रखने के लिए कानून की कमी नहीं है, जरूरत है तो बस ईमानदारी के साथ इसे अमल में लाने की। उन्होंने मौजूदा परिदृश्य में बाल श्रम, बाल विवाह, बाल तस्करी, ड्रॉपआउट, पलायन जैसी समस्याओं से मिलकर निपटने की जरूरत बताई। उन्होंने ऐसी समस्याओं से जूझ रहे बच्चों की परेशानियों की पहचान कर उसके समाधान की आवश्यकता पर जोर दिया। राज्यपाल सोमवार को राजधानी में अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस पर आयोजित बच्चों के अभिव्यक्ति कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं। इससे पूर्व बच्चों ने बाल अधिकार से संबंधित 14 सूत्री मांगपत्र राज्यपाल को सौंपा।

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राज्यपाल ने इस दौरान लैंगिक विषमता को पाटने के लिए समाज के हर तबके को आगे आने को कहा। उन्होंने लिंग की पहचान करने वाले क्लीनिकों को जहां पूरी तरह से बंद करने की आवश्यकता बताई, वहीं बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो के साथ-साथ बुरा मत सोचो की भावना लोगों में जगाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आजकल विद्यालयों में बाल संसद पर जोर दिया जा रहा है। इससे बच्चों में जागृति आ रही है। उन्होंने कहा कि हर बच्चे को अपना बच्चा मानकर अगर हम आगे बढ़ेंगे तो समस्याएं धीरे-धीरे स्वत: समाप्त हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि अच्छी आदतों की सुधार खुद से करें, फिर विश्व परिवर्तन हो जाएगा।

रांची की मेयर आशा लकड़ा ने इस दौरान बाल तस्करी पर फोकस करते हुए कहा कि बच्चों को बहलाने-फुसलाने वाले बिचौलिए भी हमारे बीच के होते हैं। जिस दिन समाज जाग्रत हो जाएगा, सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। सेव द चिल्ड्रेन के सीइओ थॉमस कैंडी ने कहा कि झारखंड में 58 फीसद लड़कियों का बाल विवाह हो रहा है, 70 फीसद खून की कमी से पीड़ित है। उनकी संस्था ने कुपोषण से निपटने के लिए नौ राज्यों के लिए एक्शन प्लान तैयार किया है। झारखंड में भी उसने इस दिशा में पहल शुरू की है। झारखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर ने भी इस दौरान अपनी बातें रखीं।

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सीपी सिंह की तल्खी :

अंताक्षरी बन गए हैं दिवस, भाषण दो और चलते बनो :

नगर विकास एवं आवास विभाग के मंत्री सीपी सिंह ने दो टूक कहा कि साल के 365 दिन कोई न कोई दिवस मनाने का सिलसिला चल पड़ा है। जब लोगों के पास कोई काम नहीं होता था तो लोग अंताक्षरी खेलते थे। अब विभिन्न दिवसों पर आयोजित कार्यक्रमों में यह देखने को मिलता है। लोग ऐसे आयोजनों में आते हैं, भाषण देते हैं और चले जाते हैं। उन्होंने सवाल किया कि सड़क पर कचरा इकट्ठा करते, गाडि़यों का शीशा साफ करते, होटलों यहां तक कि रसूखदारों के घरों में बच्चे काम करते मिल जाते हैं, कितने लोग इसकी सुध लेते हैं। उन्होंने कहा कि यहां सलाह देने और शिकायत करने वालों की कोई कमी नहीं है। इससे इतर अपने कर्तव्यों के निवर्हन में लोग फिसड्डी हैं। इस दौरान उन्होंने बच्चों के अधिकार को लेकर मुखर गैर सरकारी संस्थाओं पर भी प्रहार किया। उन्होंने कहा कि ऐसी संस्थाओं का सोशल आडिट होना चाहिए। उन्हें किस कार्य के लिए कितनी राशि सरकार से मिली और उन्होंने समाज में क्या परिवर्तन लाया, उनसे पूछा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पलायन करने वाले युवक अगर बाहर जाकर दो पैसे घर भेज रहे हों तो यह अच्छा है।

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गुड टच और बैड टच की बच्चों को मिले जानकारी :

अधिकार की अभिव्यक्ति में शामिल बच्चों में से डिबडीह की सौम्या लकड़ा ने स्कूलों में गुड टच और बैड टच की जानकारी बच्चों को दिए जाने की वकालत की। देवघर की चांदनी कुमारी ने बाल विवाह को रोकने के लिए स्कूल का प्रमाणपत्र और कोर्ट मैरिज की अनिवार्यता पर जोर दिया। खूंटी के यशवंत कुमार ने बालश्रम रोकने के लिए जहां बच्चों और उनके परिजनों की मजबूरियों का आकलन करने और सशक्त कानून बनाने को कहा, वहीं रामगढ़ के अशरफ हुसैन ने स्वच्छता की शुरूआत पहले खुद से, फिर विद्यालय और इसके बाद मोहल्ला से करने की नसीहत दी। कुंती हेम्ब्रम ने घटते लिंगानुपात को रोकने के लिए बने कानूनों का सख्ती से अनुपालन, कोडरमा की काजल ने बाल तस्करी रोकने तथा रूबी कुमारी ने शिक्षा को बढ़ावा देने पर चर्चा की।

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अशोक भगत के बोल :

कहां थे गांव वाले, कहां थे एनजीओ और राजनीतिक दल :

विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत ने समाज में व्याप्त समस्याओं को व्यापकता में देखने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि भूख से मौत के बाद लोग बवाल मचाते हैं। ऐसे में पूछा जाना चाहिए कि जब किसी गांव के किसी घर में चूल्हा नहीं जल रहा था, तब गांव वालों ने क्या किया। परिवर्तन लाने की दुहाई देने वाले एनजीओ तब कहां थे, राजनीतिक दलों ने क्या किया। उन्होंने कहा कि हर बात के लिए सरकार को दोषी ठहराए जाने की परंपरा बंद होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि गांव की मिट्टी, गांव के लोग, गांव का पानी और जंगल जब सुरक्षित रहेगा, विकास स्वत: हो जाएगा।

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