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President Election 2022: द्रौपदी मुर्मू पर बड़ा दांव, इधर हेमंत सोरेन, उधर नवीन पटनायक सधेंगे; आदिवासी राजनीति पर भाजपा का मास्‍टर स्‍ट्रोक

President Election 2022 NDA Candidate Draupadi Murmu द्रौपदी मुर्मू को राष्‍ट्रपति पद का उम्‍मीदवार बनाकर भाजपा ने मास्‍टर स्‍ट्रोक खेला है। बीजेपी ने लगभग 12 करोड़ आदिवासियों को ऐसा संदेश दिया कि विरोधी दल भी समर्थन में आ सकते हैं। हेमंत सोरेन और नवीन पटनायक भी साधे जाएंगे।

By Alok ShahiEdited By: Published: Tue, 21 Jun 2022 11:16 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jun 2022 08:05 AM (IST)
President Election 2022, Draupadi Murmu: द्रौपदी मुर्मू के नाम पर हेमंत सोरेन और नवीन पटनायक को साध रही भाजपा।

रांची, राज्य ब्यूरो। President Election 2022, Draupadi Murmu आजादी के बाद देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद के लिए पहली बार किसी आदिवासी को आगे कर राजग ने एक तीर से कई निशाना साधा है। देशभर में आदिवासियों की आबादी 12 करोड़ से अधिक है और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे पर इनकी भागीदारी अन्य समुदायों की अपेक्षा कम है। ऐसे में राजग ने द्रौपदी मुर्मू का नाम आगे बढ़ाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसके एजेंडे में समरस और सर्वस्पर्शी समाज की परिकल्पना सर्वोपरि है। उसका समाज के हर तबके के उन्नयन में विश्वास है।

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इसका राजनीतिक प्रभाव भी व्यापक तौर पर पड़ेगा। वैसे दल जिनका आधार भाजपा विरोध की राजनीति रही है, वे इसे लेकर राजग के साथ आ सकते हैं। इसकी चर्चा झारखंड से ही करते हैं। द्रौपदी मुर्मू का नाम राज्यपाल के लिए पहली बार आश्चर्यजनक तौर पर आया था। दिसंबर, 2014 में विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद भाजपा ने सरकार बनाई तो पहली बार गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का प्रयोग किया गया। रघुवर दास पद पर काबिज हुए। इसकी भरपाई के लिए राज्यपाल के पद पर द्रौपदी मुर्मू की नियुक्ति की गई।

संताल आदिवासी समुदाय से आने वाली मुर्मू ने अपने कार्यकाल में तब विपक्ष की राजनीति करने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी प्रभावित किया। राष्ट्रपति चुनाव में इसका असर पड़ सकता है। झारखंड में सत्ता पर काबिज झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों की संख्या 30 है। मोर्चा के पास लोकसभा में एक और राज्यसभा में एक सदस्य हैं। मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और द्रौपदी मुर्मू के बीच बेहतर रिश्ते हैं।

ऐसे में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रहे हेमंत सोरेन राजग प्रत्याशी का समर्थन करने के लिए आगे आ सकते हैं। अगर उन्होंने इसके विपरीत निर्णय लिया तो भाजपा को उन्हें कठघरे में खड़ा करने का मौका मिलेगा। लिहाजा उनके लिए यह धर्मसंकट की स्थिति होगी। अगर वे राजग के साथ जाएंगे तो कांग्रेस असहज होगी। विपक्ष का साथ देने पर हेमंत सोरेन को भविष्य में राजनीतिक नुकसान का डर सताएगा।

झारखंड विधानसभा के 81 में से 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है। इसमें से फिलहाल 26 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का कब्जा है। झारखंड से सटे ओड़िशा में बीजू जनता दल का शासन है। द्रौपदी मुर्मू के नाम पर ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक आसानी से उनके समर्थन के लिए आगे आ सकते हैं। ओड़िशा में 28 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। गुजरात के आगामी विधानसभा चुनाव में भी यह प्रभावी कदम साबित होगा। गुजरात में दो दर्जन से अधिक विधानसभा सीटों पर आदिवासियों का झुकाव चुनाव में जीत-हार तय करता है।

ममता बनर्जी का दांव पड़ सकता है उल्टा

बंगाल में आदिवासी समुदाय की आबादी झारखंड से सटे जिलों में सर्वाधिक है। इसके अलावा उत्तर बंगाल में इनकी काफी तादाद है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने यशवंत सिन्हा का नाम आगे किया है। ऐसे में भाजपा को भविष्य में उनकी राजनीतिक घेराबंदी में मदद मिलेगी। ममता बनर्जी बांग्ला मानुष पर जोर देती हैं, लेकिन बंगाल के बाहर से एक राजनीतिक व्यक्ति को आगे करने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है।


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